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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कुन्थुनाथ और अरहनाथको मूर्तियाँ हैं। ये दोनों ही खड्गासन हैं। इनकी अवगाहना १० फुट ९ इंच तथा पीठासनसहित १७ फुट है।
शान्तिनाथ भगवान्के पीठासनपर मूर्तिका प्रतिष्ठा-काल संवत् १२३६ फाल्गुन सुदी ६ उत्कीर्ण है। तीनों ही प्रतिमाओंपर धुंघराले कुन्तल हैं। मुद्रा ध्यानमग्न है। अर्धोन्मीलित नयन, स्कन्धचुम्बी कर्ण, गोलाकार मुख, पतले होंठोंपर विरागरंजित स्मिति, चौड़ा वक्षस्थल और उसके मध्यमें श्रीवत्स लांछन, क्षीण कटिभाग इन प्रतिमाओंका वैशिष्ट्य है। मुखपर तेज, लावण्य और शान्ति है। प्रतिमाओंके हाथ जंघोंसे मिले हुए नहीं हैं, पृथक् हैं, हाथोंपर कमल भी नहीं हैं, जैसे परवर्ती कालको ग्वालियर दुर्ग, पनिहार-बरई, सोनागिरि आदिकी विशाल मूर्तियोंमें उपलब्ध होते हैं । इन स्थानोंकी मूर्तियोंके हाथोंकी हथेलियोंपर अलगसे कमल बने हुए मिलते हैं। तीनों ही प्रतिमाओंकी भुजाएँ जानुपर्यन्त भी नहीं हैं, जैसा कि प्रायः खड्गासन तीर्थंकर-मूर्तियोंमें मिलती हैं। प्रतिष्ठा-शास्त्रोंमें तीर्थंकरोंको आजानुबाहु कहा गया है और उनकी मूर्तियां भी वैसी ही निर्मित करनेका विधान है। किन्तु अनेक तीर्थंकर-प्रतिमाओंकी भुजाएं घुटनोंसे ऊपर ही तक बनी हुई देखी जाती हैं। ११-१२वीं शताब्दीमें बनी हुई अनेक प्रतिमाओंमें प्रतिष्ठा-शास्त्रोंके उक्त नियमका पालन पूर्णतः नहीं हो पाया। अस्तु ।
तीनों प्रतिमाओंके हाथोंसे नीचे पृथक-पृथक् सौधर्मेन्द्र और उनकी शची हाथोंमें चमर लिये हुए खड़े हैं । इन्द्र और इन्द्राणी दोनों विविध अलंकार धारण किये हुए हैं। तीनों प्रतिमाओंके पीठासनोंपर उनके चिह्न हरिण, छाग और मत्स्य बने हुए हैं। इन प्रतिमाओंके अभिषेकके लिए दोनों ओर दीवारोंके सहारे सीढ़ियां बनी हुई हैं।
दोनों ओरकी दीवारोंमें पांच पैनल बने हुए हैं-दायीं ओरकी दीवारमें दो और बायीं ओरकी दीवारमें तीन । दायीं ओरकी दोवारके पहले पैनलकी चौड़ाई ५७ इंच और ऊँचाई ४० इंच है। इसके मध्यमें पार्श्वनाथकी मूर्ति है, जिसके नीचे सर्प लांछन बना हुआ है। मूर्तिके दोनों ओर स्तम्भ तथा चौबीस तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। पैनलमें वाम पार्श्वमें ऋषभदेव और दक्षिण पार्श्वमें नेमिनाथकी मूर्तियां हैं, जिनके नीचे क्रमशः गोमुख, यक्ष और शंख बने हुए हैं जिनसे उनकी पहचान हो सकती है।
दायीं ओरकी दीवारके दूसरे पैनलमें भगवान् अजितनाथकी खड्गासन मूर्ति है। मूर्तिके नीचे दो हाथी और उनके मध्यमें अजितनाथका यक्ष महायक्ष बना हुआ है। उनके नीचे दोनों
ओर दो-दो सिंह और मध्यमें भगवान्की यक्षिणी रोहिणी बनी हुई है। इस पैनलकी चौड़ाई ५७ इंच और ऊँचाई २४ इंच है।
बायीं ओरकी दीवारमें एक पैनलमें खड्गासन अजितनाथकी मूर्ति बनी हुई है। उसके नीचे दो गज और मध्यमें यक्ष है । उसके नीचे दो-दो हाथी और उनके मध्यमें यक्षी बनी हुई है।
__एक अन्य पैनलमें चार खड्गासन मूर्तियां हैं। दोनों ओर चौबीस खड्गासन तीर्थकर मूर्तियाँ और दो स्तम्भ हैं। नीचे सिद्धायिका यक्षी ( महावीरकी यक्षी ) बनी हुई है। इस पैनलकी चौड़ाई ५७ इंच तथा ऊँचाई ४२ इंच है।
तीसरा पैनल दायीं ओरकी दीवारके पैनलके समानान्तर बना हुआ है।
दायीं ओरकी दीवारके एक पैनलमें पढ़े गये लेखके अनुसार ये सभी मूर्तियां बड़ी मूर्तियोंके समय ही अर्थात् संवत् १२३६ में प्रतिष्ठित की गयी थीं। इस गर्भगृहके ऊपर शिखर बना हुआ है।
मूल वेदोके पीछे पाँच वेदियाँ बनी हुई हैं। बायीं ओरकी वेदीमें मूलनायकके अतिरिक्त कुछ प्राचीन मूर्तियाँ एक चबूतरेनुमा वेदीपर विराजमान हैं, जिनमें संवत् १०७५, ११५५, १२२५,