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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ की हुई है, जो अभी तक यथावत् है। कहते हैं, यह पालिश हीरेकी घोटसे की हुई है। यहां अधिकतम प्राचीन प्रतिमा ११वीं शताब्दीकी विद्यमान है। इससे स्पष्ट है कि यह क्षेत्र ११वीं शताब्दीसे अस्तित्वमें आया है। यहाँकी कुछ मूर्तियाँ खण्डित कर दी गयी हैं। इन मन्दिरोंके पृष्ठ भागमें एक तालाब है। परकोटेके अन्दर एक धर्मशाला और एक कुआं है । परकोटेके आगे बहुत बड़ा मैदान है । पचराई गाँव यहाँसे आधा मील दूर है । इस गाँवमें कोई जैन नहीं है । यहाँसे २ कि. मी. पर पिपरौदा नामक गाँव है । वहाँ जैनोंके कुछ घर हैं। यहाँ पहले प्रतिवर्ष माघ शुक्ला प्रतिपदासे पंचमी तक वार्षिक मेला लगता था। इस अवसरपर विमानोत्सव भी मनाया जाता था। निकटवर्ती पुरातत्त्व-खनियाधानाके आसपास अनेक स्थानोंपर प्राचीन जैन मूर्तियों और मन्दिरोंके भग्नावशेष विपुल परिमाणमें उपलब्ध होते हैं। इन स्थानोंमें एक स्थान तुमैन है। प्राचीन कालमें इसका नाम सम्भवतः तुम्बवन था । ग्रीक इतिहासकार टोलेमी ( Ptolemy ) न थालोबन (Tholobana) का उल्लेख एक प्राचीन महत्त्वपूर्ण स्थानके रूपमें किया है। कनिंघमने इसकी पहचान बहुरीबन्दसे की है और लिखा है कि इस प्राचीन नगरके आसपास कई स्थानोंपर गुप्तकालके मन्दिर उपलब्ध होते हैं। किन्तु हमारी विनम्र मान्यता है कि टोलेमीका थोलोबन बहुरीबन्द नहीं है, बल्कि वर्तमान तुमैन है, जिसका कि प्राचीन नाम 'तुम्बवन' था। बहुरीबन्दमें गुप्तकालकी कोई सामग्री प्राप्त नहीं हुई, जबकि तुमैनमें गुप्त संवत् ११६ ( ई. सं. ४३५ ) का एक संस्कृत अभिलेख उपलब्ध हुआ है, जिसमें एक हिन्दू मन्दिरके निर्माणका उल्लेख है। यहाँपर जैन मन्दिरोंके अवशेष और खण्डित जैन मूर्तियाँ मिलती हैं जिनका निर्माण-काल ईसाकी पांचवीं शताब्दीसे लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक अनुमान किया जाता है। यहाँकी कई मूर्तियाँ गुप्तकालीन शैलीसे अधिक समानता रखती हैं। यहाँ एक विशाल पद्मासन जैन मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है, जिसे स्थानीय लोग 'बैठा देव' के नामसे पुकारते और पूजते हैं। दूसरा गाँव है तेरही। यह स्थान महुआसे २ कि. मी. है और पचराई से ६ कि. मी. । यहाँ कुछ जैन मूर्तियाँ खेतोंमें पड़ी हुई हैं । छह फुट ऊंचा एक मानस्तम्भ भी यहाँपर है। पुरातत्त्व विभागकी ओरसे यहाँ एक संग्रहालय भी बना हुआ है । यहाँ १०वीं शताब्दीके दो मन्दिर भी बने हुए हैं। इनमें जो बड़ा मन्दिर है, वह गांवके बीचमें बना हुआ है तथा छोटा मन्दिर गाँवके बाहर है। इस मन्दिरके सामने, मन्दिरसे २० फुट दूर अत्यन्त अलंकृत तोरणद्वार बना हुआ है। यह २० फुट ऊँचा है और मन्दिरके समान चौड़ा है। इसके पास ही दो अभिलिखित स्तम्भ पड़े हुए हैं। दोनोंपर ही विक्रमकी दसवीं शताब्दीके लेख अंकित हैं। एक स्तम्भके लेखानुसार वि. सं. ९१० भाद्रपद वदी ४ शनिवारको मधुवनके महासामन्ताधिपति श्री गुणराज उण्ड भटने श्री चण्डी मन्दिरको भेंट की। दूसरा लेख अस्पष्ट है । जो पढ़ा जा सका, उसके अनुसार वि. सं. ९२० भाद्रपद वदी १४ शनिवारको श्री रु ......भटने देवी अम्बिका भेंट की। यह स्तम्भ अम्बिका देवीके मन्दिरका होगा और सम्भवतः यह अम्बिका बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथको यक्षी होगी। यदि हमारा यह अनुमान सही हो तो कहना होगा कि १०वीं शताब्दीमें यहाँपर तीर्थंकर नेमिनाथका मन्दिर रहा होगा और उसमें उनकी यक्षी अम्बिकाकी भी मूर्ति होगी। ___इसी प्रकार निवोदा, देखो, महुआ, इन्दौर, सकरी, लखारी, सिमलार आदि कई निकटवर्ती स्थान हैं जहाँ जैन मूर्तियाँ मिलती हैं । निवोदा खनियाधानासे १३ कि. मी. है। यहां कुछ खण्डित जैन मूर्तियां पड़ी हुई हैं । देखो गाँव खनियाधानासे १९ कि. मी. है। यहां दो मूर्तियाँ पड़ी हुई हैं
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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