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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्रकी व्यवस्था
क्षेत्रका प्रबन्ध बंगाल-बिहार-उड़ीसा दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीके तत्त्वावधानमें चलता है। छपरावालोंके मन्दिरका प्रबन्ध छपरावालोंके हाथमें है तथा भागलपुरके जैन मन्दिर और धर्मशालाकी व्यवस्था भागलपुरकी दिगम्बर जैन समाज करती है। भागलपुर शहरका मन्दिर
यहाँ भगवान् वासुपूज्यकी मूलनायक प्रतिमा धातुकी पद्मासनमें है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९२९ में हुई थी। इस मन्दिरमें १४ पाषाणकी तथा २१ धातुको प्रतिमाएं हैं, एक चरण हैं तथा तीन प्रतिमाएँ चौबीसी की हैं । बायीं ओरकी चौबीसी सं. १५३४ की है। मध्यकी चौबीसीपर संवत् अंकित नहीं है तथा एक चौबीसी संवत् ११७३ की है।
ये तीनों मूर्तियाँ पटनाके बड़े मन्दिरसे लायी गयी थीं।
यहाँ मन्दिरमें भगवान् पार्श्वनाथकी एक फूट अवगाहनावाली श्यामवर्ण पद्मासन प्रतिमा बड़ी मनोज्ञ और सातिशय है। इसकी प्रतिष्ठा मसाढ़में हुई थी।
मन्दारगिरि
मार्ग
मन्दारगिरि क्षेत्र बिहार प्रदेशके भागलपुर जिले में भागलपुरसे ४९ कि. मी. दूर स्थित है। भागलपुरसे रेलगाड़ी जाती है। बसें भी जाती हैं । सम्मेदशिखरसे आनेवाले यात्रियोंको मधुवनसे गिरीडीह २२ कि. मी. बस या टैक्सी द्वारा, गिरीडीहसे रेल द्वारा वैद्यनाथ धाम ६९ कि. मी. (बीचमें मधुपुर स्टेशनपर ट्रेन बदलनी पड़ती है)। वैद्यनाथ धामसे बोंसी ७० कि. मी. बस द्वारा यात्रा करनी चाहिए। बोसीके बस स्टैण्डसे दिगम्बर जैन धर्मशाला २ फलाँग दूर है और बोस स्टेशनके सामने बनी हुई है । क्षेत्रके कार्यालयसे मन्दारगिरि पर्वत ३ कि. मी. दूर है। यह छोटीसी पहाड़ी है, जो लगभग ७०० फुट ऊंची है। तीर्थ-क्षेत्र
चम्पापुर क्षेत्रके वर्णनमें बताया जा चुका है कि मन्दारगिरिपर चम्पापुरीका मनोहर उद्यान था, जो प्राचीन चम्पानगरके बाह्य अंचलमें था। इस उद्यानमें भगवान् वासुपूज्यका दीक्षाकल्याणक हुआ। और यहीं उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इस प्रकार मन्दारगिरिको दो कल्याणक मनानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसीलिए प्रागैतिहासिक कालसे यह पवित्र तीर्थक्षेत्र माना जाता रहा है। यह भी अनुश्रुति है कि भगवान् वासुपूज्यके एक गणधर मन्दरको यहींपर निर्वाण प्राप्त हुआ था। . क्षेत्र-दर्शन
क्षेत्र कार्यालयसे पर्वतकी ओर चलने पर लगभग एक फलांग आगे सेठ तलकचन्द कस्तूरचन्द वारामती वालोंका वीर सं. २४६१ में बनवाया हुआ कृष्ण व श्वेत पाषाणका एक दिगम्बर जैन मन्दिर है, जो किसी कारणवश पूरा नहीं बन सका है। कहते हैं, मन्दिरके निर्माणकार्यमें उस काल में ८५०००) व्यय हुए थे।