SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ातानाका दर किया क9 बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ ४५ . 'शासन चतुस्त्रिशिका' में अनेक तीर्थों और वहाँके प्रसिद्ध जिनबिम्बोंका परिचय दिया है। किन्तु वैशाली-कुण्डपुरका नाम तक उन्होंने नहीं दिया। अपने इस महान् तीर्थ के प्रति जैनोंकी इस दीर्घकालिक उदासीनताको दूर उदारचेता मनस्वी जैनेतर विद्वानोंने। उन्होंने ३१ मार्च १९४५ को 'वैशाली संघ' नामक एक संगठनकी स्थापना की। उस संगठनके सक्रिय कार्यकर्ताओंमें बिहार सरकारके तत्कालीन शिक्षासचिव श्री जगदीशचन्द्र माथुर, डॉ. योगेन्द्र मिश्र, श्री जगन्नाथप्रसाद साहू आदि मुख्य थे । उन्होंने वैशालीके सम्बन्धमें साहित्य प्रकाशित किया, पत्रोंमें प्रचार किया। हिन्दू जनताके सहयोगसे वहाँ 'तीर्थंकर महावीर हाई स्कूल' की स्थापना की। २१ अप्रैल १९४८ को संघके प्रयत्नसे भगवान् महावीरके जन्म-स्थानपर महावीर-जयन्ती मनायी गयी, जिसमें हजारों जथरिया सम्मिलित हुए । तब जैनोंका ध्यान इस तीर्थकी ओर गया। तबसे प्रति वर्ष यहाँ महावीर-जयन्ती बिहार सरकार और संघकी ओरसे मनायो जाती है, जिसमें शोभा-यात्रा, विद्वत्सभा, सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। अब तो यह इस प्रदेशका बहुत बड़ा मेला हो गया है, जिसमें लाखों लोग सम्मिलित होते हैं। ___'वैशाली संघ' ने एक और भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उसने सन् १९५२ में Vaishali Institute of Post Graduate Studies and Research in Prakrit and Jainology Vaishali को योजना बनायी। अत्यन्त हर्षकी बात है कि 'वैशाली संघ' और बिहार सरकारने भारतके प्रख्यात उद्योगपति, जैन समाजके महान् नेता, उदारचेता साहू शान्तिप्रसादजी जैनसे इस योजनामें सहयोग देनेका अनुरोध किया। साहूजो रचनात्मक, साहित्यिक और सांस्कृतिक समुन्नयनके प्रबल हामी हैं । उन्होंने उस अनुरोधको सहर्ष स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने संस्थाके भवन और पुस्तकालयके लिए सवा छह लाख रुपये भी स्वीकृत कर लिये। वह संस्था १ दिसम्बर १९५५ में Vaishali Research Institute of Prakrit, Jainology and Ahinsa' के नामसे स्थापित हो गयी। पहले कई वर्षों तक यह मुजफ्फरपुरमें चलती रही। भवन बननेपर वैशालीमें आ गयी। यह संस्था बिहार सरकारके नियमन और निर्देशनमें अपने नामके अनुरूप बराबर कार्य कर रही है। इसमें विदेशोंके छात्रोंको भी अध्ययन करनेकी सुविधा है। वीर निर्वाण संवत् २४७८ सन् १९५१ में जैनोंने 'वैशाली-कुण्डपुर तीर्थ प्रबन्धक कमेटी' की स्थापना की। तबसे यह कमेटी दिगम्बर जैन समाजकी ओरसे तीर्थ सम्बन्धी सारी व्यवस्था कर रही है। उसने 'जैन बिहार' नामसे एक धर्मशाला बनायी है तथा एक बीघा जमीन भी ले ली है जिससे भविष्यमें विकास कार्य हो सके। इसके निकट ही पर्यटन-विभागकी ओरसे 'टूरिस्ट सेण्टर' बना हुआ है। वैशाली तीर्थ-दर्शन गुलजारबाग ( पटना ) से गंगा तटपर बना हुआ महेन्द्र घाट प्रायः ६ कि. मी. दूर है। इस घाटसे पहलेजा घाटके लिए नियमित स्टीमर सर्विस है। यहाँसे पहलेजा घाट केवल ११ कि. मी. है। पहलेजा घाटसे लगभग २ फलांग दूर बस स्टैण्ड और रेलवे स्टेशन है । यहाँसे हाजीपुरके लिए बस और ट्रेन जाती हैं । महेन्द्र घाटसे हाजीपुर ५८ कि. मी. है। पहलेजा घाटसे वैशालीको सोधी बस भी जाती है। हाजीपुरसे वैशाली ३६ कि. मी. है। हाजीपुरसे लालगंज १९ कि. मी. और लालगंजसे वैशाली १७ कि. मी. है। हाजीपुरसे लालगंज और वैशालीके लिए टैक्सी और बस मिलती हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy