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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ टैक्सी और बस जैन विहारके सामने ही ठहरती हैं। जैन बिहार सड़ककी बायीं ओर बना हुआ है। बगलमें पर्यटन केन्द्र और रेस्ट हाउस बने हुए हैं। राजा विशालका गढ़
जैन विहारके पीछे-लगभग १०० गज दूर-प्राचीन गढ़ है जो राजा विशालका गढ़ कहलाता है। वर्तमानमें यह गढ़ समतल भूमिसे कुछ ऊँचा टीला मात्र है। इसके सम्बन्धमें पुरातत्त्व विभागकी ओरसे ज्ञातव्य बातोंपर प्रकाश डाला गया है जो इस प्रकार है
"ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह टीला जो राजा विशालके गढ़के नामसे विख्यात है, प्राचीन लिच्छवियोंकी राजधानी वैशालीमें स्थित अनेक दुर्ग तथा महलोंके भग्नावशेषका द्योतक है। इस ईंटोंसे भरे आयताकार टीलेका क्षेत्रफल लगभग १ वर्गमीलसे कुछ ही कम है। समीपवर्ती खेतोंसे टीलेकी ऊंचाई ८ फीट है। यह उत्तरसे दक्षिणकी ओर १७०० फीट लम्बा तथा पूर्वसे पश्चिमकी ओर ८०० फीट चौड़ा है। इसमें चारों तरफ खाई है जो अब प्रायः भर गयी है। जनरल कनिंघमके अनुसार खाईकी चौड़ाई २०० फीट थी, परन्तु अब १२५ फीटसे अधिक नहीं जान पड़ती है। गढ़के दक्षिणकी ओर मध्य भागमें खाईके उस पार जानेके लिए एक प्रशस्त पथ है। इसके ऊपरसे प्राचीन कालमें सड़क आती होगी। इस गढ़का अन्वेषण करनेके लिए सर्वप्रथम भारत सरकारकी ओरसे सन् १८८०-८१ में कनिंघम द्वारा, १९०२-४ में वाश द्वारा और १९१३१४ में स्फूनर द्वारा खुदाई करायी गयी। तदुपरान्त १९५० में वैशाली संघके तत्त्वावधानमें श्रीकृष्णदेवने नया सिलसिला चलाया और १९५८ से ६० तक काशीप्रसाद जायसवाल इन्स्टीच्यूटके निर्देशक डॉ. अल्तेकरने यहाँ खुदाई करायी। इन सभी खुदाइयोंमें गुप्तयुगकी १००० से ऊपर मुहरें, मिट्टीकी मूर्तियाँ एवं अन्य अनेक प्रकारकी वस्तुएँ पायी गयीं हैं । खुदाई शुंग युग यानी ईसासे १५० वर्ष पहले तकके स्तरों तक की जा चुकी है । अनेक दीवारों, कमरों इत्यादिकी रूप रेखाका ज्ञान हुआ है । श्रेष्ठियों एवं व्यापारियोंको बहुत-सी मुहरें मिली हैं । प्राचीरोंके कच्चे और पक्के स्तर मिले हैं। अभी यह अनुमानका विषय है कि यह गढ़ केवल प्रशासनका केन्द्र था अथवा व्यापारियों और धार्मिक विहारोंका भी।" । महावीर-जन्मभूमि
जैन विहारसे लगभग ५ कि. मी. दूर भगवान् महावीरकी पावन जन्मभमि है।
स्थानीय जनताका सदासे दृढ़ विश्वास और आस्था रही है कि वसाढ़ ( वैशाली ) से सटा हुआ उत्तर पूर्वमें स्थित वासुकुण्ड ( कुण्डपुर ) ही भगवान् महावीरकी जन्मभूमि है। इन लोगोंने परम्परागत रूपसे उस स्थानकी प्राणपणसे सुरक्षा की है, जिस स्थान पर महाराज सिद्धार्थका नन्द्यावर्त महल था और जहाँ महावीरने जन्म लिया था। यहाँकी जथरिया जाति तो 'ज्ञातृपुत्र महावीर' को अपना महान् पूर्वज मानतो ही है, अन्य ब्राह्मगों आदिकी भी महावीरके प्रति महान् श्रद्धा है। उन्हें गर्व है कि वे उस भूमिखण्डके निवासी हैं जहाँ संसारका वह महापुरुष-महावीर उत्पन्न हुआ था। भगवान् महावीरके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करनेके लिए उन्होंने प्रायः दो बोघे जमीन पवित्र भूमिके रूपमें सुरक्षित रखी है, जिसपर उन्होंने आजतक हल नहीं चलाया। उनका विश्वास है कि भगवान् महावीरने यहीं जन्म लिया था। अब यहाँके निवासियोंने उस भूमिको बिहार सरकारको दान कर दिया है, ताकि यहाँ भगवान् महावीरका कोई स्मारक बन सके।