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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
जंकशनसे १८ मोल है। लिच्छुआड़ गाँवमें धर्मशालाके बीचमें वीरप्रभुका देवालय है। धर्मशालासे दक्षिणकी ओर क्षत्रियकुण्ड पहाड़ी है। यहाँ छोटे-छोटे दो देवालय बने हुए हैं। पहाड़ीके ऊपर भगवान्का देवालय है। यहींपर महावीर स्वामीके च्यवन, जन्म और दीक्षा ये तीन कल्याणक माने जाते हैं।
इस प्रकारको भूलें होना असाधारण है। वह भी उस स्थितिमें, जब दोनों सम्प्रदायोंकी आचार्य परम्परा निरवच्छिन्न चलती रही तथा उस प्रदेशमें जैनोंका कभी सर्वथा अभाव नहीं हआ। ऐसी दशामें ऐसी असाधारण भ्रान्तियोंका कारण भी असाधारण रहा होगा। इतिहासके पृष्ठोंको पलटने तथा उसका गहरा अध्ययन करनेपर हमें पता चलता है कि वैशाली-कुण्डपुर मगध-सम्राट श्रेणिक बिम्बसारके काल तक अविजित रही। इतना ही नहीं, श्रेणिकको वैशाली गणराज्यसे बुरी तरह पराजित होना पड़ा था। किन्तु उसके पुत्र अजातशत्रुने मगधकी इस पराजयका बदला सूद सहित वसूल किया । वैशाली और मल्ल गणराज्योंकी भीषण जन-धन हानि तो हुई ही, रथमूशल यन्त्र और महाशिलाकण्टक यन्त्रने तो वैशाली में प्रलयका दृश्य उपस्थित कर दिया। अधिकांश मकान क्षत-विक्षत हो गये, फसलें जला दी गयीं, हट्ट-बाजार लूट लिये गये। क्षत्रियोंके भीषण संहारके बाद उनके आवास सुने हो गये। वणिक लोग वाणिज्यग्रामको छोड़कर भाग गये। । आजीविकाकी टोहमें बहत-से रहे-बचे क्षत्रिय भी बाहर चले गये और बस्ती बसाकर रहने लगे। ऐसा लगता है, वे लोग जन्मभूभिसे उखड़ तो अवश्य गये, किन्तु अपने जातीय गौरवको भूल नहीं पाये। उन्हें प्रति क्षण यह स्मरण रहा कि वे लोग अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीरके कुल-गोत्रके हैं। अतः जहाँ उन्होंने बस्ती बसायी, उसका नाम उन्होंने कुण्डलपुर और क्षत्रियकुण्ड रख लिया और वहींपर उन्होंने अपनी जाति और वंशके उस लोकोत्तर महापुरुष की स्मृतिको सुरक्षित रखा। जब स्थिति सामान्य हो गयी तो वाणिज्यग्रामके हट-बाजार फिर आबाद हो गये। भागे हुए वणिक् पुनः लौट आये और उन्होंने अपने व्यवसायको सँभाला। क्षत्रिय लोग भी वापस आते गये और प्रबल पुरुषार्थसे उन्होंने टूटे हुए मकानोंको फिर खड़ा किया। कुछ वर्षोंके पश्चात् वैशालीमें फिर जीवनके चिह्न दीखने लगे।
अजातशत्रुको मृत्युके बाद उदयन मगधकी गद्दीपर बैठा। किन्तु वह अपने पिताके समान न तो महत्त्वाकांक्षी था और न उतना नीतिज्ञ ही। वह इन विजित गणराज्योंको दबाकर नहीं
१. मुम्बई जैन स्वयंसेवक मण्डल रजत महोत्सव स्मारक ग्रन्थ सं. २००१, पृ. ५० । यह क्षत्रियकुण्ड लिच्छुआड़के निकट मुंगेर जिले में है। (१) इतिहास-ग्रन्थोंसे पता चलता है कि यह भू-भाग अंगदेश या मोदगिरिके अन्तर्गत रहा था, विदेहमें कभी नहीं था। जबकि महावीरकी जन्मभूमि विदेहमें थी। (२) यह क्षत्रियकुण्ड पहाड़पर बसा हुआ है। किन्तु किसी जैनशास्त्रमें प्राचीन क्षत्रियकुण्डपुरके पहाड़पर बसे होनेका उल्लेख नहीं मिलता। (३) प्रस्तुत क्षत्रियकुण्डके पास एक नाला बहता है किन्तु यह गण्डक नदी नहीं है। आज भी गण्डक वैशाली के निकट बहती है। (४) क्षत्रियकुण्डग्राम वैशाली के निकट था। किन्तु प्रस्तुत क्षत्रियकुण्डके निकट वैशालीके कोई चिह्न तक नहीं हैं। (५) विदेह गंगाके उत्तरमें है, जबकि क्षत्रियकुण्ड गंगाके दक्षिण में है। (६) बसाढ़ (प्राचीन वैशाली ) के आसपास अब भी पुराने नामवाले ग्राम हैं। (७) पुरातत्त्व विभागने सिद्ध कर दिया है कि वासुकुण्ड ही वस्तुतः क्षत्रियकुण्ड है । (८) यहाँकी जैनेतर जनताका भी विश्वास है कि वासुकुण्ड ही महावीरकी जन्मभूमि है। इन सब कारणोंसे श्वेताम्बरोंके क्षत्रियकुण्डको भगवान् महावीरकी जन्मभूमि नहीं माना जा सकता। -An early history Vaishali by Yogendra Mishra pp. 221-22,