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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ ३७ भो अपने इस दुखकी चर्चा की। श्रेणिकने उसे समझा-बुझा दिया। किन्तु रानी दोहलेको भूल नहीं सकी। वह ससझ गयी कि गर्भमें कोई भयंकर उत्पाती जीव आया है। इसलिए पूत्र उत्पन्न होते ही रानीने उसे घूरेपर फिकवा दिया। श्रेणिकको जब ज्ञात हुआ तो वह उसे उठा लाया और उसका यथावत् लालन-पालन हुआ। बड़ा होनेपर कुणिक बड़ा उद्दण्ड, महत्त्वाकांक्षी और उच्छृखल प्रकृतिका बना। चेलनाके तीन पुत्र थे-कुणिक, हल्ल और विहल्ल। श्रेणिकने कुणिकको युवराज बना दिया । उसने हल्लको एक सुन्दर हाथी दिया, जिसका नाम सचेतक था और विहल्लको बहुमूल्य रत्नहार दिया। श्रेणिक की कई रानियोंका भी वर्णन आगमोंमें आया है। इन रानियोंके नाम-सुनन्दा, धारिणी, क्षेमा, चेलना, कोशलदेवी थे। इन रानियोंकी कुछ सन्तानें घर-बार छोड़कर प्रबजित हो गयीं। उस समय अजातशत्रुके अतिरिक्त दस पुत्र और थे। अजातशत्रुने अपने इन दस भाइयोंको राज्यका लोभ देकर अपनी ओर मिला लिया और अपने पिताको बन्दी बना लिया। कुछ समय पश्चात् श्रेणिककी मृत्यु हो गयी। जिन परिस्थितियोंमें उनकी मृत्यु हुई, उससे अजातशत्रुको गहरा आघात लगा। उसने शोक भुलानेके लिए अपनी राजधानी राजगृहसे हटाकर चम्पाको बनाया। वहाँ हल्ल और विहल्ल हाथीपर चढ़कर मौज करते-फिरते थे। अजातशत्रुकी रानी पद्मावती थी। उसने अपने पतिके कान भरे। उसके सिखानेपर अजातशत्रु एक दिन अपने दोनों भाइयोंसे बोला—यह गन्धहस्ती और हार मुझे अपने पुत्र उदयनके लिए चाहिए। वह घूमा करेगा। दोनों भाइयोंने सोचा-'यह तो राजा है, बलवान् है। यदि विरोध किया तो जबरदस्ती छीन लेगा। लेकिन पिताने इसे राज्य दिया था और हमें ये दोनों चीजें। तब हम ये क्यों दें।' विचार-विमर्शके बाद वे दोनों चुपकेसे वहाँसे खिसक गये और वैशालीमें अपने नाना चेटकके पास जा पहुंचे। अजातशत्रुको पता चला तो वह बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने वैशालीके गणपति चेटकके पास दूत भेजा और कहलाया कि या तो तुम हल्ल-विहल्लको हाथी और हार सहित वापस भेज दो, या फिर युद्धके लिए तैयार हो जाओ। चेटकने शरणागतोंकी रक्षाके लिए युद्ध स्वीकार किया। अजातशत्रुने दसों भाइयोंको बुलाकर उनसे कहा-तुम लोग तीन हजार हाथी, तीन हजार घोड़े और तीन कोटि पदाति लेकर आओ। वे सभी भाई इतनी-इतनी सेना ले आये। अजातशत्रकी फौजमें ३३००० हाथी, ३३००० घोड़े, ३३ कोटि मनुष्य थे। वह अपनी फौज सजाकर चला और अंग जनपदके मध्य होते हुए विदेह जनपदमें जो वैशाली नगरी थी, उसके निकट जा पहुंचा। "अंग जणवयस्स मज्झं मज्झेणं जेणेव विदेह जणवये जेणेव वेसाली, नगरी तेणेव पहारेत्थ गणणाए।" राजा चेटकको कुणिकके अभियानका पता चला तो उन्होंने "नवमल्लइ नवलच्छइ कोसलमा अठारस गणरायाणो" अर्थात् काशी, कोशलके नौ मल्ल और नौ लिच्छवि इन १८ गणराजाओंको बुलाकर परामर्श किया। फलतः प्रत्येक राज्यने ३००० हाथी, ३००० रथ, ३००० घोड़े और तीन कोटि पदाति सेना दी। इस प्रकार चेटककी कुल सैन्य शक्तिमें ५७००० हाथी, ५७००० रथ, ५७००० घोड़े और ५७ कोटि मनुष्य थे। १. निरियावलिका, ९६ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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