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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ 'सुना है, भन्ते !...' 'जबतक....' तब भगवान्ने वर्षकार ब्राह्मणको सम्बोधित किया
'ब्राह्मण ! एक समयमें वैशालीके सारन्दद-चैत्यमें विहार करता था। वहाँ मैंने वज्जियोंको यह सात अपरिहाणीय धर्म ( अ-पतनके नियम ) कहे। जबतक ब्राह्मण ! यह सात अपरिहाणीय धर्म वज्जियोंमें रहेंगे, इन सात अपरिहाणोय धर्मों में वज्जी दिखलाई पड़ेंगे, तबतक ब्राह्मण ! वज्जियोंकी वृद्धि ही समझना, हानि नहीं।'
ऐसा कहनेपर वर्षकार ब्राह्मण भगवान्से बोला
"हे गौतम ! इनमें से एक भी अपरिहाणीय धर्मसे वज्जियोंकी वृद्धि ही समझनी होगी, सात अपरिहाणीय धर्मोंकी तो बात ही क्या है। हे गौतम ! राजाको उपलाप (रिश्वत देना ) या आपसमें फूटको छोड़ युद्ध करना ठीक नहीं। हन्त ! हे गौतम! अब हम जाते हैं । हम बहुकृत्य, बहुकरणीय ( बहुत कामवाले ) हैं।
ब्राह्मण ! जिसका तू काल समझता है।
तब मगध-महामात्य वर्षकार ब्राह्मण भगवान्के भाषणको अभिनन्दन कर, अनुमोदन कर, आसनसे उठकर चला गया।"
उपर्युक्त विवरणसे स्पष्ट है कि महात्मा बुद्धने चाणाक्ष वर्षकारको गूढ संकेत दिया और उसने उस संकेतको समझ लिया। स्पष्ट ही यह संकेत यह था कि जबतक वज्जियोंका ऐकमत्य भंग नहीं किया जायेगा, तबतक वज्जियोंको कोई हानि नहीं पहुँचायी जा सकेगी। यदि महात्मा बुद्धको वज्जियोंको हानि पहुंचाना अभीष्ट न होता तो वे वर्षकारके द्वारा अजातशत्रुको वज्जियोंको उच्छिन्न करनेके संकल्पसे विरत करनेका उपदेश दे सकते थे। भले ही उनके उपदेशको अजातशत्रु स्वीकार करता या न करता।
इस सन्दर्भमें महात्मा बुद्धके जीवनकी एक महत्त्वपूर्ण घटनाका स्मरण हो आया। श्रावस्ती नरेश प्रसेनजित्ने एक बार शाक्य संघसे अपने लिए एक कन्या माँगी। तब शाक्योंने एकत्रित होकर विचार किया-'राजा प्रबल है। यदि न देंगे तो वह हमारा नाश कर देगा। किन्तु कुलमें वह हमारे समान नहीं है। तब क्या करना चाहिए।' तब बुद्धके छोटे चाचाके पुत्र महानामने कहा-'मेरी दासीकी कोखसे उत्पन्न वासवखत्तिया नामक अत्यन्त सुन्दरी कन्या है, उसे देंगे।' यह निश्चय कर उस कन्याको प्रसेनजित्को दे दिया। उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम विदूडभ रखा । राजाने छोटी उमरमें ही उसे सेनापतिका पद दे दिया।
जब वह सोलह वर्षका था, तब वह अपनी ननिहाल पहुंचा तो शाक्योंने उससे छोटी उमरके बालकोंको देहात भेज दिया। संस्थागारमें उसे बुलाकर सबका परिचय कराया-ये तुम्हारे मातामह हैं, ये तुम्हारे मातुल हैं आदि। उसने सबको नमस्कार किया किन्तु उसे किसीने भी नमस्कार नहीं किया। यह बात उसकी दृष्टिसे छिपी नहीं रह सकी। उसने पूछा भी-क्या है, मुझे एक भी वन्दना नहीं करता। तब शाक्य राजाओंने उत्तर दिया- 'तुमसे छोटे कुमार गये हुए हैं।' शाक्योंने उसका बहुत सत्कार किया। वह कुछ दिन वास कर वहाँसे अपने परिकरके साथ चला, तब एक दासी संस्थागारमें उसके बैठनेके फलकको दूध-पानीसे धोती 'यह वासवखत्तिया दासीके पुत्रके बैठनेका फलक है' कह निन्दा करती थी। विदूडभका एक आदमी अपना हथियार भूलकर उसे लेनेके लिए लौटा। उसे लेते समय विदूडभ कुमारकी निन्दाके उस शब्दको सुन, उससे वह बात पूछकर उसने सेनामें कह दिया। इससे बड़ा कोलाहल मचा। उसे सुनकर