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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ उदयनके राज्यारोहणके कुछ वर्ष बाद भगवान् महावीरके पास जाकर जैन आर्यिकाकी दीक्षा ले ली। चेलनाके तीन पुत्र हुए-कुणिक (अजातशत्रु ), हल्ल और विहल्ल। कुणिक युवराज था। उसने अपने पिता श्रेणिकको बन्दी बनाकर राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। जब श्रेणिककी मृत्यु हो गयी तो कुणिकको अपने व्यवहार पर बहुत दुःख हुआ और वह अपनी राजधानी पाटलिपुत्रसे हटाकर चम्पा ले गया। श्वेताम्बर आगमोंके इन विवरणोंसे दिगम्बर शास्त्रोंके तत्सम्बन्धी उल्लेखोंमें जो अन्तर है, वह स्पष्ट है । श्वेताम्बर साहित्यमें त्रिशलाको चेटकको बहन माना है, ज्येष्ठाका विवाह नन्दीवर्धनके साथ बताया है, चन्दनाको दधिवाहनकी पुत्री स्वीकार किया है और चेटककी सन्तानोंमें सात पुत्रियोंके अतिरिक्त कोई पुत्र नहीं माना है, जबकि दिगम्बर साहित्यमें चेटकके दस पुत्रोंके नाम मिलते हैं। उन पुत्रोंमें सिंहभद्र भी एक पुत्र है, जिसको बौद्ध साहित्यमें वैशालीका सेनापति बताया है। चेटक भगवान् पार्श्वनाथको परम्पराके अनुयायी थे। उनका प्रण था कि मैं अपनी पुत्री किसी अजैनको नहीं दूंगा। इसलिए उन्होंने अपनी इच्छासे जिन चार पुत्रियोंका विवाह किया, वे जैन राजाओंको ही विवाही गयीं । सिद्धार्थ, शतानीक, दशरथ, उदयन ये चारों राजा जैन थे। चेलनाका विवाह चेटकने नहीं किया था, बल्कि चेलना और श्रेणिकने परस्पर प्रेम-विवाह किया था। श्रेणिक उस समय बुद्धका अनुयायो था, किन्तु चेलनाने कुछ समय बाद उसे महावीरका अनुयायी बना दिया। चेटककी इस प्रतिज्ञाको उनकी निश्चल धर्म-निष्ठा कहा जा सकता है। - चेटक पक्के निशानेबाज थे, किन्तु एक दिनमें एकसे अधिक निशाना नहीं लगाते थे। उनकी मृत्यु किस प्रकार हुई, यह जानना भी रोचक होगा। किन्तु उनकी मृत्युका सम्बन्ध वैशालीके पतनसे जुड़ा हुआ है, अतः उसी प्रसंगमें इसका उल्लेख करना उपयुक्त होगा। वैशालीके पतनको भूमिका पूर्वी भारतके शक्तिशाली गणराज्य वैशालीका पतन किन कारणोंसे हुआ? क्या साम्राज्यवादी अजातशत्रुको उद्दाम लालसा और कुटिल दुरभिसन्धिने वैशालीके जनतन्त्री रूपका विनाश किया अथवा किसी अन्य व्यक्तिकी कुटिल इच्छाओंपर वैशालीकी बलि हुई ? ये तथा ऐसे ही कुछ अन्य प्रश्न हैं, जिनका निष्पक्ष उत्तर आजका इतिहास चाहता है। इस प्रसंगमें हम 'बौद्ध साहित्यका अवतरण देना आवश्यक समझते हैं। इससे इन प्रश्नोंका समाधान पाने में सहायता मिल सकेगी। अट्ठकहामें वर्णित है कि "उस समय राजा मागध अजातशत्रु वैदेही पुत्र वज्जीपर चढ़ाई करना चाहता था। वह ऐसा कहता था-'मैं इन ऐसे महद्धिक, ऐसे महानुभाव वज्जियोंको उच्छिन्न करूँगा, वज्जियोंका विनाश करूँगा, उनपर आफत ढाऊँगा।' __..-तब अजातशत्रुने मगधके महामात्य वर्षकार ब्राह्मणसे कहा-'आओ ब्राह्मण ! जह भगवान् हैं, वहाँ जाओ। जाकर मेरे वचनसे भगवान्के पैरोंमें शिरसे वन्दना करो। आरोग्य, अल्प आतंक, लघु उत्थान, सुख विहार पूछो—'भन्ते! राजा वन्दना करता है, आरोग्य पूछता है।' और यह कहो-'भन्ते ! राजा वज्जियोंपर चढ़ाई करना चाहता है। वह ऐसा कहता है१. कल्पसूत्र, भगवती सूत्र । २. सीहसुत्त । ३. भगवती सूत्र । ४. दीघनिकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त । भाग २-५
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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