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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
भगवान्के आहारका समाचार सुनकर कौशाम्बी नरेशकी रानी मृगावती वहाँ आयी। वहाँ अपनी छोटी बहनको देखकर उसे बड़ा आश्चर्यमिश्रित हर्ष हुआ। चन्दनासे सम्पूर्ण समाचार जानकर वह इसे अपने साथ ले गयी और अपने पिताको समाचार भेज दिया। वहाँसे उसके भाई आ गये। एक दिन सब लोग भगवान्के दर्शनोंके लिए गये। वहाँ वैराग्य उत्पन्न होनेसे चन्दनाने आर्यिका-दीक्षा ले ली। वे भगवानके आर्यिका संघकी गणिनी बन गयीं।
श्वेताम्बर आगमोंमें भी चेटकके सात पूत्रियाँ मानी हैं। किन्तु नामोंमें साधारण-सा अन्तर है। उनके अनुसार प्रभावती, पद्मावती, शिवादेवी, मृमावती, ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा और चेलना ये सात पुत्रियाँ थीं। भगवती सूत्र और 'कल्पसूत्र' में इनके सम्बन्धमें कुछ विस्तृत विवरण मिलता है जो यहाँ दिया जा रहा है
प्रभावती सिन्धु सौवीर के राजा उदायनके साथ ब्याही गयी। इसकी राजधानी वीतभयपट्टन थी। प्रभावती पटरानी थी। वह जिनेन्द्र भगवान्की एक प्रतिमाकी प्रतिदिन पूजा किया करती थी। जब उसे अपनी मृत्युका निश्चय हो गया तो उसने दोक्षा ले ली और वह प्रतिमा अपनी विश्वस्त दासीको दे दी, जिससे पूजा, उपासना होती रहे । कुछ वर्ष पश्चात् दासीका विवाह अवन्तीनरेश चण्डके साथ हो गया। वह अपनी पत्नी और उक्त प्रतिमाको अपने हाथी मालगिरि पर ले गया। राजा उदायनको जब ज्ञात हुआ तो उसने राजा चण्डपर आक्रमण कर दिया और उसे बन्दी बना लिया। किन्तु जब उदायन मूर्ति लेने पहुंचा तो मूर्ति वहाँसे हिली तक नहीं। वह चण्डको बन्दी बनाकर ले गया। मार्गमें जब उसे ज्ञात हुआ कि चण्ड भी जैन है तो उदायनने उसे रिहा कर दिया और उससे क्षमा मांगी। ___एक बार महावीर विहार करते हुए वीतभयपट्टन पधारे। उदायन उनके दर्शनोंके लिए गया। दर्शन करके भगवान्का उपदेश सुना। उपदेश सुनकर उसे वैराग्य हो गया। उसने अपने भांजे केशीकुमारको राज्य देकर भगवान्के पास दीक्षा ले ली।
द्वितीय पुत्री पद्मावती अंगनरेश दधिवाहनके साथ ब्याही थी। एक बार वत्सनरेश शतानीकने चम्पापर आक्रमण किया। दधिवाहन युद्ध में मारा गया। किसी सैनिकने उसकी रानी धारिणी ( पद्मावती ) को पकड़ लिया और उसे अपनी स्त्री बनाना चाहा। रानी अपनी जीभ काटकर मर गयी । तब उस सैनिकने उनकी पुत्री वसुमतीको कौशाम्बी नगरीके चौराहे पर लाकर बिक्रीके लिए बैठा दिया। उसे धनावह सेठने मोल लेकर उसका नाम चन्दना रख दिया और अपनी पुत्री बनाकर घर ले गया। एक बार सेठकी पत्नी मूलाने ईर्ष्यावश चन्दनाके बाल काट दिये, उसे देहलीमें बैठाकर सूपमें खानेके लिए नाकले दे दिये और साँकलमें बाँधकर कहीं चली गयी। तभी अभिग्रह धारण करके भगवान् महावीर भिक्षाके लिए निकले। भगवान्ने अभिग्रह पूरे हुए जानकर उसके हाथसे आहार लिया।
शिवदेवी अवन्ती नरेश चण्डप्रद्योतको विवाही गयी। मुगावती वत्सनरेश शतानीककी पटरानी बनी । इतिहास प्रसिद्ध उदयन इसीका पुत्र था। ज्येष्ठाका विवाह महावीरके ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धनके साथ हुआ। चेलना श्रेणिककी पटरानी थी। सुज्येष्ठा जीवन भर कुँआरी रही।
अवन्तीनरेश चण्डप्रद्योतने कौशाम्बीकी पटरानी मृगावतीकी सुन्दरता पर मोहित होकर एक बार कौशाम्बीपर आक्रमण किया था। किन्तु इसमें उसे सफलता नहीं मिल पायी । मृगावतीने
१. भगवती सूत्र । २. कल्पसूत्र, श्रीमद्विनयविजयगणि विरचित सुबोधिका वृत्ति, षष्ठः क्षणः, पृष्ठ १६९ ।