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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ इन पुत्रियोंके अतिरिक्त 'उत्तरपुराण के अनुसार राजा चेटकके दस पुत्र भी थे, जिनके नाम इस प्रकार थे-धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास।
इन पुत्रियोंके सम्बन्धमें भी इस पुराणमें कुछ विस्तृत जानकारी मिलती है। ऐतिहासिक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्यमें यह जानकारी बड़ी उपयोगी है, साथ ही रोचक भी।
___ विदेह देशके कुण्डपुरमें नाथवंशके शिरोमणि राजा सिद्धार्थ थे। बड़ी पुत्री प्रियकारिणी उनकी स्त्री हुई।
वत्सदेशकी कौशाम्बी नगरीमें चन्द्रवंशी राजा शतानीक थे। मृगावती उनसे विवाही गयी।
दशार्ण देशके हेमकच्छ नगरके नरेश सूर्यवंशी दशरथ थे। सुप्रभाका विवाह उनके साथ हुआ।
कच्छ देशकी रोरुक नगरीमें उदयन राजा राज्य करता था। प्रभावती उनको दी गयी।
गान्धार देशके महीपुर नगरके नरेश सत्यकिने चेटकसे उनकी पुत्री ज्येष्ठाकी याचना की, किन्तु चेटकने उसे स्वीकार नहीं किया। सत्यकिने इसके लिए वैशालीके साथ युद्ध भी किया, किन्तु वह पराजित हो गया और लज्जाके कारण वह मुनि बन गया।
एक बार ज्येष्ठा और चेलनाके चित्र देखकर मगध नरेश श्रेणिक विम्बसार दोनों कन्याओंपर आसक्त हो गये । तब उनके बुद्धिमान् पुत्र अभयकुमारने राजा श्रेणिकका सुन्दर चित्र बनवाया
और व्यापारी बनकर युक्तिसे चेटकके घरमें गया। वहाँ उन दोनों कन्याओंको वह चित्रपट दिखाया। देखते ही दोनों उसपर मोहित हो गयीं। अभयकुमारने पहलेसे ही एक सुरंग तैयार करवा ली थी। उसने दोनोंको सुरंगके द्वारपर पहुँचनेका संकेत कर दिया। फलतः दोनों बहनें यथा समय संकेत स्थान पर पहुँची। दोनोंमें चेलना अधिक चतुर थी। वह ज्येष्ठासे बोली-'मेरा हार तो घर पर ही रह गया है। तू जाकर जल्दो लेआ।' भोली-भाली ज्येष्ठा उसके चकमेमें आ गयी । वह ज्यों ही हार लेने गयी, चेलना अभयकुमारको लेकर सुरंग द्वारा राजगृहके राजमहलोंमें पहुँच गयी। चेलनाको देखकर श्रेणिक अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने चेलनाका बड़ा सम्मान किया और अपनी पटरानी बना दिया ।
जब ज्येष्ठा हार लेकर संकेत स्थान पर पहुंची तो वहाँ चेलनाको न पाकर बड़ी निराश हुई। वह वहींपर रातभर प्रतीक्षा करती रही । प्रातःकाल होनेपर लज्जा और भयके कारण वह घरपर नहीं गयी, और आर्यिकाओंके पास जाकर दीक्षा 'ले लेती।
चन्दनाको उद्यानसे एक विद्याधर उड़ा ले गया। मागमें उसकी स्त्री मिल गयी। उसके भयके मारे उसने चन्दनाको भयानक जंगलमें छोड़ दिया। चन्दना वहाँसे विधि-विधानके क्रूर व्यंग्योंको सहन करती हुई कौशाम्बीमें सेठ वृषभसेनके पास पहुँच गयी। सेठने उसे पुत्री मानकर रख लिया। चन्दनाके रूप-लावण्यको देखकर सेठानी उससे ईर्ष्या करने लगी। एक दिन जब सेठ कहीं परदेश गये हुए थे, सेठानीने चन्दनाके बाल काट दिये, उसे जंजीरोंसे बाँध दिया और खराब
जन देने लगी। एक दिन भगवान् महावीर आहारके लिए नगरीमें पधारे। भगवान्को देखकर चन्दना आहार देनेके लिए आगे बढ़ी। उसकी जंजीरें स्वतः टूट गयीं। उसने भक्तिपूर्वक भगवान्को आहार दिया। इस आहार-दानके प्रभावसे देवोंने रत्नवर्षा की, पुष्प बरसाये, देव-दुन्दुभी बजने लगी। देवलोग उसकी और उसके दानकी प्रशंसा करने लगे।
१. हरिषेण कथाकोष-कथा ९७ ।