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________________ -20 भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उस कालमें भारतमें विशेषतः पूर्वी भारतकी महानगरियोंमें दास-प्रथाका जोर था। बाजारों-हट्टोंमें विभिन्न देशोंसे पकड़कर लाये गये दास और दासियाँ बिकने आते थे। कई बार दासोंके सौदागर सम्भ्रान्त परिवारके बालक-बालिकाओं और तरुण स्त्री-पुरुषों तकको उडा ले जाते थे। वे जंजीरों में बाँधकर रखे जाते थे और जानवरोंके समान उनके साथ क्रूर व्यवहार किया जाता था। एक बार इन कर सौदागरोंके चंगुलमें फंसनेपर जीवन-भर दास-जीवन व्यतीत करनेपर बाध्य होना पड़ता था। ये सौदागर सुदूर परुष्क, यवन, काम्बोज, पारसीक आदि देशोंसे सुन्दर युवतियोंको बेचने लाते थे। ये दास-दासी रूप, वय, वर्ण आदिके अनुसार मूल्यमें बेचेखरीदे जाते थे। राजघरानों, श्रेष्ठीजनों और सम्पन्न परिवारों में दासियोंके रेवड़ रहते थे और उनसे अवैध और जारज सन्तान उत्पन्न होती थीं। . वैशाली भी दास-प्रथाके इस रोगसे बच नहीं पायी। यहाँ लिच्छवियोंसे अधिक अलिच्छविजन थे, जिनके यहाँ दास-दासियोंकी खपत होती थी। हाँ, यह बात अवश्य थी कि राजतन्त्री नगरोंकी अपेक्षा वैशालीमें दासोंके साथ सहृदय और मानवोचित व्यवहार होता था तथा एक बार वैशालीमें आनेके बाद वह दास वैशालीसे बाहर बिक नहीं सकता था। वैशालीमें दासोंकी संख्या कितनी थी, यह तो निश्चयपूर्वक कहना कठिन है, किन्तु ब्राह्मणी देवानन्दाका जो चरित्र भगवती सूत्रमें दिया है, उससे ज्ञात होता है कि उस समय वैशालीमें अलिच्छवी सम्भ्रान्त जनोंमें दास-दासियाँ रखनेका बहुत रिवाज था। 'भगवती सूत्र के अनुसार जब ब्राह्मणी देवानन्दा ब्राह्मण कुण्डग्रामके बाहर बहुशाल चैत्यमें ठहरे हुए भगवान् महावीरके दर्शनोंके लिए चली तो उसके साथ बर्बर देश, चउसिम देश, ऋषिगण देश, खारुगणिका देश, यवन देश, पल्लवित देश, ह्लासिका देश, लकुसित देश, अरब देश, सिंहल, द्रमिल, पुलिन्द, पुष्कल, वहल, मुरण्ड, शवर, पारस्य आदि देशोंकी सुसज्जित दासियाँ थीं। इससे पता चलता है कि उस कालमें दासोंका व्यापार कितना समुन्नत था तथा कोई इसे बुरा नहीं समझता था। इतना ही क्यों, दासदासियोंकी जिसके पास जितनी अधिक संख्या होती थी, उसी परिमाणमें वह पूण्यात्मा समझा जाता था। मनुष्यके क्रय-विक्रयकी इस क्रूर प्रथाका अन्त तीर्थंकर महावीरने किया। गणपति चेटक ___जैन साहित्यमें वैशाली संघके गणपतिका नाम चेटक दिया गया है। उनका तथा उनके परिवारका परिचय हरिषेण कथाकोषमें दिया गया है, जिसका आशय इस प्रकार है वैशाली नगरीके राजा चेटक थे। उनकी रानीका नाम सभद्रा था। इनके सात प्रत्रियाँ थीं-प्रियकारिणी, सुप्रभा, प्रभावती, सिप्रादेवी ( प्रियावती ), सुज्येष्ठा ( ज्येष्ठा ), चेलना और चन्दना। ___ इसी ग्रन्थमें अन्यत्र चेटकके माता-पिताका नाम 'यशोमती' और 'केक' दिया है। उत्तरपुराणमें चेटककी पुत्रियोंके नामोंमें कुछ अन्तर है। उसके अनुसार प्रियकारिणी, मगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चन्दना ये सात पुत्रियाँ थीं। इन नामोंमें क्रमके साधारण अन्तरके अतिरिक्त केवल एक नाममें अन्तर है। कथाकोषमें सिप्रादेवी ( प्रियावती) दिया है, जबकि उत्तरपुराणमें मृगावती नाम आया है। १. ९।३३। २. निरयावलियाओ, पृ. २७ । ३. हरिषेण कथाकोष, कथा ९७ । ४. वही, पृ. ५५ । ५. उत्तरपुराण, पर्व ७५ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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