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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ नगरके मध्यमें एक 'मंगल पुष्करिणी' थी। इसका जल अत्यन्त निर्मल था । समय-समयपर इसका जल बदला जाता रहता था। इसमें लिच्छवियोंके अतिरिक्त किसी अन्यको-अलिच्छविको स्नान-मज्जन करनेका निषेध था। इस पुष्करिणीमें पशु और पक्षी तक प्रवेश नहीं कर सकते थे। इसके ऊपर लोहेकी जाली रहती थी। इसके चारों ओर पक्की प्राचीर बनी हुई थी। चारों दिशाओंमें द्वार और सीढियाँ बनी हई थीं। द्वारों पर सशस्र प्रहरी रहते थे। यदि कोई किसी प्रकार चोरीसे इस पुष्करिणीमें अवगाहन या स्नान करनेका साहस करता था तो उसको मृत्यु-दण्ड दिया जाता था। जब राजाओं ( सदस्यों) का चुनाव होता था, उस समय नवीन राजाके अभिषेककी रस्म इस पुष्करिणीमें स्नान करके ही सम्पन्न होती थी। कभी-कभी गण-संघ किसी विशेष व्यक्तिको भी इसमें स्नान करनेकी अनुमति प्रदान कर देता था।
इस पुष्करिणीकी ख्याति सुदूर देशों तक थी। कभी-कभी दूसरे देशके राजा लोग इसमें स्नान करनेके लिए संघसे अनुमति देनेकी प्रार्थना करते थे। किन्तु गगसंघने कभी किसी बाहरी व्यक्तिकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की। नगर वधू
___वैशाली में एक कानून प्रचलित था कि नगरकी सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी कन्या विवाह नहीं कर सकती थी। कानून द्वारा उसे 'नगर वधू' अथवा 'नगर शोभिनी' बनाकर सर्वभोग्या बना दिया जाता था। उस समय महानामन नामक लिच्छवीकी एक कन्या थी, जिसका नाम था आम्रपाली। ( कहते हैं, यह कन्या उसे आम्रवनमें कपड़ेमें लिपटी हुई मिली थी। इसलिए उसका नाम आम्रपाली रख दिया था।)
जब वह १२-१३ वर्षकी थी तो उस बालिका का सौन्दर्य लोगोंकी निगाहमें आया। यह बात गण-परिषद् तक पहुंची। वहाँ वह बालिका बुलायी गयी और उसे सर्वसम्मतिसे सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी स्वीकार किया गया तथा उसके पिता महानामनको यह बता दिया गया कि उसकी कन्याको 'नगर वधू' का सम्मानपूर्ण पद देनेका निश्चय वैशालीगणने किया है । महानामनकी स्वीकृति मिलनेपर आम्रपालीको नृत्य, गान, वार्तालाप और स्वागत करनेकी शिक्षा विधिपूर्वक दी गयी। जब वह इन बातोंमें निष्णात हो गयी, तब उसे गण-परिषद्के समक्ष बुलाकर 'जनपद-कल्याणी' का सम्मानपूर्ण पद दिया गया और मंगल-पुष्करिणीमें मंगल-स्नान महोत्सवपूर्वक किया गया। इस प्रकार वह 'नगर-वधू' घोषित हो गयी।
बौद्ध ग्रन्थोंसे पता चलता है कि एक बार महात्मा बुद्ध वैशाली पधारे थे, उस समय आम्रपालीने बुद्धको संघ-सहित भोजनका निमन्त्रण दिया था। जब बुद्ध संघ सहित उसके आवासमें जाकर भोजन कर चुके, उस समय आम्रपालीने अपना आराम ( उद्यान ) भिक्षुसंघको भेंट कर दिया और स्वयं भिक्षुणी बन गयी। .. वैशालीके लिच्छवी
वैशालीमें लिच्छवियोंका गणशासन था। वैशालीके अष्टकुल लिच्छवी थे। किन्तु इतिहासकारोंके समक्ष एक प्रश्न उठता रहा है कि ये लिच्छवी कौन थे? क्या ये विदेहके मूल निवासी थे अथवा कहीं बाहरसे आकर यहाँ बस गये थे? ये और ऐसे ही कई प्रश्न हैं जिनका समाधान होना अभी शेष है।