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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ डॉ. विन्सैण्ट ए. स्मिथकी मान्यता है कि लिच्छवी मूलतः तिब्बती थे। डॉ. विद्याभूषण मानते हैं कि लिच्छवी पर्शियन थे। वे अपने मूल निवास स्थान निसिबी ( Nisibi ) से निकलकर भारत और तिब्बतमें बस गये। डॉ. हौजसन ( Hodgson ) का मत है कि वे सीथियन थे। वैजयन्ती कोषमें वर्णन मिलता है कि एक क्षत्रिय कूमारीका विवाह व्रात्यके साथ हआ जो लिच्छवी . था। अमरसिंह, हलायुध, हेमचन्द्र आदिके अनुसार वे क्षत्रिय और व्रात्य थे। वोटलिंक ( Bohtlingk ), रोथ ( Roth) और मौनियर विलियम्सका अभिमत है कि ये लोग राजवंशी थे।" मि. दुल्वा ( Dulva ) ने सिद्ध किया है कि लिच्छवी क्षत्रिय थे।" उन्होंने बौद्ध ग्रन्थोंका एक अवतरण इसकी पुष्टिमें दिया है कि जब 'मोग्गलायन भिक्षाके लिए वैशालीमें प्रविष्ट हुए, उस समय लिच्छवी मगध सम्राट् अजातशत्रुका प्रतिरोध करनेके लिए बाहर निकल रहे थे। लिच्छवियोंने भक्तिपूर्वक उनसे पूछा-'भगवन् ! हमलोग अजातशत्रुके विरुद्ध इस युद्ध में विजयी होंगे या नहीं ?' मौग्गलायनने उत्तर दिया-'हे वशिष्ठगोत्रियो ! तुम्हारी विजय होगी।' इससे सिद्ध होता है कि लिच्छवी क्षत्रिय थे क्योंकि वशिष्ठगोत्रीय क्षत्रिय होते थे। ___'दीघनिकाय'-महापरिनिव्वाणसुत्तमें आया है कि बुद्ध के निर्वाण होनेपर उनके अवशेषप्राप्तिके लिए लिच्छवियोंने दावा किया और कहा कि हम भी भगवान की जातिके हैं-'भगवं पि खत्तिओ, मायं पि खत्तिया।' सम्पूर्ण जैन-दिगम्बर और श्वेताम्बर साहित्यमें महावीर और उनके पिता तथा माताको क्षत्रिय बताया है। वे ज्ञातृवंशी लिच्छवी क्षत्रिय थे। जैन वाङ्मयके अनुशीलनसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि लिच्छवी कहीं बाहरसे आकर यहाँ नहीं बसे थे, अपितु यहींके मूल निवासी थे। ___ लिच्छवियोंके स्वभाव, शील, रहन-सहन, उनके रीति-रिवाज आदिके सम्बन्धमें किसी एक ग्रन्थमें पूरा वर्णन नहीं मिलता है, बल्कि विभिन्न बौद्ध ग्रन्थों और जैनागमोंमें बिखरा हआ विवरण प्राप्त होता है। उस सबको संकलित करनेपर लिच्छवियोंकी कुछ स्पष्ट तसवीर बन सकती है। ___वैशालीके लिच्छवी युवक स्वातन्त्र्य प्रिय, मौजी, सुन्दर और जीवन रससे लबालब भरे हुए थे। वे सुन्दर वस्त्र पहनते थे । अपने रथोंको तेज चलाते थे। बुद्धने भी एक बार अपने भिक्षुओंसे कहा था कि जिन्होंने त्रायस्त्रिशके देवता न देखे हों, वे इन लिच्छवियोंको देख लें। लिच्छवियों की वेशभूषाके सम्बन्धमें बौद्ध ग्रन्थ 'महावस्तू' में बड़ा रोचक वर्णन मिलता है। उससे ज्ञात होता है कि लिच्छवी लोगोंको नयनाभिराम और पंचरंगी वेशभूषा अधिक प्रिय थी। वे लोग अरुणाभ, पीताभ, श्वेताभ, हरिताभ और नीलाभ वस्त्र पहनकर जब बाहर निकलते थे तो उनकी शान और शोभा देखते ही बनती थी। जो लोग अरुणाभ वस्त्र पहनते थे, उनके घोड़े, लगाम, चाबुक, अलंकार, मुकुट, छत्र, तलवार की मूंठपर लगी मणियाँ, पादुका और हाथकी पंखी तक लाल होती थीं। १. Ind. Ant. Vol. XXXII, pp. 233-236. २. Ind. Ant. Vol. XXXVII PP. 78-80. ३. Collected essays by Hodgson (Trubner's edition) p. 17. ४. A Sanskrit English Dictionary by Monier Williams, p. 902, Edition 1899. 4. The Life of the Buddha, by Rockhill, p. 97, Footnote. ६. Watter's Yuan Chwang, Vol. II, p. 79.
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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