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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ परिवारीजनोंने कराया था । इसलिए इनका निर्माण-काल ई. पू. अर्ध शताब्दीसे ईसवी सन् का प्रारम्भ काल है । चम्पापुरी ( नाथनगर ) में सं. २००० में निर्मित मन्दिरमें कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं । इन मूर्तियोंपर लेख नहीं है, किन्तु लांछन है । कुषाण कालमें मूर्तियोंपर लेख और लांछनकी प्रथाका प्रारम्भ गया था। इन मूर्तियोंकी शैली आदिसे भी लगता है कि इनका निर्माण कुषाण-कालमें या इससे कुछ पूर्व हुआ होगा । ये मूर्तियाँ जिस मन्दिर की थीं, वह मन्दिर नष्ट हो चुका है । ८ राजगृहमें सोनभण्डार गुफाकी दीवालमें कुछ मूर्तियाँ बनी हुई हैं, ये सभी प्रतिमाएँ उसी समय निर्मित की गयी होंगी, जब इन गुफाओंका निर्माण हुआ होगा । पुरातत्त्ववेत्ताओंने इन गुफाओं का निर्माण-काल ईसाकी तीसरी-चौथी शताब्दी माना है । अतः इन मूर्तियों का निर्माण भी इसी कालमें हुआ माना जा सकता है । राजगृहके तीसरे और पाँचवें पर्वतोंपर उत्खननके फलस्वरूप जो मन्दिर और जैनमूर्तियाँ निकली हैं, जिनमें कुछ तो अभी उन भग्न मन्दिरोंमें रखी हैं, शेष नालन्दा संग्रहालय अथवा राजगृह नगरके लाल मन्दिरमें रखी हुई हैं, वे प्रायः आठवीं शताब्दी की हैं । पुरी, कटक, भानपुर, पाकवीर, वैशाली, कुलुहा पर्वत और पावापुरीमें जो प्राचीन मूर्तियाँ हैं, उनका आनुमानिक काल ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियाँ हैं । कुछ मूर्तियाँ ८-९ वीं शताब्दीकी भी हैं । पटना, कलकत्ता और भुवनेश्वर के सरकारी संग्रहालय कला और पुरातत्त्वकी दृष्टिसे अत्यन्त समृद्ध हैं। इनमें जैनकला और पुरातत्त्वके भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपादान सुरक्षित हैं । जैन पुरातत्त्वकी दृष्टिसे भारतीय संग्रहालयोंमें पटना संग्रहालयका अपना विशिष्ट स्थान है । यहीं पर मौर्यकालीन तीर्थंकर मूर्तिका कबन्ध और मस्तक सुरक्षित है । मौर्यकालकी चमरधारिणी यक्षीकी भी एक पाषाण मूर्ति यहाँ रखी हुई है । इनके अतिरिक्त यहाँ कुषाणकाल और कुछ पश्चात्कालीन पाषाण मूर्तियाँ हैं । पटनामें ही श्री गोपीकृष्ण कानोडिया के व्यक्तिगत संग्रहालय में भगवान् पार्श्वनाथ की पाँच फुट उत्तुंग एक खड्गासन पाषाण प्रतिमा सुरक्षित है जो तृतीय शताब्दीकी मानी जाती है। पटनाके राजकीय संग्रहालय में धातुकी भी २१ जैन प्रतिमाएँ सुरक्षित हैं । ये विभिन्न स्थानोंसे उपलब्ध हुई थीं और छठी शताब्दी या उसके बाद की हैं। धातुकी इतनी प्राचीन तीर्थंकर प्रतिमाएँ अन्यत्र दुर्लभ हैं । कलकत्ताके इण्डियन म्यूजियम में पाषाण और धातुकी कुछ जैन प्रतिमाएँ कुषाण और गुप्तयुगकी रखी हुई हैं । भगवान् पार्श्वनाथकी एक ४ फुट ऊँची मूर्ति तथा एक शिलाफलक में लेटी हुई माता त्रिशलाकी मूर्ति गुप्तयुगकी कलाका प्रतिनिधित्व करती है । यहाँ पाषाण और धातुकी अन्य कई जैन मूर्तियाँ हैं जिनका काल ईसाकी ९-१०वीं शताब्दी माना जाता है । भुवनेश्वर के राजकीय संग्रहालय में भी पाषाण और धातुको कुछ जैन मूर्तियाँ सुरक्षित हैं । प्रायः सभी मूर्तियाँ ८वीं शताब्दी तककी मानी गयी हैं । जैन गुफाएँ बिहार - बंगाल - उड़ीसा में जैन गुफाएँ केवल २-३ स्थानोंपर पायी जाती हैं, किन्तु गुफाओंकी संख्या विशाल है । अकेले खण्डगिरि- उदयगिरिपर ही ११७ गुफाएं हैं। राजगृहीपर दो गुफाएँ हैं । 1
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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