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बिहार - बंगाल - उड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थं
सौवीर, शूरसेन, भंगि, वट्टा, कुणाल, लाढ़ और अर्धं केकय इन साढ़े पचीस आर्यदेशों का उल्लेख मिलता है ।
बौद्ध साहित्य और बृहत्कल्पसूत्र भाष्य में उल्लिखित जनपदोंमें उपर्युक्त जनपदोंके अतिरिक्त वज्ज, मल्ल देश भी बिहार - बंगाल - उड़ीसा में सम्मिलित थे ।
जनपद और तीर्थक्षेत्र
बिहार-बंगाल - उड़ीसा के जैऩतीर्थं किस-किस जनपदमें अवस्थित थे, यह जानना उपयोगी
होगा ।
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अंग जनपद - चम्पापुरी, मन्दारगिरि ।
उण्ड्र, पुण्ड्र और कलिंग जनपद - उदयगिरि - खण्डगिरि-पुरी, कोटिशिला । मगध जनपद - राजगृही, पावापुरी, गुणावा, कुण्डलपुर, पाटलिपुत्र । वज्जि - विदेह जनपद – वैशाली - कुण्डग्राम, मिथिलापुरी ।
भंगि जनपद - सम्मेद शिखर, भद्रिकापुरी, कुलुहा गिरि ।
जैन कला और पुरातत्त्व
बंगाल-बिहार- उड़ीसा के विभिन्न स्थानोंपर जैनकला और पुरातत्त्वकी सामग्री उपलब्ध होती है । उत्तर प्रदेश या दक्षिण भारतकी तुलना में परिणामकी दृष्टिसे भले ही यह प्रचुर न हों, किन्तु गुण और गरिमाकी दृष्टिसे उनसे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है । सुविधाके लिए हम वहाँकी कलाको पुरातत्त्वकी दृष्टिसे निम्नलिखित भागों में विभाजित कर सकते हैं
(१) तीर्थंकर मूर्तियाँ, (२) जैन गुफाएँ, (३) जैन मन्दिर, (४) जैन प्रतीक, (५) ताम्रशासन । तीर्थंकर मूर्तियाँ - पुरातत्त्ववेत्ताओंकी मान्यता है कि मूर्तिकलाका इतिहास मौर्य - कालसे प्रारम्भ होता है । उससे पूर्वं यक्ष-पूजा एवं प्रतीक- पूजा होती थी । प्रतीक- पूजा यक्ष-पूजासे भी पूर्वकालकी मानी जाती । प्रतीकोंमें स्वस्तिक, नन्द्यावतं, मीन-युगल, शराव - सम्पुट आदि थे । किन्तु जब अतदाकार स्थापनासे मनुष्यके मनको तृप्ति नहीं हुई, तब उसने तदाकार स्थापनाका प्रारम्भ किया । इस कालमें यक्षोंकी मूर्तियाँ बननी प्रारम्भ हुईं। उसके बाद देव - मूर्तियाँ निर्मित होने लगीं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पाके उत्खनन के फलस्वरूप जो मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं, उनसे भारतीय मूर्ति-कला के सम्बन्धमें पूर्वं धारणा बदल गयी है और उसकी परम्परा आजसे पाँच हजार वर्षं पूर्वं तक प्रमाणित हो चुकी है । सिन्धु घाटी सभ्यताके कालमें निर्मित कायोत्सर्गासन में नग्न योगियोंकी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं ।
इसके पश्चात् बिहार प्रदेशमें पटनाके एक मुहल्ला लोहानीपुरसे एक प्रतिमा और एक सिर प्राप्त हुए । यह प्रतिमा हड़प्पाकी मूर्तिके समान मस्तकहीन है। कुहनियों और घुटनोंसे भी खण्डित है । इस मूर्तिपर चमकदार पालिश होने के कारण पुरातत्त्ववेत्ताओंने इसे मौर्यकालीन माना है । आजकल यह मूर्ति और मस्तक पटना म्यूजियममें सुरक्षित हैं । हड़प्पासे प्राप्त मस्तकहीन नग्न मूर्ति और लोहानीपुरसे प्राप्त उक्त मूर्तिका तुलनात्मक अध्ययन करनेसे दोनोंमें बड़ा साम्य पाया जाता है और दोनों ही पूर्वोत्तर परम्पराकी प्रतीत होती हैं। लोहानीपुरकी यह मूर्ति सिन्धु सभ्यताकालीन मूर्ति-कलाकी अविच्छिन्न शृंखलाकी एक कड़ीका काम करती है ।
इसके पश्चात् हमें उदयगिरि - खण्डगिरिकी गुफाओंमें बनी हुई तीर्थंकर मूर्तियाँ मिलती हैं । इनका निर्माण सम्राट् खारवेल, उनकी अग्रमहिषी, उसके पुत्र कुदेपश्री और वडुख तथा उनके