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परिशिष्ट-३
२५१ कुण्डलपुर-यह पटना जिलेमें है। यहाँका पोस्ट आफिस और स्टेशन नालन्दा है। राजगृहीसे नालन्दाके लिए पक्की सड़क है। राजगृहीसे नालन्दा तेरह कि. मी. है और नालन्दासे कुण्डलपुर तीन कि. मी. है। बड़गाँव नगरके बाहर एक मन्दिर है। उसे ही भगवान् महावीरकी जन्म-भूमि माना जाता है। राजगृहीसे पावापुरी अथवा पावापुरीसे राजगृही जाते हुए मार्गमें यह क्षेत्र पड़ता है । कुण्डलपुरसे लौटते समय नालन्दाके प्राचीन विश्वविद्यालयके भग्नावशेष और संग्रहालय अवश्य देखने चाहिए।
पावापुरी-नालन्दासे पटना-राँची रोडपर पावापुरीका मोड़ ८ कि. मी. है। मोड़से दिगम्बर जैन धर्मशाला ३ कि. मी. है। यहाँ दिगम्बर समाजकी दो विशाल धर्मशालाएँ बनी हुई हैं । बड़ी धर्मशालाके अन्दर ही ऊपर-नीचे कुल ७ मन्दिर हैं। सभी मन्दिर और मूर्तियाँ नवीन हैं । केवल चार मूर्तियाँ-एक चौबीसी, दो पार्श्वनाथ और एक शान्तिनाथ भगवान्की-अत्यन्त प्राचीन हैं। ये मूर्तियाँ कहीं निकटके स्थानसे भग्नावशेषोंमें पड़ी हुई मिली थीं। सम्भवतः वहाँ कोई प्राचीन जैन मन्दिर रहा होगा।
धर्मशाला पद्म सरोवरके तटपर बनी हुई है। इसी सरोवरके मध्यमें एक टीलेपर श्वेत संगमरमरका भव्य मन्दिर बना हुआ है । मन्दिर तक जानेके लिए लाल पाषाणका पुल बना हुआ है। मन्दिरमें भगवान् महावीरके चरण-चिह्न विराजमान हैं। उसके बायीं ओरकी वेदीपर भगवान्के मुख्य गणधर गौतम स्वामी और दायीं ओरकी वेदीपर अन्य गणधर सूधर्मा स्वामीके चरण-चिह्न स्थापित हैं। इस मन्दिरमें केवल गर्भगृह ही है। उसके चारों ओर बरामदा और चबूतरा है । इसी स्थानसे भगवान् महावीरने योग निरोध करके अघातिया कर्मोंका नाश किया था और निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान्का निर्वाण कल्याणक मनानेके लिए असंख्य देव-देवियाँ और मनुष्य यहाँ एकत्रित हुए थे। कहते हैं, भगवान्का निर्वाण हो जानेपर उपस्थित लोगोंने भगवान्के प्रति अपनी भक्ति-प्रदर्शनके लिए उस स्थानको धूल चुटकीसे उठाकर माथेपर लंगायी। भीड़ इतनी अधिक थी कि एक-एक चुटकी धूल ले लेनेसे ही यह सरोवर बन गया। भगवान्का निर्वाण-स्थान होनेके कारण यहाँ यात्रियोंकी संख्या बहुत अधिक रहती है। यहाँका दृश्य अत्यन्त प्रशान्त और मनमोहक है।
कुछ लोगोंका विश्वास है कि भगवान् महावीरका निर्वाण यहाँ नहीं हुआ था, बल्कि उत्तर प्रदेशमें देवरिया जिलेके फाजिलनगर-सठियाँव गाँवमें हुआ था। प्राचीन कालमें उसका नाम भी पावा था।
पावापुरो–मन्दिरके बाह्य प्रवेशद्वारके सामने गोलाकार समवसरण मन्दिर बना हुआ है। उसमें भगवान्के बहुत प्राचीन चरण हैं। पावापुरी मन्दिरसे लगभग एक मील दूर श्वेताम्बर समाजकी ओरसे समवसरण मन्दिर बनवाया गया है। वह संगमरमरका बना हुआ है और उसकी लागत नौ लाख रुपये बतायी जाती है।
____गुणावा-इसका जिला नवादा है। यह गया-क्यूल रेलवे लाइनके नवादा स्टेशनसे तीन कि. मी. है तथा पावापुरीके मोड़से भी तीन कि. मी. है। सड़क किनारे दिगम्बर मन्दिर और धर्मशाला हैं। पावापुरीके समान यहाँ भी जल मन्दिर है। एक तालाबके मध्यमें मन्दिर बना हुआ है। वहाँ तक जानेके लिए दो सौ फुट लम्बा पुल बना हुआ है। मन्दिरपर दोनों सम्प्रदायोंका समान अधिकार है। मन्दिर में गौतम स्वामीके चरण विराजममान हैं। पुलके पास दक्षिण में धर्मशाला है। यह सड़कसे एक फलांग दूर है।