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________________ २५२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यह स्थान भगवान् महावीरके मुख्य गणधर गौतम स्वामीका निर्वाण-स्थान माना जाता है। इसीलिए इसे सिद्धक्षेत्र कहा जाता है । चम्पापुरी-गुणावासे नवादा स्टेशन जाकर रेल द्वारा भागलपुर जाना चाहिये । भागलपुर शहरके बाहर नाथनगर मुहल्ला है। वहीं चम्पापुरी क्षेत्र है। भगवान् वासुपूज्यके पाँचों कल्याणक चम्पापुरीमें हुए थे। वर्तमानमें मान्यता है कि चम्पावालेमें वासुपूज्य भगवान्के गर्भ और जन्म कल्याणक मनाये गये । मन्दारगिरि पर्वतपर दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए तथा चम्पापुरीमें भगवान्का चौरानबे मुनियों के साथ निर्वाण हुआ। चम्पापुर क्षेत्रपर दो प्राचीन स्तम्भ बने हुए हैं, जिन्हें मानस्तम्भ कहा जाता है। वे लगभग नौ सौ वर्ष प्राचीन हैं । पहले ऐसे स्तम्भ चार थे। उनमें से दो भूकम्पमें नष्ट हो गये। ठहरनेकी व्यवस्था जैन मन्दिर, भागलपुरकी धर्मशालामें भी है और चम्पापुर क्षेत्रकी धर्मशालामें भी है। यहाँके जैन मन्दिरोंमें भागलपुर शहरका जैन मन्दिर, चम्पापुर क्षेत्रका मन्दिर और छपरावालोंका मन्दिर मुख्य है। छपरावालोंका मन्दिर चम्पापुर क्षेत्रके ठीक सामने है। मन्दारगिरि-भागलपुरसे मन्दारगिरि उनचास कि. मी. है। भागलपुरसे मन्दारगिरिके लिए ट्रेन भी जाती है और बस भी जाती है। बस स्टैण्डसे जैन धर्मशाला दो फलांग है। गाँवका नाम बोंसी है। जैन धर्मशालामें मन्दिर भी बना हुआ है। क्षेत्र कार्यालयसे मन्दारगिरि लगभग तीन कि. मी. दूर है। कार्यालयसे पर्वतको ओर चलनेपर लगभग एक फर्लाग दूर सेठ तलकचन्द कस्तूरचन्दजी वारामती द्वारा वीर संवत् २४६१ में बनवाया हुआ श्वेत-कृष्ण पाषाणोंका जैन मन्दिर मिलता है जो किसी कारणवश पूरा नहीं बन सका । उससे आगे जानेपर पर्वतकी तलहटीमें पापहारिणी नामक एक सरोवर है। मकर संक्रान्तिके दिन यहाँ हिन्दुओंका भारी मेला लगता है। पहाड़ी केवल ७०० फुट ऊँची है। पहाड़ीकी चढ़ाई लगभग एक मील है। कुछ सीढ़ियाँ भी बनी हुई हैं। पहाड़ीके ऊपर बड़ा दिगम्बर जैन मन्दिर, छोटा दिगम्बर जैन मन्दिर और एक गुफा है। तीनों स्थान निकट हैं और तीनों ही स्थानोंपर भगवान् वासुपूज्यके चरण-चिह्न विराजमान हैं। हिन्दू लोग इस पर्वतको मन्दराचल मानते हैं। उनकी मान्यता है कि शेषनागकी नेति बनाकर मन्दराचलको रई बनाया गया और उससे समुद्र-मन्थन किया गया, जिससे चौदह रत्न निकले। यहाँसे पुनः भागलपुर लौटकर इच्छित स्थानको जा सकते हैं । आवश्यक निवेदन कुछ यात्री दिल्लीसे पहले चम्पापुरी-मन्दारगिरि होकर फिर गुणावा-पावापुरी आदिको वन्दना करते हैं। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। जो बन्धु उत्तर प्रदेशके तीर्थोंकी वन्दना करके बिहार-बंगाल-उड़ीसाके तीर्थोंकी वन्दनाके लिए जाना चाहते हैं, वे नवीन पावा, ककुभग्राम और काकन्दीकी यात्रा करके देवरियासे छपरा होते हुए वैशालीके दर्शन कर सकते हैं । वहाँसे उपर्युक्त यात्रा-मार्गमें सम्मेदशिखर आदिकी यात्रा कर सकते हैं ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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