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________________ २५० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ___ यहाँसे लौटनेपर मार्गमें एक टीलेके ऊपर कूपाकार भवनपर टिन शैड है। यह एक प्राचीन जैन मन्दिर था। यह मन्दिर खुदाईके समय गिरा दिया गया था। इस मठसे लगभग पौन मील दक्षिणकी ओर बिम्बसार बन्दीगृह है, जिसके भग्नावशेषों में छह फुट मोटो पत्थरोंकी दीवार मिलती है। कहते हैं, श्रेणिक बिम्बसारको उसके पुत्र अजातशत्रुने इसी बन्दीगृहमें रखा था। (४) स्वर्णगिरि अथवा सोनागिर चौथा पहाड है। यह पहाड धर्मशालासे ५ कि. मी. है। इस पहाड़पर चढ़नेके लिए कुल १०६१ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। पहाड़पर दो मन्दिर और एक टोंक दिगम्बर समाजकी है तथा एक टोंक श्वेताम्बर समाजको है। --- ___ इस पहाड़से उतरकर एक मील चलनेपर सोन भण्डार गुफा मिलती है। यहाँ दो गुफाएँ हैं । बायीं ओरकी गुफा ठीक है किन्तु दायीं ओरकी गुफा भग्न दशामें है। बायीं ओरकी गुफामें दीवालोंपर शिलालेख अंकित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि आचार्य वैरदेवके उपदेशसे ईसाकी तीसरी शताब्दीमें इन गुफाओंका निर्माण किया गया। दूसरी पूर्वी गुफाकी छत, बरामदा गिर चुके हैं। द्वारमें घुसते ही दायीं ओर दीवालमें २ खड्गासन और १३ पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं तथा बायीं ओरकी दीवालमें ३ पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ वनी हुई हैं । शेष सारा भाग खण्डित है। . (५) चौथे पर्वतसे लगभग एक मील चलनेपर वैभारगिरि नामक पाँचवाँ पर्वत है। इस पर्वतकी सीढियोंकी संख्या ५६५ है। यहाँ एक श्वेताम्बर मन्दिर है और एक दिगम्बर मन्दिर है। दिगम्बर मन्दिरके निकट महादेव मन्दिरके पथपर एक प्राचीन भग्न जैन मन्दिर है। पुरातत्त्व विभागकी ओरसे यहाँ खुदाई की गयी थी। फलतः २८ कोठरियाँ निकली हैं । पहले सभी कोठरियोंमें मूर्तियाँ रही होंगी। किन्तु इस समय १० कोठरियोंमें १८ तीर्थंकर मूर्तियाँ रखी हुई हैं, शेष कोठरियाँ खाली पड़ी हैं। कुछ अच्छी-अच्छी मूर्तियाँ नालन्दा संग्रहालयमें भेज दी गयी हैं। कुछ मूर्तियाँ नीचे लाल मन्दिरमें रख दी गई हैं। ___ मन्दिरसे थोड़ा आगे जानेपर सप्तपर्णी गुफा बनी हुई है। इस पर्वतकी वन्दना करके लौटते हुए 'जरासन्धको बैठक' नामक एक स्थान है। वास्तवमें यह एक गुफा है। गुफाकी छत अवश्य ऐसी है, जिसपर कुछ लोग आरामसे बैठ सकते हैं। ___राजगृहमें भगवान् महावीरने धर्म-चक्र प्रवर्तन किया, इतना ही नहीं, उनके अनेक बार यहाँ उपदेश हुए, अनेक बार यहाँ उनका समवसरण लगा और श्वेताम्बर आगमोंके अनुसार यहाँ उनके १४ चातुर्मास हुए। राजगृही निर्वाण क्षेत्र भी है । यहींसे भगवान् महावीरके ११ गणधर मुक्त हुए । जम्बूकुमार, जीवन्धर कुमार, श्वेतवाहन, श्वेतसन्दीव, वैशाख, प्रोतिकर आदि अनेक मुनियोंने यहींसे मुक्ति प्राप्त की है। निर्वाणकाण्ड ( संस्कृत ) में राजगृहके पर्वतोंके नाम देकर उन्हें निर्वाण-भूमि कहा है। यहींपर भगवान् मुनिसुव्रतनाथके गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान ये चार कल्याणक हुए थे । इस प्रकार यह क्षेत्र सदासे मान्य पावन क्षेत्र रहा है। नीचे तलहटीमें दो मन्दिर हैं-धर्मशालाका मन्दिर और लाल मन्दिर। लाल मन्दिरमें ऊपर पहाडसे लायी हई प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। धर्मशाला मन्दिर में भी कई प्रतिमा बड़ी भव्य हैं। ___ यहाँपर उल्लेख योग्य गर्म जलके कुण्ड हैं। सात कुण्ड वैभार पर्वतकी तलहटीमें हैं और छह विपुलाचलके नोचे हैं। इनमें स्नान करनेसे गठिया, वायु, त्वचा सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते हैं। हिन्दू, बौद्ध और मुसलमान भी इसे अपना तीर्थ मानते हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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