SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-३ २४९ उसमें भगवान् महावीरके श्वेत संगमरमरके चरण-चिह्न विराजमान हैं। इसके सामने नवनिर्मित दिगम्बर जैन मन्दिर है। इसमें केवल गर्भगृह है । वेदीपर मूलनायक महावीरकी पाषाण प्रतिमा है। उसके आगे पीतलकी विधिनायक महावीरकी मूर्ति विराजमान है। यहाँसे लौटते हए मार्गमें जल भरा हुआ मिलता है। मार्गमें राजा विशालके गढ़के ध्वंसावशेष मिलते हैं जो टीलेकी शकलमें बिखरे हुए हैं। विभिन्न समयोंमें भारत सरकारके पुरातत्त्व विभाग, वैशाली संघ तथा काशीप्रसाद जायसवाल इन्स्टीट्यूटकी ओरसे यहाँ खुदाई करायी गयो, फलतः मुहरें, मिट्टीकी मूर्तियाँ और अन्य सामग्री पायी गयी हैं। प्राचीन भवनोंके अवशेष भी मिले हैं । इस गढ़को पार करके जैन विहार पहुंच जाते हैं। ___ जैन विहारसे लगभग एक मील दूर कम्मन छपरा गाँव है। पहले इसीका नाम कर्मार ग्राम अथवा कूर्मग्राम था, जहाँ भगवान्का प्रथम आहार हुआ था। राजगृही-वैशालीसे पहलेजाघाट होते हुए पटना वापस लौटना चाहिए। पटनासे राजगृहीके लिए सीधी बस जाती है। पटनासे राजगृही कूल ९९ कि. मी. है। ट्रंन द्वारा पटनासे ४६ कि. मी. वख्त्यारपुर जाकर वहाँसे बस, टैक्सी या ट्रेनसे ५३ कि. मी. राजगृही जा सकते हैं। राजगृहीमें दिगम्बर जैन धर्मशालामें ठहरनेकी सुन्दर व्यवस्था है। राजगृहीका जिला पटना है। यहाँ पाँच अलग-अलग पहाड़ी हैं, जिनकी यात्रा और वन्दनाके लिए भक्तजन जाते हैं। यदि एक दिनमें पाँचों पहाड़ोंकी वन्दना करनेकी श्रद्धा, संकल्प और शक्ति हो तो एक दिनमें वन्दना करनी चाहिए। यदि एक दिनमें न कर सकें तो दो दिनमें कर सकते हैं—एक दिन दो पर्वतोंकी तथा दूसरे दिन तीन पर्वतोंकी। यदि सारी यात्रा पैदल ही करनेके भाव हों तो पैदल करनी चाहिए। यदि सामर्थ्य न हो तो ताँगा करके धर्मशालासे पहाड़की तलहटी तक जायें। वहाँसे पैदल यात्रा करें । वापसीमें ताँगे द्वारा आ सकते हैं। (१) पहला पहाड़ विपुलाचल है। इसपर पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। सीढ़ियोंकी संख्या ११५० है। इसके ऊपर तीन टोंकें दिगम्बर समाजकी और एक टोंक श्वेताम्बर समाज की है। विपुलाचलपर विराजमान होकर ही भगवान्ने श्रावण कृष्णा प्रतिपदाके दिन समवसरणमें धर्मचक्र-प्रवर्तन किया था और उनकी प्रथम दिव्यध्वनि खिरी थी। (२) विपुलाचलसे उतरने और रत्नागिरिपर चढ़नेके लिए पृष्ठभागमें सीढ़ियाँ नहीं हैं। मार्ग ऊबड़-खाबड़ है । दूसरे पहाड़का नाम रत्नागिरि है। इसकी सीढ़ियोंकी संख्या १३०० है। इस पर्वतपर तीन टोंकें दिगम्बरोंकी हैं और एक टोंक श्वेताम्बरों की है ।। (३) तीसरा पर्वत उदयगिरि है। इसके ऊपर जानेके लिए ७८६ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यहाँ तीन टोंकें या मन्दिर दिगम्बर समाजका और एक टोंक श्वेताम्बर समाजकी है। ___ इस पर्वतपर दो प्राचीन जैन मन्दिरोंके भग्नावशेष पड़े हुए हैं। इनमें जो प्रतिमाएँ निकली थीं, वे नीचे दिगम्बर जैन लाल मन्दिरमें पहुँचा दी गयी हैं। एक मन्दिरमें यहाँ केवल श्याम पाषाणके चरण विराजमान हैं। पर्वतसे उतरकर जलपानगृह बना हुआ है जहाँ दिगम्बर जैन कार्यालयकी ओरसे यात्रियोंको जलपान कराया जाता है। यहाँसे कुछ आगे चलकर सड़क किनारे पत्थरोंपर शंखलिपिमें लेख खुदे हुए हैं तथा रथोंके पहियोंकी गहरी लीक बनी हुई है। जो लोग पाँचों पर्वतोंकी वन्दना एक दिनमें नहीं करना चाहते, वे यहाँसे धर्मशालाको लौट जाते हैं और दूसरे दिन शेष दो पर्वतोंकी वन्दना करते हैं। २ भाग-३२
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy