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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
जैन धर्मशालासे सड़कपर कुछ दूर चलने पर और रेलवे लाइन पार करके लगभग १ फर्लांग दूर कमलदह नामक स्थान है । वहाँ एक टेकरीपर सुदर्शन मुनिके प्राचीन चरण बने हुए हैं। सुदर्शन मुनि निर्वाण प्राप्त हुआ था । अतः यह सिद्ध क्षेत्र कहलाता है । इस टेकरीके चारों ओर चार तालाब हैं। तालाबों में कमल हैं। तालाबोंके चारों ओर बेरके वृक्ष हैं ।
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पटनामें कुल ५ दिगम्बर जैन मन्दिर और १ चैत्यालय है। पटना बहुत बड़ा शहर है और बिहार प्रान्त की राजधानी है। यहाँ प्रान्तीय विधान सभा, राजभवन, राजकीय संग्रहालय, जालान संग्रहालय ( किला भवन, पटना सिटी ), अगम कुआँ, पाटलिपुत्रके ध्वंसावशेष, हैवतजंगका मकबरा और शहीद स्मारक दर्शनीय हैं ।
वैशाली - गुलजारबाग से गंगा किनारे महेन्द्र घाट जाना चाहिए। गुलजारबाग से यह लगभग ४ मील । इस घाटसे पहलेजा घाटके लिए स्टीमर जाता है । टिकट घरसे स्टीमरका टिकट ले लेना चाहिए । पहलेजा घाटसे लगभग २ फर्लांग चलकर स्टेशन और बस स्टैण्ड है । वहाँ ट्रेन और बस हाजीपुरके लिए मिलती हैं । महेन्द्र घाटसे हाजीपुर ५८ कि. मी. है। हाजीपुर से वैशाली ३६ कि. मी. है। बस और टैक्सी मिलती हैं। पहलेजा घाटसे वैशाली के लिए सीधी बस भी जाती हैं । वैशाली में सड़क के किनारे जैन विहार ( धर्मशाला ) बना हुआ है । वहींपर पर्यटक केन्द्र और उसका डाक बंगला बना हुआ है ।
जैन विहार से लगभग ५ कि. मी. दूर वासुकुण्ड स्थान है । यही प्राचीन कुण्डग्राम है जो अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीरकी जन्म भूमि है । भगवान् के जन्म-स्थान पर राष्ट्रपति स्व. डॉ. राजेन्द्रप्रसादजीके करकमलों द्वारा शिलान्यास हो चुका है और उसकी प्रशस्ति एक शिलापटपर अंकित है । शताब्दियोंसे स्थानीय जनताका यह विश्वास रहा है कि भगवान् महावीरने ढाई हजार वर्ष पूर्व यहीं पर जन्म लेकर इस प्रदेशको और देशको गौरव प्रदान किया। इन सरल और भक्त ग्रामीणोंने जन्मस्थानवाली डेढ़ एकड़ भूमिपर अबतक हल नहीं चलाया है । वहाँ प्रदेश सरकारकी ओरसे महावीर जन्मोत्तर जयन्तीका उत्सव विशाल रूपमें मनाया जाता है। इस उत्सवमें हजारों की संख्या में जथरिया, भूमिहार आदि कृषक आते हैं और आकर वे भगवान् महावीरको श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं ।
इस स्थान के निकट ही प्राकृत-अहिंसा जैन शोध संस्थानका भव्य भवन बना हुआ है। इसकी व्यवस्था बिहार सरकारका शिक्षा मन्त्रालय करता है तथा इसके भवन निर्माण और पुस्तकालय के लिए समाज के मान्य नेता और प्रसिद्ध उद्योगपति साहू शान्तिप्रसादजीने सवा छह लाख रुपये की राशि प्रदान की थी ।
इस वासुकुण्डसे ईशानकोणमें दो मील आगे कोल्हुआ गाँव है जिसका प्राचीन नाम कोल्लाग सन्निवेश था । यहाँपर अशोक सम्राट् द्वारा निर्मित स्तम्भ है जिसके शीर्षपर एक सिंह मूर्ति ऊपर की ओर मुख किये हुए बैठी है । इसके निकट एक सरोवर है, जिसे मर्कट ह्रद माना जाता है । अशोक स्तम्भसे थोड़ा आगे जानेपर बनिया गांव मिलता है जो प्राचीन वाणिज्य ग्राम है । ढाई हजार वर्ष पूर्व यह अत्यन्त समृद्ध नगर था । इसमें व्यापारी जनोंका निवास था । इस ग्रामसे प्रायः एक मील चलनेपर लोक कर्म विभाग ( P. W. D. ) का रैस्ट हाउस बना हुआ है जो एक विशाल सरोवर के तटपर अवस्थित है । यह सरोवर ही प्राचीन कालमें मंगल पुष्करिणी कहलाता था। रैस्ट हाउसके निकट सरकारी संग्रहालय बन गया है । पुष्करिणीसे लगभग एक मीलपर वामन पोखर है । उसके किनारेपर एक पक्के चबूतरे पर तीन कटनीदार गन्धकुटी बनी हुई है ।