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परिशिष्ट-३
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इसी प्रकार उदयगिरि पर्वतके ऊपर कुल १८ गुफाएँ हैं। इस पहाड़ीके ऊपर किसी गुफामें कोई मूर्ति नहीं है। इन गुफाओंमें प्रथम रानी गुफा सबसे बड़ी है। इसके सिरदलों आदिपर विभिन्न पौराणिक दृश्य उत्कीर्ण हैं। गणेश गुफामें भी तोरणोंके मध्य भागमें कुछ दृश्य उत्कीर्ण हैं। कई गुफाओंमें शिलालेख भी अंकित हैं। हाथी गुम्फा ( नं. १४ ) में सम्राट् खारबेल द्वारा उत्कीर्ण लेख है । इसमें कुल १७ पंक्तियाँ हैं । इस शिलालेखका बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है। इससे सम्राट् खारबेलके जीवनपर प्रकाश पड़ता है।
पुरी-उदयगिरि-खण्डगिरिसे भुवनेश्वर जाकर पुरी ( जगन्नाथपुरी ) जा सकते हैं । भुवनेश्वरसे पुरी ६२ कि. मी. दूर है। सड़क और रेलमार्ग हैं । ठहरनेके लिए सरकारी अतिथि गृह तथा धर्मशालाएँ हैं। -
जगन्नाथपुरी हिन्दुओंके चार धामोंमें-से एक सुप्रसिद्ध धाम है तथा ५१ शक्तिपीठोंमें से एक शक्तिपीठ है। इसका विशाल मन्दिर है. जिसके चारों ओर दो परकोटे हैं। मन्दिरमें चार दिशाओंमें चार विशाल द्वार हैं। इसके शिखरकी ऊंचाई दो सौ चौदह फुट है। इसकी चूड़ापर नीलचक्र सुशोभित है। मुख्य मन्दिरको निजमन्दिर कहा जाता है। निजमन्दिरके दक्षिण द्वारके बाहर दीवालमें भगवान् ऋषभदेवकी एक फुट ऊँची मूर्ति विराजमान है। सुरक्षाको दृष्टिसे इसके ऊपर शीशेका एक फ्रेम लगा दिया गया है। मन्दिरके पण्डोंकी आम धारणा है कि इस मन्दिरका निर्माण महाराज खारबेलने 'कलिंगजिन' की मूर्तिको विराजमान करनेके लिए कराया था।
निजमन्दिरकी वेदीमें बलराम, सुभद्रा और जगन्नाथजी ( श्रीकृष्ण ) विराजमान हैं। ये तीनों लकड़ीके बने हुए हैं। जगन्नाथजीकी प्रसिद्ध रथयात्रा आषाढ़ शुक्ला २ को प्रारम्भ होती है और दसमीको समाप्त होती है। वर्षमें एक बार जगन्नाथजीका विग्रह बदला जाता है। जो पण्डा विग्रह बदलता है, उसकी आँखोंपर काली पट्टी बाँध दी जाती है। वह पुराने कलेवरके हृदयके स्थानसे मूर्ति निकालता है और उसे नवीन कलेवरमें रख देखा है । ऐसी किंवदन्ती है, कि यदि कोई व्यक्ति विग्रह-परिवर्तन करते हुए देख ले तो वह और उसका सारा परिवार नष्ट हो जाता है। इस बदलते हुए पुराने कलेवरकी समाधि जिस स्थानपर दी जाती है, उस स्थानको देव निर्वाण भूमि कहते हैं।
इतिहास ग्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि प्राचीन कालमें कलिंगमें 'कलिंगजिन' नामक एक प्रतिमा थी। नन्द वंशके प्रतापी सम्राट् महापद्मनन्दने जब कलिंगको पराजित किया तो वह इस मूर्तिको अपने साथ ले गया था। यह मूर्ति जैन तीर्थंकर ऋषभदेवकी थी। नन्दराजके तीन सौ वर्ष पश्चात् खारबेलने मगधपर आक्रमण करके वहसतिमित्रको हराया और वह उस 'कलिंगजिन' प्रतिमाको अपने साथ वापस ले गया। इस मूर्तिका उत्सव उसने कुमारी पर्वतपर मनाया।
र इस मूर्तिके लिए उसने विशाल जिनालय बनवाया । पुरीका मन्दिर खारबेल द्वारा निर्मित वही जिनालय है तथा जगन्नाथजी की मूर्ति वही 'कलिंगजिन' प्रतिमा है, ऐसा लोगोंका विश्वास है।
पटना-पुरीसे रेलमार्ग द्वारा आसनसोल होते हुए पटना सिटी और पटना जंकशनके बीच गुलजारबाग स्टेशन उतरना चाहिए । यहाँ गाड़ी थोड़ी देर ही रुकती है। पुरीसे आसनसोल ५९४ कि. मी. है । तथा आसनसोलसे गुलजारबाग ३२६ कि. मि. और पटना जंकशन ३३३ कि. मी. है। गुलजारबाग स्टेशनसे दिगम्बर जैन धर्मशाला केवल एक फलांग दूर है। स्टेशनपर कुली, रिक्शा और ताँगे मिलते हैं । धर्मशालामें जैन मन्दिर भी बना हुआ है।