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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ नील वर्ण पाषाणकी खड्गासन प्रतिमा उपलब्ध हुई। यह प्रतिमा एक शिलाफलकमें उत्कीर्ण है। इसके दोनों ओर छह-छह कोष्ठकोंमें चौबीस तीर्थंकरोंकी खड़गासन प्रतिमाएँ अंकित हैं। भगवान्के शीर्षपर सप्तफणावली मण्डप है। भगवान्के पृष्ठ भागमें सर्पकुण्डली अत्यन्त कलापूर्ण प्रतीत होती है। अधोभागमें दोनों ओर चमरेन्द्र खडे हुए हैं। चमर कन्धे पर रखा हआ है। दोनों चमरवाहकोंका एक चरण नृत्य मुद्रामें उठा हुआ है। चरणोंके दोनों ओर हाथ जोड़े हुए धरणेन्द्र और पद्मावती खड़े हुए हैं। पार्श्वनाथको यह मूर्ति अति भव्य और अतिशय सम्पन्न है। इसके अतिरिक्त और भी कई मूर्तियाँ निकली थीं। वे सब वहीं विराजान हैं।
वर्धमान जिलेमें आसनसोलके निकट पूचड़ा गाँव है। इस गाँवके बाहर एक टीला है जिसे देवलगढ़ ( राजपाड़ा ) कहते हैं। इस टीलेके ऊपर भगवान् ऋषभदेवकी दो फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा विद्यमान है। इसके अतिरिक्त पंचवालयतिको प्रतिमा भी रखी हई है। चारों ओर प्राचीन ईंटें बिखरी हुई हैं। इससे प्रतीत होता है कि यह टीला किसी प्राचीन जैन मन्दिरका अवशेष है।
___ खड़गपुरसे ४४ मील दूर रूपनारायण नदी तटपर कोयल घाट नामक स्थान है । इस नदीका पूल बनाते समय एक खम्भेकी खदाईमे भगवान् चन्द्रप्रभको एक प्रतिमा निकली थी जो यहाँके पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिरमें विराजमान कर दी गयी। यह मति हलके पीले और काले रंगकी है। इस मूर्ति के सम्बन्धमें दो बातें बहु प्रचलित हो गयी हैं। एक तो यह कि यह मूर्ति समय-समय पर रंग बदलती है। दूसरे इसके समक्ष जो भी मनोकामना की जायेगी, वह अवश्य पूर्ण होगी। इन किंवदन्तियोंके कारण अनेक जैन और जैनेतर नर-नारी यहाँ मनौती मनाने आते रहते हैं। इस प्रकार यह मन्दिर धीरे-धोरे एक अतिशय क्षेत्र बनता जा रहा है । बिहारमें सराक
बिहार प्रदेश प्राचीन कालमें मगध, अंग, वैशाली संघ आदिमें बँटा हुआ था। तीनों ही राज्य प्रबल थे। महावीरके उत्तर कालमें मगध राज्य अन्य राज्योंकी अपेक्षा अधिक प्रबल हो गया । वैशाली और अंगके राज्योंपर मगधका आधिपत्य हो गया। तब यह प्रदेश मगध कहा जाने लगा। मनुस्मृति, महाभारत आदि हिन्दू ग्रन्थोंमें महावीरसे पूर्वकालीन इस प्रदेशका कोई एक नाम नहीं उपलब्ध होता, बल्कि अंग और मगध ये दो नाम मिलते हैं। किन्तु शिशुनागवंशी अजातशत्रुने अंग, वैशाली आदि राज्योंको सदाके लिए समाप्त कर दिया। तब राज्य-शक्तिकी अपेक्षा इस प्रदेशको मगध कहने लगे। किन्तु यह नाम अधिक समय तक नहीं चल पाया। अजातशत्रके उत्तराधिकारी इस राज्यको छिन्न-भिन्न होनेसे नहीं बचा पाये। तब फिर मगध नाम छोड़ देना पड़ा। वस्तुत: प्रदेशका नाम मगध कभी नहीं रहा। मगधर्म तो केवल वर्तमान पटना और गया जिले सम्मिलित रहे हैं। उसकी राजधानी पहले राजगृह और बादमें पाटलिपुत्र रही है। इसलिए इस प्रदेशपर जब मगधका राज्य हो गया तो इसे मगध कहा जाने लगा। किन्तु वह प्रदेशका नाम न होकर राज्यका नाम रहा है। तब प्रदेशका नाम क्या था ? प्रदेशको एक नाम कब मिला और क्यों मिला ? ये कुछ प्रश्न हैं, जिनका समाधान इतिहास चाहता है ।
इतिहासके इस तथ्यसे कोई इनकार नहीं कर सकता कि जिसे आजकल बिहार प्रदेश कहा जाता है, उस समचे प्रदेशका कोई एक नाम भगवान् महावीरसे पहले कभी नहीं रहा। वैदिक, जैन और बौद्ध इन तीनोंमें-से किसीके साहित्य में इस प्रदेशकी कोई एक संज्ञा या नाम नहीं मिलता। भगवान् महावीर अपने कालमें सर्वाधिक प्रभावशाली महापुरुष थे। उन्होंने इस प्रदेशमें विहार करके धर्मकी ज्योतिको जन-जनके मानसमें प्रज्वलित कर दिया। तब यहाँकी जनताने