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परिशिष्ट-२
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वर्तमान में यहाँ एक भी अखण्डित मन्दिर नहीं है । आमने-सामने दो भग्न मन्दिर खड़े हैं, जिनमें से एक में ऋषभदेव भगवान् की विशाल मूर्ति विराजमान है। इस मूर्ति के इधर-उधर कई चौबीसी मूर्तियाँ, ऋषभदेव प्रतिमाएँ और यक्ष-यक्षिणीकी मूर्तियाँ रखी हुई हैं। इस मन्दिरके सामने एक भग्न मन्दिर है जिसमें ऋषभदेवकी दो मूर्तियाँ अत्यन्त कलापूर्ण प्रतीत होती हैं । ये शिलाफलकपर उत्कीर्ण हैं । इनके चारों ओर २३ तीर्थंकर मूर्तियाँ बनी हुई हैं । पार्श्वनाथ स्वामीकी एक खण्डित मूर्ति है । इसमें भगवान्के सेवक धरणेन्द्र यक्ष और पद्मावती यक्षिणी भी उत्कीर्ण हैं। इस मन्दिरके बगलमें चार गुफाएँ हैं, फिर तालाब है ।
यहाँ से एक मील दूर पंखा ग्राम में अम्बिका देवी की प्रतिमा बहुत मनोज्ञ है । दूसरी एक मूर्ति ऋषभदेव भगवान् की है। अवगाहना साढ़े तीन हाथसे अधिक है । इसमें चौबीसी बनी हुई है । इसका सिर काट लिया गया है। इसके अतिरिक्त चार प्रतिमाएँ यहाँ रखी हुई हैं, जिनको खण्डित किया गया है । इन दोनों प्रतिमाओंकी गाँववाले वर्षमें एक बार पूजा करते हैं । इसके निकट बुधपुर में बहुत जैन प्रतिमाएँ पड़ी हुई हैं। गाँववाले विभिन्न देवी-देवताओंके नामसे इनकी पूजा करते हैं ।
इस प्रकार बड़ा बाजार, नीमड़ी स्टेशन, कतरासगढ़, चैचो, बाटबिनूर आदि ग्रामोंमें जैन मन्दिरोंके खण्डहर अथवा मूर्तियाँ मिलती हैं ।
सिंहभूम सम्बन्ध में मेजर टिकलने जर्नल एशियाटिक सोसाइटी १८४० पृ. ६९६ में लिखा था कि सिंहभूम सराकोंके हाथमें था जो अब करीब-करीब नहीं रहे । परन्तु तब वे बहुत थे 1 उनका असली देश शिखरभूमि और पांचेत कहा जाता है । सराकोंको सताकर कोलेहानसे निकाला
गया।
कोहान में बहुत-से प्राचीन सरोवर हैं, जिन्हें हो जातिके लोग सरावक सरोवर कहते हैं । इन्हीं सराोंने सिंहभूम जिलेमें ताँबेकी खानों का पता लगाया था और उनका विकास किया था । प्राचीन कालमें वर्धमान तथा उसके आस-पासके जिलेको राढ़भूमि कहते थे । श्वेताम्बर साहित्य में भगवान् महावीरके छद्मस्थकालके विहारका विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है । भगवान्ने लाढ़ (राढ़ ) देशके वज्रभूमि और शुभ्रभूमि प्रदेशमें अपनी छद्मस्थ अवस्था में विहार किया । उस समय वहाँ के निवासियोंने भगवान् के ऊपर घोर उपसर्ग किये । किन्तु भगवान् के व्यक्तित्वका यह चमत्कार ही कहना होगा कि वे ही लोग भगवान्के अनुयायी बन गये और देशका नाम ही भगवान् नामपर वर्धमान रख दिया । तबसे राढ़ के स्थानपर वर्धमान नाम ही चला आ रहा है।
वीरभूम जिला भी पहले राढ़ देशका एक भाग था । इसीके एक भागको वज्रभूमि कहा जाता था । इस स्थानका नाम भी वीर भगवान्के नामपर उनके विहार क्षेत्रका नाम वीरभूम पड़ गया। इस जिले के सराकोंके नामोंके अन्त में हद्द, रक्षित, दत्त, प्रामाणिक, सिंह, दास आदि उपाधियाँ लगती हैं तथा इनके मोत्र गौतम ऋषि, अन्ध्र ऋषि, अनन्त ऋषि, काश्यप और आदिदेव हैं।
पुरुलिया जिलेमें ही अनाई महादेव बेड़ा या अनाई जामावाद स्थान है । यह स्थान पुरुलिया से ८ मील दूर है। यह कंसा नदीके किनारेपर वृक्षों और लताओंसे सुशोभित रमणीय स्थान है । यहाँ खुदाई में ११ जैन मन्दिर और अनेक जैन मूर्तियाँ निकली थीं, किन्तु सभी भग्न दशा । किन्तु अभी कुछ वर्ष पूर्व वहाँके महन्त शिवानन्दजीको भूगर्भमें स्थित जैन मूर्तियोंके सम्बन्धमें स्वप्न हुआ । तदनुसार जमीन खोदी गयी । फलतः भगवान् पार्श्वनाथकी पाँच फुट 'ऊँची