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________________ परिशिष्ट-२ २३९ उनके नामपर वर्धमान, वीरभूमि, मानभूमि आदि कई नगरोंके नाम रख दिये तथा इस प्रदेश में भगवान्का निरन्तर विहार हुआ था, अतः इस प्रदेशका नाम ही बिहार रख दिया। महावीरसे ढाई सौ वर्ष पहले पार्श्वनाथने भी इस समूचे प्रदेशमें विहार किया था। उनके आकर्षक व्यक्तित्वसे लाखों लोग उनके धर्मकी ओर आकृष्ट हुए थे और वे अनुयायी उनके इतने कट्टर श्रद्धालु बन गये, जिसका कुछ आभास वर्तमानमें सराक जातिके विश्वासोंसे मिलता है। यद्यपि वे लोग आज जैन नहीं हैं, किन्तु वे अबतक भी पार्श्वनाथको अपना कुल देवता मानते हैं। पार्श्वनाथके प्रति उनके विश्वासकी जड़ें कितनी गहरी थीं, इसका एक और भी उदाहरण दिया जा सकता है। पार्श्वनाथका निर्वाण सम्मेदशिखर पर हुआ था। जनताने उनकी भक्तिसे प्रेरित होकर उस पर्वतका नाम ही पारसनाथ पहाड़ रख दिया। यहाँ दो तीर्थंकरोंके व्यक्तित्व और प्रभावकी तुलना नहीं की जा रही। दो तीर्थंकरोंकी किसी भी बातमें तुलना नहीं की जा सकतो। तीर्थंकर अनुपम और असाधारण होते हैं। यहाँ तो केवल यह दिखाना है कि दोनों तीर्थंकरोंका अपने-अपने कालमें जनतापर कितना प्रभाव रहा है। एक तीर्थंकरको उसके अनुयायी अबतक अपना कुल देवता मानते हैं और दूसरे तीर्थंकरके बिहारकी स्मृति सुरक्षित रखनेके लिए जनताने उस प्रदेशका नाम ही बिहार प्रदेश रख दिया। बिहार प्रदेशमें पार्श्वनाथके अनुयायी सराक लोगोंकी संख्या बहुत अधिक नहीं है। अधिकांशतः, ये लोग सिंहभूमि, धनबाद और राँची जिलोंमें हैं। गोत्र-इस प्रान्तके सराकोंके गोत्र इस प्रकार हैं-आदिदेव, धर्मदेव, गौतम, शाण्डिल्य, वत्सराज, आचार्य, पाराशर । सराक जातिमें जैन धर्म प्रचारका प्रारम्भ सिंहभूमि, धनबाद और राँची जिलोंसे हुआ था। इस क्षेत्रमें सराकोंके साथ जैनोंका सम्पर्क भी अविच्छिन्न रूपसे चल रहा है। इसलिए इस क्षेत्रके सराक बन्धुओंमें जैन धर्मके प्रति रुचि बढ़ती जा रही है। सराक बन्धुओंके कई ग्रामोंमें दिगम्बर जैन मन्दिरोंका भी निर्माण हो चुका है। इसलिए दिगम्बर आम्नायके अनुसार पूजन, णमोकार मन्त्रका जाप्य, रथयात्रा आदि करते हैं। ये सराक बन्धु अपने नामके अन्तमें जैन, श्रावक भी लगाते हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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