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________________ २२६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कोटिशिलाके सम्बन्धमें विभिन्न मान्यताएं ___ कोटिशिला और भुवनेश्वरके निकटस्थ उदयगिरि-खण्डगिरिके कुमारी पर्वतको एक माननेकी मान्यताको विद्वानोंके एक वर्ग में समर्थन प्राप्त है। यह पर्वत सिद्धक्षेत्र था। इसका समर्थन भी हमें पुराण साहित्यसे प्राप्त होता है। भगवान् महावीरके कालमें कलिंग देशपर जितशत्र राजा राज्य करता था। इसके साथ वर्धमान महावीरके पिता सिद्धार्थकी छोटी बहनका विवाह हुआ था। जब महावीरका जन्मोत्सव हो रहा था, उस समय यह अपनी रानी यशोदयाके साथ कुण्डपुरमें आया था। राजा सिद्धार्थने इसका खूब स्वागत-सत्कार किया था। इसकी रानी यशोदयासे यशोदा नामक एक कन्या हुई थी। जब महावीरकी वय विवाह योग्य हुई, तब भी यह राजा अपनी पुत्रीका महावीरके साथ विवाह सम्बन्ध करनेके उद्देश्यसे आया था। राजा सिद्धार्थ भी इस सम्बन्धसे सहमत थे। किन्तु महावीर दीक्षा लेकर तप करने चले गये। इससे पिता और पुत्रीको बड़ी निराशा हुई और कुछ समय बाद जितशत्रु भी गृह त्याग दिया। वे कुमारी पर्वतपर तप करने लगे। कुछ काल पश्चात् उन्हें केवलज्ञान हुआ और अन्तमें कुमारी पर्वतसे वे मुक्त हुए । इस प्रकार उदयगिरिका यह कुमारी पर्वत सिद्धक्षेत्र माना जाता है । यह स्थान सदासे दिगम्बर मुनियोंकी तपोभूमि रहा है। सम्राट् खारबेलके समयमें तो यहाँ अनेक दिगम्बर जैन मुनि तपस्या किया करते थे। प्रसिद्ध हाथी गुम्फा लेखकी १४-१५वीं पंक्ति इस प्रकार है कि “कुमारी पर्वतके ऊपर अर्हन्त मन्दिरके बाहरकी निषद्या (नशिया ) में......काले रक्ष्य.......सर्व दिशाओंके महाविद्वानों और तपस्वी साधुओंका समाज एकत्र किया था.......अर्हन्तकी निषद्याके पास पर्वत-शिखरके ऊपर समर्थ कारीगरोंके हाथोसे पतालक, चेतक और वैडूर्य गर्भमें स्तम्भ स्थापित कराये।" इस लेखसे ज्ञात होता है कि सम्राट् खारबेलने कुमारी पर्वतपर अर्हन्त मन्दिर बनवाया; वहाँपर विद्वानों और साधुओंका सम्मेलन कराया। ___ यहाँ और भी अनेक धार्मिक घटनाएँ हुई हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि कुमारी पर्वत अथवा कुमारगिरि सुप्रसिद्ध तीर्थ-स्थान रहा, मुनियोंके लिए तपोभूमि अथवा आश्रम रहा था। सम्भवतः इस कारण यहाँपर स्थित शिलाको कोटिशिला माननेकी कल्पनाको जन्म मिला। कुछ विद्वानोंने गंजाम जिलेके मालती पर्वतपर स्थित शिलाको कोटिशिला स्वीकार किया है। मालती पर्वतके सम्बन्धमें भारत सरकारके पुरातत्त्व अधिकारी श्री रौवर्ट श्रीबैलने एक पुस्तक या रिपोर्ट' लिखी है। उसके अनुसार यहाँ प्राचीन किला और मन्दिर थे, जो भग्नावशेष दशामें यहाँ बिखरे पड़े हैं। कभी-कभी किसानोंको यहाँ सोनेकी मुहरें और सोनेकी मूर्तियोंके टुकड़े मिल जाते हैं । इस पहाड़ीपर एक पाषाणमें एक दीपक खुदा हुआ है जिसमें २५० सेर तेल आ सकता है। ग्रामीण जनता इसे दोपशिला कहती है । पर्वतकी तलहटीको केशरपल्ली कहा जाता है। प्राचीन कालमें यहाँ केशरी नामक एक राजा राज्य करता था। वह राजा बहत प्रभावशाली था। सम्भवतः उसीके नामपर केशरपल्ली नाम पड़ा है। केशरपल्लीके आसपास कमलोंसे सुशोभित ७२ सरोवर हैं। ये सरोवर राजाने अपनी ७२ रानियोंके लिए बनवाये थे। पर्वत और तलहटीमें कुछ जैन मूर्तियाँ भी मिली थीं। इसमें तो सन्देह नहीं है कि इस पर्वतपर प्राचीन काल में जैन मन्दिर थे। १. List of antiquarian remaind of Madras ( 1882 ),
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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