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________________ परिशिष्ट-१ २२७ एक तीसरी मान्यता इन दोनों मान्यताओंसे भिन्न है। यह स्थान देवगिरि है। देवगिरि कोरापुट जिलेमें गंजाम और विजगापट्टमके बीच में नागावली नदीके किनारेपर अवस्थित है। तीस मील पर्यन्त यहाँ पर्वत श्रेणियाँ फैली हुई हैं। सभी पहाड़ोंपर जंगल होते हैं, सघन वृक्ष होते हैं किन्तु इस देवगिरि पर्वतपर वृक्ष बिलकुल नहीं हैं। इस पर्वतका आकार बिलकुल हाथी-जैसा है । यह पहाड़ शायद ग्रेनाइट पाषाणका है। पाषाण एकदम लोहा जैसा है। इसलिए लोगोंके चलने-फिरनेपर भी कहीं पगडण्डी या मार्ग नहीं बन पाया। इसके पाषाणमें चाँदी-जैसी सफेद बुन्दकियां पड़ी हुई हैं। इस गजाकार पर्वतके पूँछाकारकी ओरसे धीरे-धीरे सँभलकर चढ़ना होता है। पीठाकारपर ग्यारह निर्मल जल-कुण्ड हैं। गर्दन और सैंडके आकारके स्थानपर एक विज्ञान गुफा है, जिसमें छोटी-छोटी अन्तर्गुफाएँ हैं। इन सबमें बैठकर चलना पड़ता है और अन्धकार रहता है । मुखाकारके स्थानपर पीले फूलोंके झाड़ हैं। इस पहाड़की अपनी कुछ विशेषताएं हैं। इसके ऊपर घास-फूस, झाड़-झंखाड़ कुछ भी नहीं है। यह पहाड़ एक ही शिला का है। इसलिए यह ऊबड़-खाबड़ नहीं है। इधरके हजारों व्यक्ति इस पहाड़की पूजा करने आते हैं। विशेषता यह है कि जो मांसाहारी भी व्यक्ति पूजा करनेके लिए यहां आता है उसे भी उस दिन मांस-भक्षणका नियम करना पड़ता है अन्यथा वह बीचमें-से ही गिर पड़ता है, ऐसी कुछ मान्यता है। जैनेतर जनता यहाँ मनौती मनाने आया करती है। विवाहके बाद वर और वधू दोनों यहाँ पूजनको आते हैं। यहाँ वर्षमें कई मेले, यात्राएं होती हैं । देवगिरि-पूजाको यहां महाप्रभुकी पूजा कहा जाता है। यहाँका मार्ग इस प्रकार है। रायपुर-विजयनगरम् लाइनपर रायगड़ा स्टेशन है। वहाँसे ३० मील कल्याणसिंहपुर है । इसीके निकट देवगिरिकी पहाड़ी है। उपर्युक्त सभी पक्षोंपर विचार करनेपर यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता कि कोटिशिला कहाँ थी और अब उसकी पहचान क्या है ?
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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