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________________ परिशिष्ट-१ २२५ कोटि मुनि सिद्ध हुए । अरनाथके तीर्थमें बारह कोटि मुनि मुक्त हुए। मल्लिनाथके तीर्थमें छह कोटि मुनि मोक्ष गये । मुनिसुव्रतनाथके तीर्थमें तीन कोटि मुनि यहाँसे मुक्त हुए । नमि तीर्थंकरके तीर्थमें यहाँसे एक कोटि मुनि मोक्ष पधारे। 'अभिधान राजेन्द्र कोष' ( भाग ३, पृ. ६७६ ) में कुछ प्रश्न उठाये हैं-कोटिशिला शाश्वत है या अशाश्वत ? वह कहाँपर है ? सभी नारायण उस सम्पूर्ण शिलाको उठाते हैं अथवा उसके एक देशको ? इन प्रश्नोंके उत्तर इस प्रकार दिये हैं—कोटिशिला अशाश्वत प्रतीत होती है क्योंकि शास्त्रोंमें गंगा-सिन्धु-वैताढ्य आदि शाश्वत स्थानोंमें कोटिशिलाका नाम उपलब्ध नहीं होता। वह मगध देशमें दशार्ण पर्वतके समीप थी। सभी नारायण सम्पूर्ण शिलाको ही उठाते हैं, उसके एक भागको नहीं। कोटिशिलाको अवस्थिति वस्तुतः कोटिशिला कहाँ थी और वह अब कहाँ है, इससे इतिहासकार अनभिज्ञ हैं। पुराणोंके विवरणोंसे भी इस विषयपर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। लगता है, पुराणकार आचार्योंके समक्ष भी यह विषय अस्पष्ट रहा है । यह भी सम्भव है कि उन्हें इसे स्पष्ट करना कुछ आवश्यक नं लगा हो। 'विविध तीर्थकल्प' में इस स्थानको दशार्ण पर्वतके समीप बताया है और मगधमें बताया है। इसलिए पहले दशार्ण पर्वतके सम्बन्धमें कुछ ज्ञातव्य ढूँढ़ना होगा । महाभारतमें दशार्ण नामक दो देशोंका उल्लेख मिलता है-एक पश्चिममें जिसे नकुलने जीता था ( सभा पर्व अध्याय ३२ )। दूसरा पूर्वमें जिसे भीमने जीता था ( सभापर्व, अध्याय ३०)। मालवाका पूर्वी भाग, जिसमें भोपाल भी सम्मिलित था, पश्चिम दशार्ण कहलाता था और उसकी राजधानी विदिशा या भेलसा थी।' इसका उल्लेख कालिदासने किया है। अशोकके कालमें इसकी राजधानी चैत्यगिरि अथवा चेतियगिरि थी। पूर्वी दशाणं वर्तमान छत्तीसगढ़का कुछ भाग था जो मध्यप्रदेशमें है। इसमें पटनाका आदिवासी राज्य भी सम्मिलित था। दशार्णके इस भौगोलिक विवरणके पश्चात् कलिंगका थोड़ा-सा इतिहास और उसकी प्राचीन भौगोलिक सीमाएँ समझनेकी आवश्यकता है। प्राचीन काल में उत्कल प्रदेशमें, जिसे कलिंग भी कहते हैं, छह राष्ट्र सम्मिलित थे-ओड्र, कलिंग, कंगोद, उत्कल, दक्षिण कोशल और गंगराड़ी। कूर्मपुराणके अनुसार इसकी सीमा गंगासे लेकर गोदावरी तक और पूर्वी समुद्रसे लेकर दण्डकारण्य तक फैली हुई थी। जब दक्षिण कोशलका कुछ भाग इससे अलग हो गया, तब यह प्रदेश त्रिकलिंग कहलाने लगा। पूर्वी दशाणं और दक्षिण कोशल विभिन्न कालोंके भिन्न-भिन्न नाम हैं, किन्तु ये नों नाम कछ साधारण परिवर्तनोंके साथ एक ही प्रदेशके हैं। भिन्न-भिन्न कालोंमें यों तो राज्योंकी सीमाएँ बदलती रहती हैं, किन्तु फिर भी इस प्रदेशमें छत्तीसगढ़का कुछ भाग, गौण्डवाना और विदर्भ सम्मिलित थे। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता श्री वी. सी. मजूमदारका अभिमत है कि कलिंग और दक्षिण कोशलका मध्यवर्ती पार्वत्य प्रदेश ओड्र था। दक्षिण कोशलका निकटवर्ती पर्वत ही दशाणं अथवा पूर्वी दशार्ण पर्वत है। इस दशार्ण पर्वतके निकट ही कोटिशिला अवस्थित थी। १. Dr. Bhandarkar's History of the Dekkan, Sec. III. २. मेघदूत, भाग १, श्लोक २५-२६ । ३. Prof Wilson's Vishnu P., Hall's ed., Vol. II, page 160, note 3. भाग २-२९
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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