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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ २१५ १६. पटलिक चतरे च वेडुरिय गभे थंभे पतिठापयति पानतरीय सत सहसेहि मुखिय कल वोच्छिनं च चोयठि अंग संतिक तुरियं उपादयति (1) खेम राजा स वढगजा स भिखुराजा धमराजा पसंतो सुनंतो अनुभवतो कलानानि १७. गुणविसेस कुसलो सव पूजको सव देवायतन संकारकारको अपहिहत चको वाहनबलो चकधरो गुतचको पवतचको राजसिवसुकुल विनिसितो महाविजयो राजा खारबेल सिरि (II) (चिह्न चैत्य-वृक्ष ) - - पुरी पुरीका धार्मिक महत्त्व हिन्दुओंके चार परम पवित्र धामोंमें बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम् और जगन्नाथपुरी माने जाते हैं । हिन्दू शास्त्रोंके अनुसार बद्रीनाथ सतयुगका, रामेश्वरम् त्रेताका तथा द्वारका द्वापरका धाम है। किन्तु पुरी कलियुगका धाम है । हिन्दुओंको यह भी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथजी बद्रीनाथमें स्नान करते हैं, द्वारकामें शृंगार करते हैं, पुरीमें अन्नका भोग ग्रहण करते हैं और रामेश्वर धाममें शयन करते हैं। शाक्त सम्प्रदायके लोग इसे उड्डियान पीठ कहते हैं और ५१ शक्तिपीठोंमें इसकी गणना करते हैं। पुरीके विभिन्न नाम जगन्नाथपुरीके अतिरिक्त इस क्षेत्रके कई नाम बताये जाते हैं, जैसे उच्छिष्ट क्षेत्र, श्रीक्षेत्र, पुरुषोत्तमपुरी, शंखक्षेत्र, जमनिक तीर्थ, कुशस्थली, नीलाद्रि अथवा नोलाचल, मर्त्य वैकुण्ठपुरी, जगन्नाथ धाम, उड्डीयान पीठ । मार्ग यह क्षेत्र बंगालकी खाड़ीके तटपर कटकसे लगभग ९० कि. मी. तथा भुवनेश्वरसे ६२ कि. मी. रेल और सड़क मार्गपर अवस्थित है। यह दक्षिण-पूर्व रेलपथके हवड़ा-पुरी रेलपथका अन्तिम स्टेशन है । आसनसोल, हवड़ा, मद्रास तथा तलचरसे पुरीके लिए सीधी ट्रेन चलती है। कटक, भुवनेश्वर, खुरदा रोड आदिसे पुरीके लिए मोटर बसें भी चलती हैं। पुरी स्टेशनसे श्रीजगन्नाथजीका मन्दिर लगभग १ मील है। जगन्नाथ मन्दिर ___जगन्नाथजीका मन्दिर बहुत विशाल है। मन्दिर दो परकोटोंके भीतर है। इसमें चारों ओर चार महाद्वार हैं-पूर्वमें सिंहद्वार, दक्षिणमें अश्वद्वार, पश्चिममें व्याघ्रद्वार और उत्तरमें हस्तिद्वार । बाहरी परकोटा या प्राचीरकी ऊँचाई बाईस फुट और चौड़ाई छह फुट पाँच इंच है। मन्दिरके शिखरकी ऊँचाई दो सौ चौदह फुट है। इसकी चूड़ापर नीलचक्र विराजता है । मन्दिरमें दक्षिणकी ओर एक वटवृक्ष है, जिसे अक्षयवट कहा जाता है। सिंहद्वारसे प्रवेश करनेपर २५ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। फिर दूसरा प्राकार मिलता है। यहाँ दोनों ओर प्रसाद मिलनेका बाजार है। जगन्नाथजीके निज मन्दिरके द्वारके सामने मुक्ति
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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