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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ (१५) धानघर गुम्फा-गुफा नं. चौदहके दायीं ओर सीढ़ियाँ चढ़कर एक लम्बा कक्ष है जिसमें तीन प्रवेशद्वार, बरामदा और दो स्तम्भ हैं। बायीं ओरके आधार-स्तम्भके सामने द्वारपाल बना हुआ है तथा दायें आधार स्तम्भके ऊपर सिंह-मुख बना हुआ है। इस गुफाकी दायीं ओर एक खुली गुफा है। कुछ ऊपर पहाड़ीपर भी एक भग्न गुफा है। - (१६ ) हरिदास गुम्फा-गुफा नं. बारहसे कुछ नीचे उतरनेपर तीन गुफाएँ हैं, जिनमें पूर्वी गुफा हरिदास गुम्फा कहलाती है। विगत शताब्दीमें हरिदास नामक किसी साधुने इसपर अनधिकृत रूपसे अधिकार कर लिया था। उसीके नामपर इस गुफाका नाम हरिदास गुम्फा पड़ गया। इसमें एक कक्ष और बरामदा है। तीन प्रवेशद्वार हैं। इसके द्वारपर एक पंक्तिका शिलालेख है जो इस प्रकार पढ़ा गया है
'चूलकमस पसातो कोथा जेयाय' अर्थात चलकर्मका प्रासाद और अजेय कोठा। इसी प्रकारका लेख गुफा नं. तेरहमें भी है।
(१७ ) जगन्नाथ गुम्फा-गुफा नं. सोलहकी बायीं ओर यह गुफा है। इसको भोतरी दीवालपर जगन्नाथजीका चित्र बना हुआ था, ऐसा कहा जाता है। किन्तु वह चित्र आजकल नहीं है। कहते हैं, इस चित्रके कारण ही गुफाका यह नाम पड़ गया। इसका कक्ष उदयगिरिकी अन्य गुफाओंकी अपेक्षा सबसे अधिक लम्बा है। यह सत्ताईस फीट सात इंच लम्बा और सात फीट चौड़ा है। इसमें चार प्रवेशद्वार, बरामदा और तीन स्तम्भ हैं। आधार-स्तम्भोंके सिरे विभिन्न पशु-पक्षियोंकी आकृतियोंसे अलंकृत हैं। इसमें दीपक रखनेके लिए तीन ताख भी बने
(१८) रसूई गुम्फा-कहा जाता है कि जब गुफा नं. सत्रहमें जगन्नाथजीका चित्र
और लोग उसकी पूजाको आते थे तो प्रस्तुत गुफामें रसोई बनाया करते थे। इसमें केवल एक छोटा-सा कक्ष है। आवश्यक ज्ञातव्य
खण्डगिरिके दक्षिण-पश्चिममें नीलगिरि है। यह भी उदयगिरि-खण्डगिरिके समान इस पर्वतपर एक भाग है। इन तीनों पर्वतोंपर जो गुफाएँ हैं, उनमें मुख्य गुफाएं उदयगिरिमें ४४, खण्डगिरिमें १९ तथा नीलगिरिमें ३ हैं। यहाँके एक लेखसे ज्ञात होता है कि खण्डगिरि-उदयगिरि १०-११वीं शताब्दी तक कुमार-कुमारी पर्वत कहलाते थे।
____ इन गुफाओंका सही काल-निर्धारण करना प्रायः कठिन है। यहाँके शिलालेखोंमें ऐसा कोई स्रोत नहीं मिलता, जिसके सहारे इन गुफाओंका निर्माणकाल ज्ञात हो सके। ऐसे सूत्र अवश्य हैं, जिनसे खारबेलका समय निर्धारित करनेमें सहायता मिल सकती है, जैसे सातवाहन सातकर्णी, वहसतिमित्र, दिमित। इसके अतिरिक्त 'नन्दराज ति-वस-सत ओ (घा ) टितं' इस पाठके अनुसार नन्दराजसे तीन सौ वर्ष पश्चात् नहरका पुनर्निर्माण हुआ। इसमें सन्देह नहीं है कि खारबेल और उनके परिजन-पुरजनोंने यहाँ अनेक गुफाओंका निर्माण किया था, किन्तु कई गुफाएँ उनसे पहले भी विद्यमान थीं, कुछ उनके पश्चात् ९-१०वीं शताब्दी तक भी बनीं । इसलिए इतिहासकारों और पुरातत्त्वविदोंने इन गफाओंके सम्बन्धमें जो निष्कर्ष निकाले हैं, उनपर अपना अभिमत प्रकट किये बिना संक्षेपमें उन्हें यहाँ दे रहे हैं।