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________________ २११ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ कक्षमें गणेश-मूर्ति है। हाथों में मोदकोंका पात्र, अंकुश, मूली और माला है। उनके नीचे उनका वाहन मूषक है। गणेशमूर्तिके दायीं ओर पाँच पंक्तियोंका लेख है। यह ८-९वीं शताब्दीमें भौमनरेश शान्तिकारके शासन-कालमें नन्नट-सुत भीमट भिषक्ने खुदवाया था। सम्भवतः इसी भीमटका एक शिलालेख धौली पर्वतपर भी है। इस कक्षसे कुछ आगे दायीं ओर ऊपर जानेका मार्ग है। ऊपर दो कक्ष बने हुए हैं। इन्हींके नीचे प्रसिद्ध हाथी गुम्फा है। (११) जम्बेश्वर गुम्फा-गणेश गुम्फासे पगडण्डी द्वारा आगे जानेपर एक पक्का कुण्ड मिलता है । कुण्डसे वापस लौटकर गणेश गुम्फाके पास दायीं ओर एक पगडण्डी जाती है। कुछ ऊपर चढ़नेपर प्राचीन मन्दिरके भग्नावशेष मिलते हैं। उससे कुछ उतरनेपर जम्बेश्वर गुम्फा मिलती है। इसमें एक प्रकोष्ठ और बरामदा है। बरामदेमें एक खम्भा है। द्वारके सिरदलपर एक पंक्तिका लेख है जो इस प्रकार पढ़ा गया है 'महामदास वारियाय नाकियस लेनम्' अर्थात् यह गुफा महामदकी स्त्री नाकिय द्वारा बनायी हुई है। यह लेख मंचपुरी गुहालेखके समकालीन माना जाता है। (१२) बाघ गुम्फा-गुफा नं. ११ के दक्षिण-पूर्व में यह छोटी-सी गुफा है। बाघके खुले हुए मुखके समान इस गुफाका आकार है। इसलिए इसका नाम बाघ गुफा पड़ गया। इसमें केवल एक कक्ष है। द्वारके तोरणकी दायीं ओर बाहरी दीवालपर दो पंक्तियोंका एक शिलालेख है। इसके अन्तमें स्वस्तिक बना हुआ है । यह लेख इस प्रकार पढ़ा गया है नगर अखदंस सभूतनो लेनम् अर्थात् नगर जज सभूतिकी गुफा। यह लेख भी सम्राट् खारबेलके कालका है । (१३) सर्प गुफा-इसमें दो कक्ष हैं-एक ऊपर और दूसरा नीचे। ऊपरी कक्ष पूर्वाभिमुखी है । गुफा-द्वारपर तीन फणवाले सर्पका अंकन है, इसलिए इसका नाम सर्प गुम्फा पड़ गया है । गुफामें दो लघु लेख हैं। एक द्वारके ऊपर है और दूसरा द्वारके पाखेके पास। ये लेख इस प्रकार पढ़े गये हैं 'कम्मस हलखिणय च पसादो' अर्थात् कम्म और हलखिनका प्रासाद । 'चूलकमस कोथाजेयाय' अर्थात् चूलकर्मका अजेय कोठा। (१४ ) हाथी गुम्फा-यह एक बेढंगी प्राकृतिक खुली गुफा है। बादमें इसमें बरामदा बनाया गया है, जिसमें तीन स्तम्भ हैं । यह गुफाकी बजाय वर्षा और धूपसे सुरक्षाके लिए आश्रयस्थल कहा जा सकता है । यह अधिक गहरी नहीं, लम्बी है। गुफाका अन्तर्देश बावन फीट लम्बा और अट्ठाईस फीट चौड़ा है। द्वारकी ऊँचाई साढ़े ग्यारह फीट है। बरामदेके माथेपर ऐल सम्राट् खारबेलका प्रसिद्ध शिलालेख है। इस शिलालेखमें सत्रह पंक्तियाँ हैं। इस गुफाका महत्त्व कलाकी दृष्टिसे न होकर इस शिलालेखके कारण है। इस गुफाके पासमें कई छोटी गुफाएँ हैं। इनमें कोई उल्लेखनीय बात नहीं है। इनमें कई गुफाएँ पवनारी या पवन गुम्फा कहलाती हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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