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________________ २१० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यह ज्ञात नहीं होता कि कुडेपक्षी महाराज खारबेलका उत्तराधिकारी था अथवा वंशज । सम्भवतः उपर्युक्त प्रतीक-पूजाके दृश्यमें उसी राजपुरुषका अंकन किया गया है। ___ इसी प्रकारका एक शिलालेख बरामदेके उत्तरकी ओर प्रकोष्ठमें है। वह इस प्रकार पढ़ा गया है 'कमार वदखस लेनम' अर्थात कमार वदखकी गफा। यह वदुख कुडेपक्षी का भाई था या पुत्र, यह भी ज्ञात नहीं होता। इस गुफाकी ऊपरी मंजिलमें दूसरी-तीसरी तोरणके मध्य भागमें एक शिलालेख है जो इस प्रकार पढ़ा गया है 'अरहन्त पसादयं कलिङ्गनम् समनानम् लेनम् कारितम् राज्ञो लालकस हाथीसाहस पपोतस धतुनाकलिन चक्रवर्तिनो श्रीखारबेलस अग्ग महिसिना कारितम्।' अर्थात् यह अरहन्त प्रासाद कलिंग देशके श्रमणोंके लिए बनाया गया है। यह प्रासाद कलिंग चक्रवर्ती खारबेलकी पटरानी द्वारा निर्मित हुआ जो राजा लालकसकी पुत्री थी और जो हाथीसहसके पौत्र थे। इसकी ऊपरकी मंजिलमें दो प्रकोष्ठ हैं और बरामदा है। इसके पार्श्वस्तम्भों, रेलिंग आदिपर हाथियों आदिके जलूसके दृश्य अंकित हैं। इस गुफाके सामने एक टूटी-फूटी गुफा है जो सम्भवतः गुफा नं. ९ से प्राचीन है। (१०) गणेश गुम्फा--सीढ़ियोंसे चढ़कर दायीं ओर घूमनेपर यह गुफा मिलती है । गुफाका यह नाम गणेशकी मूर्तिके कारण पड़ गया है जो दायों ओरके प्रकोष्ठों उत्कीर्ण है। इस गुफामें दो प्रकोष्ठ और बरामदा है। बरामदेमें पांच स्तम्भ हैं । बरामदेके बाहर दो पाषाण गज खड़े हुए हैं । इनकी सूंडमें कमलके ऊपर आम्रगुच्छक है। आसन सहित हाथीकी ऊँचाई पाँच फुट और लम्बाई चार फुट है। द्वारपर दोनों ओर दृश्य उत्कीर्ण हैं, जिनमें पशु-पक्षी, पुष्प आदि हैं। ऊपर मध्यमें नन्दीपद या श्रीवत्स अंकित है। । दोनों द्वारोंके तोरणोंके मध्यवर्ती भागमें लम्बोदर स्त्री-पुरुष बने हुए हैं। बरामदेकी दीवालपर रानी गुम्फाके समान एक दृश्य उत्कीर्ण है, जिसमें एक पुरुष पेड़के निकट लेटा हुआ है । उसका दायाँ हाथ सिरपर रखा हुआ है। एक स्त्री उसके पैरोंके पास बैठी हुई उसे देख रही है। उसका हाथ पुरुषकी जंघापर रखा है। बिस्तरके पास उसकी ढाल-तलवार रखी है। आगेके दृश्यमें स्त्री-पुरुष ढाल-तलवारसे सुसज्जित होकर प्रथम युगलकी ओर बढ़ रहे हैं और अन्तमें एक पुरुष स्त्रीका अपहरण करते हुए दिखाई पड़ता है। ___दूसरे दृश्यमें इसी दीवालपर तीन व्यक्ति गजारूढ़ हैं। ढाल-तलवारसे सुसज्जित सैनिक उनका पीछा कर रहे हैं ये सैनिक विदेशी प्रतीत होते हैं। गजारोहियोंमें एक स्त्री है। वह महावतके स्थानपर है। उसके हाथमें अंकुश है। एक व्यक्ति सैनिकोंपर बाण-वर्षा कर रहा है और दूसरा व्यक्ति उनकी ओर स्वर्ण-मुद्राएँ फेंक रहा है। दूसरे दृश्यमें तीनों व्यक्ति हाथीसे उतरते हुए दिखाई पड़ते हैं। हाथी घुटने टेककर खड़ा है। पास ही वृक्ष है। इससे आगे स्त्री अपने दायें हाथमें आम्रगुच्छक लिये हुए है तथा बायाँ हाथ पुरुषके कन्धेपर रखा है। तीसरा व्यक्तिजो सम्भवतः कर्मचारी है-कन्धेपर मुद्राओंकी थैली लिये हुए है। इसके अन्तिम दृश्यमें स्त्री रूठी हुई मुद्रामें पर्यकपर लेटी हुई है और पुरुष हाथ जोड़कर उसे मना रहा है। कर्मचारी अपने स्वामीका धनुष और थैली लिये सिरेपर दीख पड़ता है। इस प्रकोष्ठसे मिला हुआ एक भग्न प्रकोष्ठ है। बायें कक्षमें तीर्थंकर मूर्ति है तथा दायें
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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