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बिहार - बंगाल - उड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थं
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(४) अलकापुरी गुम्फा - गुफा नं. ३ से मिली हुई यह गुफा है । इसमें ऊपर-नीचे तीन प्रकोष्ठ हैं - एक नीचे और दो ऊपर नीचेकी मंजिल के बरामदेके स्तम्भपर चौकड़ी भरते हुए अश्वोंका अंकन है । ऊपरी मंजिल के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। दीवारगिरीपर हाथी और सिंह बने हुए हैं । स्तम्भोंपर कुछ अद्भुत चित्रांकन मिलता है, जैसे पंखवाले पशु, पंखधारी मनुष्य, पक्षीके सिरवाले मानव । बायें खम्भेपर एक मनुष्य द्वारा बायें हाथसे एक स्त्रीको ले जाने और दूसरे हाथ से एक हाथी की सूँड़ पकड़नेका दृश्य है । बरामदेके बाहर भग्न दशामें द्वाररक्षक औरं रक्षिका खड़े हैं । द्वाररक्षिका त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है । उसके दायें हाथमें तोता है । सिरका केश विन्यास दर्शनीय है । दो मुक्तावलियाँ जूड़ेमें सुशोभित हैं ।
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(५) जय-विजय गुम्फा - गुफा नं. ४ की ऊपरी मंजिल के निकट यह गुफा है। नीचे और ऊपर दो-दो कक्ष हैं । स्तम्भ आधुनिक है। प्रत्येक कक्षमें एक-एक प्रवेशद्वार है । इनके ऊपर पंखधारी पशुओंका अंकन है । तोरणोंपर कमल आदि अंकित है । तोरणोंके मध्यवाले स्थान में बोधिवृक्ष ( अथवा अशोकवृक्ष ) और उसके दोनों ओर पूजा करते हुए भक्त अंकित हैं। भक्त हाथ जोड़े खड़े हैं। सेवक पुष्प और पुष्पमालाएँ ला रहे हैं । वृक्षके ऊपर छत्र और ध्वजा हैं । तोरणोंके सिरों पर नभचारी देव पुष्पमाल लिये दीख पड़ते हैं ।
इस गुफा के नीचे एक गुफा है और ऊपरकी ओर भी दो गुफा हैं। ये अच्छी दशामें नहीं हैं । (६) पनासा गुम्फा - गुफा नं. ५ से आगे यह गुफा है । इसमें एक खुला प्रकोष्ठ और दो आधुनिक स्तम्भ हैं। सामने पनस वृक्ष है, उसके कारण गुफाका यह नाम पड़ गया है।
(७) ठकुरानी गुम्फा - बायीं ओर यह गुफा है । इसमें दो मंजिलें हैं । नीचेकी मंजिल अपेक्षाकृत अच्छी दशा में है । बरामदा है। इसकी दीवालगिरी, और स्तम्भोंपर भागते हुए पंखधारी पशुओं और पक्षीमुख पशुओंका भव्य अंकन है । ऊपरी मंजिल के लिए आधुनिक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इस मंजिलपर एक प्रकोष्ठ और बरामदा है ।
(८) पातालपुरी गुम्फा- इसमें चार प्रकोष्ठ और बरामदे हैं । दो प्रकोष्ठ पीछे की ओर हैं। और दो अगल-बगलमें हैं । स्तम्भोंपर पंखधारी पशु पीठ मिलाये हुए खड़े दिखायी देते हैं । एक वालगिरी पर भाला और ढाल धारण किये हुए एक मनुष्यको सिंहसे लड़ते हुए अंकित किया गया है । पृष्ठ भाग के दो प्रकोष्ठोंके मध्यकी दीवाल गिर जाने के कारण दोनों मिलकर एक हो गये हैं। दीवाल में सम्भवतः खूँटियोंके छेद बने हुए हैं।
(९) मंचपुरी और स्वर्गपुरी गुम्फा - सीढ़ियाँ चढ़कर उत्तरकी ओर यह गुफा है । यह दो मंजिल है । नीचे की मंजिल मंचपुरी कहलाती है और ऊपरकी मंजिल स्वर्गपुरी । नीचेकी मंजिल में अर्धवृत्तमें चार प्रकोष्ठ बने हुए हैं-तीन एक ओर और एक एक ओर । दोनों ओर दो-दो सशस्त्र द्वारपाल बने हुए हैं । प्रवेशद्वारोंके ऊपर श्रीवत्स या नन्दीपद बने हुए हैं । दूसरे और तीसरे प्रवेशद्वारोंके मध्यवर्ती स्थानमें प्रतीक पूजाके दृश्य अंकित हैं। दुर्भाग्यवश प्रतीक नष्ट हो गया है । अतः प्रतीककी पहचान नहीं हो पाती । मध्यमें एक चरणचौकीपर प्रतीक रखा है। उसके ऊपर छत्र सुशोभित है। भक्त उसे नमस्कार कर रहा है। दायीं ओर चार भक्त हाथ जोड़े हुए खड़े हैं जो अभी हाथीसे उतरकर आ रहे हैं। हाथी अलग खड़ा हुआ है । इनमें मुकुटधारी राजा प्रतीत होता है । ऊपर सूर्य है तथा दो नभचारी देव दुन्दुभि लिये हुए हैं। एक देव आकाशसे पुष्पवर्षा कर रहा है। यहाँ चौथे द्वारपर एक पंक्तिका शिलालेख है जो इस भाँति पढ़ा गया है
'स्वरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहनस कुडेपसिरिनो लेनम्' अर्थात् चतुर महाराज कलिंगाधिपति महामेघवाहनके कुडेपक्षी की गुफा ।
भाग २ - २७