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________________ २०६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उद्योतित तस्मिन् थाने चतुर्विंशति तीर्थंकर स्थापिताः प्रतिष्ठा काले हरि ओप जसनंदिके क्ष...... .......ति .. दुथा......श्री पार्श्वनाथस्य कर्मक्षयाय । इसका आशय यह है कि सोमवंशी महाराज ललाटेन्दु केशरीके शासन-कालके ५वें वर्षमें जीर्णवापी और जीर्ण मन्दिरका जीर्णोद्धार किया और २४ तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएँ विराजमान की। प्रतिष्ठाके समय आचार्य यशनन्दी उपस्थित थे। इसके निकट ही आकाशगंगा नामक कुण्ड है। इसमें जानेके लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। शिलालेखमें जिस वापीका उल्लेख किया गया है, सम्भवतः वह यही है और जिस मन्दिरका उल्लेख किया गया है, उसके अवशेष कूछ दूर चलनेपर मिलते हैं। जिन २४ तीर्थंकर प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठाके सम्बन्धमें संकेत किया गया है, वे कहाँ हैं, यह ज्ञात नहीं हो सका। गुफा नं. १२ से १५ -आकाशगंगासे जैन मन्दिरको मार्ग जाता है। आकाशगंगासे थोड़ा आगे जानेपर राधाकुण्ड मिलता है। इसके दक्षिण-पश्चिम किनारेपर गुफा नं. १२ है। इसमें दो कक्ष हैं । इससे मिली हुई गुफा नं. १३ है। इसमें दो बड़े कक्ष हैं । आगेका भाग गिर चुका है। कक्षोंके आगे बरामदा है। उसमें चार स्तम्भ हैं। राधाकुण्डके बगलसे ऊपरको पगडण्डीपर लगभग सौ गज चलनेपर प्राकृतिक गुफा मिलती है । इसमें जल भरा हुआ है। जनतामें यह श्यामकुण्डके नामसे प्रसिद्ध है। ___ यहाँसे दक्षिण-पश्चिमकी ओर थोड़ा उतरनेपर गुफा नं १४ मिलती है। इसका नाम एकादशी गुफा है । यह आगेसे खुली है । एक आधुनिक स्तम्भ लगा हुआ है। गुफा नं. १५ के लिए पगडण्डी जाती है जो यहाँसे कुछ दूर है और पश्चिमकी तरफ पहाड़ीकी तलहटीके पास है। यह सामनेसे खुली हुई है। इस गुफासे उत्तर-पूर्वकी ओर कुछ ऊँचाईपर एक लम्बी सुरंग है और इसके आखिरी छोरपर गुप्तगंगा नामक कुण्ड है। इसकी बायीं ओर तीन छोटी-छोटी गुफाएँ हैं। उदयगिरिको गुफाएं उदयगिरिकी पहाड़ी जैन धर्मशालाके पार्श्वमें है। ऊपर जानेके लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। सीढ़ियाँ चढ़नेपर दायीं ओर मुड़ जाना चाहिए। कुछ दूर चलकर बायीं ओर गुफा नं. १ मिलती है। इस पहाड़ीपर कुल १८ गुफाएँ बनी हुई हैं। १. रानी गुम्फा-उदयगिरि-खण्डगिरिकी गुफाओंमें यह सबसे बड़ी और सबसे सुन्दर है । यह दो-मंजिली है। इसका दक्षिण-पूर्व पार्श्व खुला हुआ है। तीन दिशाओंमें प्रकोष्ठ बने हुए हैं। नीचेकी मंजिलमें कुल आठ प्रकोष्ठ हैं तथा ऊपरकी मंजिल में छह । आगे बरामदे हैं । ऊपरकी मंजिल नीचेकी मंजिलके एकदम ऊपर नहीं है, बल्कि कुछ फीट पीछे हटकर है। इसके कारण ऊपरकी मंजिलके आगे भी काफी विस्तृत सहन निकल आया है। इस गुफाकी ख्याति इसके स्थापत्यके कारण नहीं, अपितु पाषाणोंमें किये गये विविध और मनोरम दृश्यांकनोंके कारण है। नीचेकी मंजिल-दक्षिण पक्षमें एक प्रकोष्ठ, तीन प्रवेशद्वार और बरामदा है । भित्तियोंपर दो द्वारपाल बने हुए हैं । बायीं ओरके द्वारपालकी वेषभूषा राजसी है। कानोंमें मुरकी, बाहुओंमें भुजबन्द, गलेमें मुक्तकमाल, दायें हाथमें भाला सँभाले और बायें कन्धेपर तलवार लटकाये वह खूब जंचता है । स्तम्भोंपर पशु-मूर्तियोंका अंकन है।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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