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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ शुभचन्द्र आचार्य यहाँ विराजमान थे जो आर्यसंघ ग्रहकुल देशीगणके आचार्य कुलचन्द्र भट्टारकके शिष्य थे। ___उद्योतकेशरी महाराज ग्यारहवीं शताब्दीमें उत्कलके नरेश थे। वे सोमवंशमें उत्पन्न हुए थे। ___तीन शिलालेखोंमें-से एकमें शुभचन्द्रका नामोल्लेख आया है तथा दो लेखोंमें शुभचन्द्रके दो शिष्यों-श्रीधर और विजोका उल्लेख आया है।
कुछ विद्वान् सात तीर्थंकरोंके अधोभागमें बनी हुई उनकी यक्षी-मूर्तियोंको भ्रमवश वैदिक परम्पराकी सप्तमातृकाएं मानते हैं। उनकी मान्यताका एकमात्र आधार देवियोंकी सात संख्याका होना है । लेकिन लगता है, उन विद्वानोंने वैदिक सप्तमातृकाओं और जैन शास्त्रोंमें मान्य उपर्युक्त शासन देवियोंके रूप, वाहन आदिपर विचार नहीं किया, अन्यथा वे जैन यक्षियोंको वैदिक सप्त मातृकामें बतलानेकी भूल नहीं करते।
८. बाराभुजी गुम्फा-गुफा नं. ७ से मिली हुई और जैन मन्दिरसे आनेवाली सीढ़ियोंके बगलमें यह गुफा है। बरामदेकी दायीं और बायीं दीवालपर बारहभुजी दो शासन देवियोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इसलिए इस गुफाका नाम बारहभुजी गुफा पड़ गया। पहले अन्दर प्रकोष्ठ और बाहर बरामदा था किन्तु जब यहाँ मूर्तियाँ उकेरी गयों, तब प्रकोष्ठ और बरामदेके बीचकी दीवाल हटा दी गयी और गुफाको ऊंचा करनेके लिए फर्शकी गहरी खुदाई कर दी गयी। वर्तमान रूपमें भीतरवाले कक्षकी चौड़ाई सात फुट और लम्बाई इक्कीस फुट है। बरामदेमें दो स्तम्भ नये हैं।
प्रकोष्ठमें बायीं ओरकी दीवालमें पाँच तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ हैं। उनके नीचे चिह्न तथा देवियाँ ( यक्षियाँ ) बनी हुई हैं। पृष्ठवर्ती दीवालपर सर्वप्रथम पाश्वनाथकी कायोत्सर्ग मुद्रामें तीन फुट सात इंच ऊँची प्रतिमा है । चरणोंके दोनों ओर हाथ जोड़े हुए नाग पुरुषं खड़े हैं । उनके सिरपर तीन फणवाला चिह्न है। मध्य भागमें दोनों ओर चमरवाहक हैं तथा सिरपर सप्त फणावली बनी हुई है और त्रिछत्र शोभित है। उसके दोनों ओर नभचारी देव पुष्पमाल लिये हुए प्रदर्शित हैं। इस प्रतिमाके नोचे शासन देवी अंकित नहीं की गयीं। यही मूर्ति सबसे बड़ी होने और मध्यमें विराजमान होनेके कारण मूलनायक है। ___इस प्रतिमासे आगे इस दीवालपर सत्तरह तीर्थंकरोंकी पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। उनके ऊपर बोधिवृक्ष बने हुए हैं। दो सिंहोंपर आधारित कमलासनपर वे विराजमान हैं। सिरपर त्रिछत्र सुशोभित हैं। उनके दोनों ओर चमरवाहक, सिरके पीछे भामण्डल है। ऊपर देव-दुन्दुभि
और पुष्पवर्षा करते हुए देव दिखाई देते हैं। उनके कमलासनोंके नीचे प्रत्येक तीर्थंकरका लांछन अंकित है। उससे अधोभागमें पृथक् कोष्ठकोंमें प्रत्येक तीर्थंकरकी शासन देवी अंकित है। देवी अर्धपल्यंकासनमें है। केवल महामानसी ( भ. शान्तिनाथ ) पद्मासनसे बैठी हुई है तथा बहुरूपिणी ( भ. मुनिसुव्रतनाथ ) शयनासनमें है। तीस देवियां सुखासनसे बैठी हैं। बहुरूपिणी और पद्मावतीको छोड़कर शेष देवी मूर्तियों में सिरके पीछे भामण्डल बने हुए हैं। पद्मावतीके सिरके ऊपर सर्पफण बना हुआ है। सभी देवियाँ वस्त्राभूषणों और जटामुकुटसे अलंकृत हैं।
दायीं ओरकी दीवालपर पार्श्वनाथ और महावीरकी पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। उनके नीचे उनके चिह्न और शासन देवियोंकी मूर्तियाँ हैं। पद्मावतीके सिरपर सप्त फण है और महावीरकी शासन देवी सिद्धायिका षोडशभुजी है।