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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
२०३ और एक बरामदा है। प्रकोष्ठ साढ़े छह फुट चौड़ा और सवा आठ फुट लम्बा है। गुफाका यह नाम एक पेड़के नामपर पड़ गया है । यह पेड़ पहले इसके पास खड़ा था।
(५) खण्डगिरि गुम्फा-गुफा नं. ४ से आगे यह गुफा है। यह छह फुट चौड़ी और पन्द्रह फुट लम्बी है। इसमें चार प्रकोष्ठ बने हैं। अर्थात् दो प्रकोष्ठोंके ऊपर दो प्रकोष्ठ हैं। सभी क्षतिग्रस्त हैं। यह पहाड़ी यहाँपर प्राकृतिक ढंगसे खण्डित है, इसलिए इसका नाम खण्डगिरि पड़ गया। सन् १९५० में इस खण्डित पहाड़ीको मसालेसे कृत्रिम ढंगसे जोड़ दिया गया है। नीचेके प्रकोष्ठोंकी ऊँचाई छह फुट दो इंच और ऊपरके प्रकोष्ठों की चार फुट आठ इंच है।
(६) ध्यान गुम्फा-गुफा नं. ५ के दक्षिणमें यह गुफा है। यह एक हाल-जैसी है। इसकी बायीं ओरको दीवालपर शंख लिपिका एक लेख उत्कीर्ण है। इस गुफाकी चौड़ाई साढ़े सात फुट तथा लम्बाई अठारह फुट है।
(७) नवमुनि गुम्फा-गुफा नं. ६ से आगे यह गुफा है। इसमें नौ तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ हैं, इसलिए इसका नाम नवमनि गफा पड़ गया। यह भी एक खला हालनुमा है। पहले इसमें दो प्रकोष्ठ और बरामदा था। बादको बीचकी दीवाले हटाकर यह एक हाल-जैसा बना दिया गया। बायीं ओरकी दीवालपर चन्द्रप्रभको पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति बनी हुई है तथा नीचे चन्द्र लांछन है । पिछली दीवालमें गणेश मूर्ति है। उनका मूषक वाहन उनके अधोभागमें है । उससे आगे पृथक् कोष्ठकोंमें सात पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । मूर्तियोंके नीचे उन तीर्थंकरोंके लांछन भी बने हुए हैं जिनसे तीर्थंकरोंकी पहचान हो जाती है। ये सात तीर्थंकर क्रमशः इस प्रकार हैं-ऋषभदेव ( वृषभ ), अजितनाथ (गज ), सम्भवनाथ ( अश्व ), अभिनन्दननाथ ( बन्दर), वासुपूज्य ( भैंसा ), पार्श्वनाथ ( सर्प ) और नेमिनाथ (शंख )। तीर्थंकरोंके ऊपर छत्रत्रयो सुशोभित है। तीर्थंकरोंके दोनों पार्यों में चमरेन्द्र खड़े हैं, तीर्थंकरोंकी केशावली नाना प्रकारकी है, किसीका जटाजूट है, किसीको शंकु आकारकी है। नेमिनाथके कुन्तल धुंघराले हैं। इन मूर्तियोंपर न तो श्रीवत्स है और न प्रभामण्डल।
तीर्थंकर मूर्तियोंके लांछनोंके नीचे उनकी शासन देवियोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-चक्रेश्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृंखला, गान्धारी, पद्मावती और कूष्माण्डी ( अम्बिका )। देवियोंके नीचे उनके वाहन बने हुए हैं-यथा गरुड़, लोहासन, पक्षी, हंस, मकर, कुक्कुट, सर्प और सिंह । सभी देवियाँ रत्नाभरणोंसे अलंकृत हैं । चक्रेश्वरी अष्टभुजी है।
दायीं ओरकी दीवालपर दो तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं-पार्श्वनाथ और ऋषभदेव । वे दोनों पद्मासनमें विराजमान हैं। उनके दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हुए हैं। पार्श्वनाथ-प्रतिमाके ऊपर सप्त फणावली अलंकृत है। फणावलीके दोनों ओर आकाशचारी गन्धर्वके हाथोंमें पारिजात पूष्पोंकी मालाएँ धारण किये हुए हैं । उनके कमलासनके अधोभागमें नाग-धरणेन्द्रकी कुण्डली है । ऋषभदेवप्रतिमाके सिरके पृष्ठभागमें प्रभावलय बना हुआ है । उसके नीचे वृषभ लांछन है। - इस गुफामें पाँच शिलालेख उत्कीर्ण हैं । एक पार्श्वनाथ-मूतिके नीचे दायीं ओरकी दीवालपर। तीन लेख मध्य दीवालके अवशिष्ट अंशपर और पाँचवाँ लेख बरामदेके तोरणके भीतरी भागपर। यह लेख तीन पंक्तियोंका है जो इस प्रकार है
"ॐ श्रीमत् उद्योतकेशरी देवस्य प्रवर्द्धमाने विजय राज्ये संवत् १८ श्री आर्यसंघ प्रतिबद्ध ग्रहकूल विनिर्गत देशीगणाचार्य श्री कुलचन्द्र भट्टारकस्य तस्य शिष्य शुभचन्द्रस्य"
इसका आशय यह है कि उद्योतकेशरी देवके उन्नतिशील राज्यके अठारहवें वर्ष में श्री