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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ २. ऋषभदेव – अवगाहना १५ इंच । अधोभाग में चमरवाहक खड़े हुए हैं। उनके ऊपरकी ओर दो-दो पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ दोनों ओर उत्कीर्ण हैं । बायीं ओरकी एक प्रतिमा नहीं है, शायद खण्डित कर दी गयी है । ऊपर दोनों ओर आकाशचारी देव हाथोंमें माला लिये हुए प्रदर्शित हैं । आसनपर वृषभ लांछन है । ३. शान्तिनाथ - अवगाहना १३ इंच । चमरवाहकोंके ऊपर दोनों ओर चार-चार मूर्तियाँ हैं जो उपाध्याय परमेष्ठी की हैं। एक कीचक प्रदर्शित है । शान्तिनाथके सिरपर २ इंचका केश गुच्छक है जो अत्यन्त भव्य । प्रतिमा श्याम वर्ण है । हरिण लांछन है । ४. पार्श्वनाथ - अवगाहना तेरह इंच । सिरपर सप्त फणावली शोभित है । अधोभाग में चमरेन्द्र और शिरोभागपर दोनों ओर पुष्पमालधारी आकाशचारी गन्धर्व हैं । २०० ५. तीर्थंकर मूर्ति - लांछन मिटा हुआ है । सम्भवतः ऋषभदेवकी है । अवगाहना रह इंच । सिरपर केशोंका जूट है। दोनों ओर चमरेन्द्र और पुष्पमालधारी देव बने हुए हैं । सभी प्रतिमाएँ सलेटी पाषाणकी बनी हुई हैं और प्राचीन हैं। इस मन्दिरके निकट बड़ा जैन मन्दिर है । इसके द्वारमें प्रवेश करते ही बाह्य मण्डपमें वेद मिलती है । उसपर वीर संवत् २४७९ की श्वेत मार्बलकी- महावीर स्वामीकी प्रतिमा विराजमान है । इसके गर्भगृहमें सामनेकी मुख्य वेदीपर मध्यमें मूलनायक ऋषभदेव तीर्थंकरकी वीर संवत् २४६९ की श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है । इसकी अवगाहना तीन फुट है । इसके अतिरिक्त इस वेदीपर १४ मूर्तियाँ विराजमान हैं। सभी प्राचीन हैं। इनकी अवगाहना क्रमशः ९, १५, १८, ९, १५, ९, २१, १९, ८, १७, १४, १३, साढ़े छह और साढ़े छह इंच है । सभीका वर्ण हलका सलेटी है। सभी खड्गासन मुद्रामें हैं । इनमें चौदह इंचवाली मूर्ति यक्षीकी है । यक्षी अम्बिका सुखा बैठी है। एक घुटना मुड़ा हुआ है तथा दूसरा पादपीठपर रखा हुआ है । दायें हाथमें आम्र - गुच्छक है। बायीं गोदमें एक बालक है । बालकका एक हाथ स्तनपर है । अम्बिका मातृत्वकी प्रतीक देवी है और वह बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथकी सेविका यक्षी है । इन प्रतिमाओं में अन्तिम प्रतिमा सर्वतोभद्रका है । गर्भगृहमें दायीं ओर एक झरोखेमें ढाई फुटके एक शिलाफलकपर २४ तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। मध्यमें मूलनायक ऋषभदेवके सिरपर दो इंच ऊँचा जटाजूट है। दोनों पार्श्वोमें चमरवाहिका देवियाँ हैं । एक तीर्थंकर और एक चमरवाहिका मूर्ति खण्डित है । बायीं ओरके झरोखे में भगवान् नेमिनाथके गोमेद यक्ष और अम्बिका यक्षी सुखासन से बैठे हुए हैं । यक्षीकी बायीं गोदमें एक बालक बैठा हुआ है तथा एक बालक यक्ष-यक्षीके बीच में खड़ा हुआ है। इसके ऊपर आम्रगुच्छक लटक रहा है। मूर्तिके शीर्षपर भगवान् नेमिनाथकी पद्मासन प्रतिमा है। उसके दोनों ओर चमरेन्द्र विनत मुद्रामें खड़े हुए हैं । इस मन्दिरके बायीं ओर एक छोटा मन्दिर है । वेदीपर कोई प्रतिमा नहीं है । वेदी आगे एक शिलाफलकपर २४ तीर्थंकरोंके चरणचिह्न बने हुए हैं । उससे आगे एक अन्य मन्दिर है । उसमें तेरह फुट उत्तुंग कायोत्सर्गासन में पार्श्वनाथकी श्याम वर्ण प्रतिमा वीर संवत् २४७६ में प्रतिष्ठित विराजमान है । उसके दोनों ओर पार्श्वनाथके यक्ष यक्षी धरणेन्द्र और पद्मावती खड़े हुए हैं। दोनोंके शीर्षपर पार्श्वनाथ विराजमान हैं । इस मन्दिरके बायीं ओर एक कमरा बना हुआ है ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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