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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ . २०१ ये सभी प्राचीन मूर्तियाँ इस पहाड़ी अथवा इसके आसपासमें उपलब्ध हुई थीं। इन मूर्तियोंका काल अनुमानतः ८-९वीं शताब्दी प्रतीत होता है। मन्दिरपर जानेके लिए कई मार्ग हैं-(१) आकाशगंगा होते हुए दायीं ओर मुड़कर, (२) गुफा नं. ३ ( अनन्त गुम्फा ) के निकटसे, (३) गुफा नं. ५ ( खण्डगिरि गुम्फा ) के दायीं ओर बनी हुई सीढ़ियोंके द्वारा, (४) गुफा नं. ८ ( बाराभुजी गुम्फा ) के बगल में बनी हुई सीढ़ियोंसे अथवा (५) श्यामकुण्डसे ऊपर चढ़कर जो मार्ग गया है उससे । इस मन्दिरपर पहुंचकर दृश्य अत्यन्त मनभावन प्रतीत होता है। इस मन्दिरके निर्माण-कालके सम्बन्धमें कई पुरातत्त्ववेत्ताओंने विभिन्न मत प्रकट किये हैं। स्टलिंग सन् १८२५ में यहाँ आये थे। उन्होंने लिखा है-मन्दिर आधुनिक है । उनकी सूचनानुसार यहाँको मूलनायक प्रतिमा पार्श्वनाथ भगवान्की थी। मि. किट्टोने सन् १८३७ में यहाँको यात्रा की थी। वे लिखते हैं-मन्दिर आधुनिक है। इसका निर्माण मराठा कालमें हुआ है। श्री राजेन्द्रलाल मित्रकी मान्यता है कि यह मन्दिर १९वीं शताब्दीके प्रथम पादमें कटकके श्री मंजु चौधरी और उनके भतीजे भवानी दादूने बनवाया था। श्री मित्रके मतमें महावीर यहाँके मूलनायक थे। हमारी विनम्र मान्यता है कि यह मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है। समय-समयपर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। सम्भव है, श्री मित्रने जैसा कि उल्लेख किया है, कटकके चौधरी और दादूने निर्माण नहीं, कुछ मरम्मतका कार्य कराया हो। यह भी सम्भव है कि श्री मित्रको मि. किट्टोकी रिपोर्ट देखनेको नहीं मिली हो। इन विद्वानोंने मूलनायकके रूपमें विराजमान जिस पार्श्वनाथ अथवा महावीरकी प्रतिमाका उल्लेख किया है, वह प्रतिमा कहाँ गयी, यह ज्ञात नहीं हो सका । अब तो उस प्राचीन प्रतिमाके स्थानपर भगवान् ऋषभदेवकी आधुनिक प्रतिमा विराजमान है। इस मन्दिरके पृष्ठ भागमें जंगलके बीच में प्राचीन मन्दिरोंके ध्वंसावशेषोंके ढेर पड़े हुए हैं। इस समय तो इन ढेरोंमें कोई मूर्ति आदि नहीं है किन्तु ज्ञात हुआ कि पहले यहाँ अनेक तीर्थंकर मूर्तियाँ थीं। यह स्थान देव-सभा कहलाता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि सम्राट् खारबेलने जिस अर्हत्प्रासादका जीर्णोद्धार कराया था अथवा जिस निषधिकाका निर्माण कराया था, उन्हींके ये अवशेष हों। खण्डगिरिको गुफाओंका संक्षिप्त परिचय (१) टटोवा अथवा तोता गुम्फा नं. १-बाहरकी ओर एक बरामदा है तथा अन्दर प्रकोष्ठ है। प्रकोष्ठ ग्यारह फुट लम्बा और साढ़े छह फुट चौड़ा है। प्रवेश करनेके लिए २ द्वार हैं। द्वारकी महरावके ऊपर तोतेका चित्र अंकित है। इसलिए इस गुफाका नाम तोता गुफा पड़ गया। गुफाके बाहरी भागमें दोनों ओर द्वारपाल खड़े हुए हैं। वे धोती और अंगरखा पहने हैं और तलवार धारण किये हुए हैं। ये खण्डित हैं। प्रकोष्ठके दायें प्रवेशद्वारके ऊपर वृषभ और बायें प्रवेशद्वारके ऊपर सिंह मूर्ति बनी हुई है। प्रवेशद्वारोंके दोनों तोरणोंके मध्यवर्ती स्थानमें एक पंक्तिका निम्नलिखित लेख है ___ "पदमुलिकस कुसुमास लेन" अर्थात् पदमुलिकवासी कुसुम सेवककी गुफा। यह लेख खण्डगिरिके सभी लेखोंमें सबसे प्राचीन है। भाग २-२६
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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