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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ १९९ प्रदेशमें मिली हुई हैं । खण्डगिरिकी ऊंचाई एक सौ तेईस फुट है और उदयगिरि एक सौ दस फुट ऊँची है। इनका पाषाण भूरा बलुआ है। ___गुफाओंका प्रचलन अतिप्राचीन कालसे चला आ रहा है। प्राचीन कालमें जैनमुनि जंगलोंमें, पर्वतोपर, नदी-तटपर और गुफाओंमें तप किया करते थे। यहाँका कुमारी पर्वत बहुत कालसे तीर्थभमि रहा है। ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि भगवान पार्श्वनाथका इस प्रदेशमें विहार हुआ था और वे इस पर्वतपर भी पधारे थे। पार्श्वनाथके पश्चात् महावीर भगवान् यहाँ पधारे थे और कुमारी पर्वतपर उनका समवसरण लगा था। तीर्थभूमि और एकान्त स्थान होनेके कारण इन पहाड़ियोंकी ओर निग्रंन्थ जैन मुनि जनोंका आकर्षित होना स्वाभाविक था। खारबेल द्वारा जैन धर्मको संरक्षण देने और कलिंगवासियोंकी जैन धर्मके प्रति निष्ठाके कारण मुनियोंका यहाँ आवागमन निरन्तर लगा रहा। कलिंगमें खारबेलका काल जैन धर्मके लिए स्वर्णकाल माना जाता है। इसलिए इस कालमें निर्ग्रन्थ जैन मुनि बहुसंख्यामें ध्यान, तपस्या और सल्लेखनाके लिए यहाँ आते रहते थे। उन मुनिजनोंकी सुविधाके लिए खारबेल तथा उनके परिजनोंने इन पहाड़ियोंपर छोटी-बड़ी अनेक गुफाओंका निर्माण कराया था। एक बातकी ओर विशेष रूपसे ध्यान जाता है। यहाँ गुफाओंमें यहां तक कि सम्पूर्ण कलिंग प्रदेशमें जितनी जैन मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं, सभी दिगम्बर परम्पराकी मिलती हैं। कहीं पर भी श्वेताम्बर परम्पराकी कोई मति नहीं मिली। इससे ऐसा लगता है कि प्राचीन निर्ग्रन्थ जैन परम्परासे कुछ साधुओं द्वारा विद्रोह करके अपना अलग पन्थ स्थापित करनेपर भी तब तक एक स्वतन्त्र सम्प्रदायके रूपमें उसका व्यवस्थित गठन नहीं हो पाया था। किसी सम्प्रदायकी स्थापना होनेपर उसका कुछ रूप निखरने, उसको एक व्यवस्थित रूप पानेमें कुछ समय अवश्य लगता है। अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहुसे विद्रोह करके आचार्य स्थूलभद्र और उनके साथी कुछ साधुओं द्वारा अपना पृथक् सम्प्रदाय गठित किये हुए केवल दो शताब्दीसे कुछ अधिक काल ही बीता था। न वे अबतक अपने शास्त्र ही व्यवस्थित कर पाये थे और न अपनी पृथक् मूर्तियां ही तैयार करा पाये थे। इसलिए खण्डगिरि-उदयगिरि पर श्वेताम्बर परम्पराकी एक भी मूर्ति नहीं मिलती। . इन गुफाओंका निर्माण-काल क्या है, यह निश्चित रूपसे बता पाना प्रायः कठिन है । किन्तु हाथीगुम्फाके प्रसिद्ध शिलालेखसे कुछ प्रकाश पड़नेकी सम्भावना है। कुछ इतिहासकारोंने हाथीगुम्फा अभिलेखका काल ईसा पूर्व प्रथम शताब्दीका अन्तिम चरण निर्धारित किया है। किन्तु खण्डगिरिपर कुछ गुफाएँ बादमें भी निर्मित हुई थीं। मन्दिर, गुफाएँ और मूर्तियां खण्डगिरिके जैन मन्दिर जैन धर्मशालासे लगभग ५० गज चलनेपर बायीं ओर सीढ़ियों द्वारा चढ़कर पहाड़ीकी चोटीपर चार छोटे-बड़े मन्दिर बने हुए हैं । ये सभी मन्दिर आधुनिक हैं। पहला मन्दिर छोटा है। उसमें केवल मण्डप और गर्भगृह बने हुए हैं। गर्भगृहमें संगमरमरकी एक वेदीमें पाँच खड्गासन जैन मूर्तियाँ विराजमान हैं। बायीं ओरसे १. ऋषभदेव-अवगाहना दो फुट । मुख कुछ खण्डित है। दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। शीर्षभागपर दोनों ओर पुष्पवर्षा करते हुए गन्धर्व बने हुए हैं । चरण-चौकीपर वृषभ लांछन है।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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