________________
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ विराजमान किया। इस घटनाकी स्मृतिमें उसने विजय-स्तम्भ बनवाकर बड़ा उत्सव किया। इस प्रकार उसने लोकहितकी भावनासे किये गये अपने सभी कार्योंसे प्रजाके मनको जीत लिया था।
तेरहवाँ वर्ष उसके राजत्वका अन्तिम वर्ष था। कलिंग राष्ट्रका पूर्व गौरव और प्रतिष्ठा उसे पुनः प्राप्त हो गयी थी। सम्पूर्ण भारतपर कलिंगका प्रभाव था। इस तरह खारबेलके जीवनका इहलौकिक कार्य सम्पूर्ण हो चुका था । अतः उसने अब पारलौकिक प्रयोजनमें अपने शेष जीवनको समर्पित कर दिया । यद्यपि वह स्वयं जैनधर्मानुयायी था किन्तु वह अपने आपको 'सर्व पाषण्ड पूजक' कहकर सर्व धर्मोके अनुयायियोंके प्रति अपनी उदार नीतिकी घोषणा करता है।
कुमारी पर्वतपर, जहाँ भगवान् महावीरने उपदेश दिया था, वहाँ खारबेलने जिन-मन्दिरका निर्माण कराया, अर्हत् निषधिकाका उद्धार कराया और सर्व दिशाओंके महाविद्वानों और तपस्वी साधुओंका समाज एकत्रित किया।
खारबेलका राजत्व काल यद्यपि तेरह वर्ष ही है किन्तु इतने अल्प कालमें ही उसने सम्पूर्ण भारतवर्षको जीत लिया, प्रजा-रंजनके अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये। धार्मिक दृष्टिसे उसका योगदान जैन धर्मके इतिहासका एक चमकता हआ पष्ठ है। उसकी धार्मिक निष्ठा असन्दिग्ध थी, किन्तु उसमें साम्प्रदायिकताका लेश मात्र भी न था। उसके अहिंसक राज्यशासनमें जैन ही नहीं, ब्राह्मण, बौद्ध तथा अन्य धर्मावलम्बी भी अपने जीवन, अपने धर्मके प्रति आश्वस्त थे। खारबेलका विवाह
अपने राज्य-शासनके सातवें वर्षमें अर्थात् इकतीस वर्षकी आयुमें खारबेलने वजिराघरकी राजकुमारीके साथ विवाह किया। मंचुपुरोकी गुफाका निर्माण खारबेलकी अग्रमहिषीने जैन मुनियोंके उपयोगके लिए कराया था। उसमें महारानीने जो लेख उत्कीर्ण कराया था, वह लेख इस प्रकार पढ़ा गया है-“राजिनो लालकस हस्तिसिंहस पपोतस धुतुनय कलिंगचकवतिनो सिरि खारबेलस अगमहिसी।" इसमें बताया है कि कलिंग चक्रवर्ती खारबेलकी अग्रमहिषी महानात्मा हस्तिसिंहको पुत्री थी । इतिहासकार वजिराघरकी पहचान मध्यप्रदेशमें चान्दा जिलेके वैरागढ़से करते हैं।
किन्तु खण्डगिरि-उदयगिरिकी गुफाओंके शिलालेखोंके पाठोंके बारेमें सभी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। इसलिए अधिकारपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि खारबेलको अग्रमहिषी कहाँकी और किस वंशकी थी। खारबेलका राज्याभिषेक
हाथीगुम्फा लेखकी द्वितीय और तृतीय पंक्तिमें खारबेलके राज्याभिषेकके सम्बन्धमें इस प्रकार पाठ मिलता है-"संपुण चतुवीसति वसो तदानि वधमात्रसेसयो वेनाभिविजयो ततिये कलिंग राजनसे पुरिस युगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति" अर्थात् चौबीस वर्षकी आयु पूर्ण होनेपर अपनी बढ़ती हुई उम्रमें राजा वेनके समान जिसके भाग्यमें विजय है; और कलिंगकी तीसरी पीढ़ीमें खारबेलका महाराज्याभिषेक हुआ। ___जहाँ तक राज्याभिषेकका सम्बन्ध है, प्रसिद्ध इतिहासकार श्री के. पी. जायसवालका अभिमत है कि खारबेलका महाराज्याभिषेक वैदिक रीतिसे सम्पन्न हुआ। उनका इस बातके कहनेका आशय यह है कि यद्यपि खारबेल जैनधर्मानुयायी थे, किन्तु वैदिक रीतिसे राज्याभिषेक