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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
डॉ. बरुआने पुरुष युगका जो अर्थं किया है, लगभग उसी आशय में इस शब्दका प्रयोग हेमचन्द्राचार्यंने परिशिष्ट पर्व सर्ग ८ श्लोक ३२६ में इस प्रकार किया है- 'गामी पुरुषयुगाणि नव यावत्तवान्वयः || '
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यदि डॉ. बरुआका यह अर्थं स्वीकार कर लिया जाय तो यह मानना होगा कि महामेघवाहन ऐल वंशमें द्विराज्यका सिद्धान्त लागू था। इस विधि में पिता-पुत्र दोनों मिलकर संयुक्त शासन करते थे । इस प्रकारके द्विराज्यका विधान अथर्ववेदे और कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी मिलता है । इस संयुक्त शासन प्रणालीके अनुसार यह मानना होगा कि जब खारबेल ९ वर्ष तक युवराज पदपर आसीन रहे, उस समय खारबेल के पिता खारबेलके बाबाके साथ मिलकर राज्य शासन कर रहे थे । अर्थात् खारबेलकी १६ से २४ वर्ष तक की आयुका यह काल था । २४ वर्षकी आयु पूरी होनेपर उसके पितामहका देहान्त हो गया और वह अपने पिता के साथ राज्य शासन करने लगा । उसके शासनके ग्यारहवें वर्ष में उसके पिताका देहान्त हो गया । तब उसने अपने पिताकी स्मृति में वास्तविक श्रद्धांजलि अर्पित की। उस समय उसका पुत्र वक्रदेव अपने पिता खारबेल के साथ मिलकर शासन करने लगा ।
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- डॉ. बरुआ की इस मान्यताका समर्थन मंचपुरी गुफा के लेखसे होता है । यह लेख खारबेल - शासनके १३वें वर्षमें उत्कीर्ण किया गया था । उसमें ऐर, महाराज, महामेघवाहन और कलिंगाधिपति शब्दों का प्रयोग वक्रदेवके साथ किया गया है । हिन्दू पुराणोंके अनुसार आन्ध्र - सातवाहन नरेशों के समकालीन राजाओंमें वे राजा भी थे जो कोशल और दक्षिण कोशलमें शासन करते थे, जिनकी संख्या नौ थी; जो बहुत शक्तिशाली और बुद्धिमान् थे और मेघ कहलाते थे । भविष्य पुराण में तो स्पष्ट कथन है कि महामेघवाहन वंशके सात राजा और सात आन्ध्रराजा समकालीन थे ।
तृतीय पुरुष युगका आशय उक्त व्याख्या के प्रकाशमें यह होगा कि महामेघवाहन वंशमें खारबेल छठवाँ शासक था और वक्रदेव सातवाँ । इनके अतिरिक्त दो शासक इसके बाद हुए, जिनका शासन काल लगभग तीससे चालीस वर्ष तक रहा। इसके पश्चात् इस वंशका शासन समाप्त हो गया ।
खारबेलका बचपन
earth अभिलेख प्रथम-द्वितीय पंक्ति में खारबेलके बल, सौन्दर्य, वर्ण और आकृति के सम्बन्ध में कुछ संकेत मिलता है । मूल पाठ इस प्रकार है - ' पसथ- सुभ -लखनेन चतुरंत - लुठ (ण) गुण- उपितेन .......( पं ) दरस -वसानि सीरि ( कडार ) सरीर-वताकीडिता कुमार कीडिका' । डॉ. ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है - खारबेलके शारीरिक लक्षण अत्यन्त प्रशस्त और शुभ थे। सामुद्रिक शास्त्रमें एक यशस्वी राजाके योग्य जो शुभ लक्षण बताये गये हैं, वे सब उसके शरीरमें थे । वह चारों ओर समुद्रसे वेष्टित पृथ्वीकी रक्षा करनेमें समर्थ था । उसने कुमारों के योग्य क्रीड़ा में पन्द्रह वर्ष बिताये ।
इससे ज्ञात होता है कि खारबेल अपने बचपनमें कितना सुन्दर और रूपलावण्य युक्त था । उसके सम्बन्धमें यह कहा जाता है कि युवावस्थामें उसके रूप और बल-विक्रमको देखकर
१. अथर्ववेद ५।२०१९ | २. कौटिल्य अर्थशास्त्र ८२१२८ । ३. Dynasties in the Kaliage, by Pargiter, 51.