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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ खारबेलका समय-निर्धारण
भारतीय इतिहासमें खारबेलका काल विवादास्पद बना हुआ है। उनके सम्बन्धमें जो कुछ जानकारी प्राप्त होती है, वह केवलं हाथी गुम्फाके शिलालेखसे ही होती है। इस शिलालेखमें उन्हें 'कलिंग अधिपति' बताया है। किन्तु उनकी रानी द्वारा निर्मित स्वर्गपुरी या मंचपुरी गुफालेखमें चक्रवर्ती कहा गया है। इन लेखोंमें न तो खारबेलके पूर्वजोंका ही कहीं उल्लेख मिलता है और न उनके कालपर ही कुछ प्रकाश पड़ता है।
खारबेलके समय सम्बन्धी विवादमें स्पष्टतः दो पक्ष हैं-एक पक्ष तो वह है जो मानता है
पी गुम्फाका लेख खारबेल शासनके तेरहवें वर्ष में खदा था। उस वर्षको मौर्य-कालसे १६५वर्ष पश्चात् हुआ माना जाता है। इस मौर्य-कालसे प्रयोजन अशोककी कलिंग-विजयसे है। अशोकने कलिंगपर ई. पू. २५५ में विजय प्राप्त की। इसके १६५ वर्ष बाद खारबेलने यह शिलालेख खुदवाया। इस प्रकार खारबेल २५५ - १६५ =९०+१३ = १०३ ई. प. में राजगहीपर बैठा। ____ दूसरा पक्ष मौर्यकालको नहीं मानता। हाथीगुम्फा लेखके सूक्ष्म निरीक्षण और गहन अध्ययनके पश्चात् अब यह सुनिश्चित हो चुका है कि मौर्यकालकी धारणा गलत पाठके कारण थी। लेखकी सोलहवीं पंक्तिमें जिसे 'मुरियकाल' पढ़ा गया था, वस्तुतः वह 'मुखिय कला' पाठ है। इससे मान्यताका सारा आधार ही बदल गया।
कुछ विद्वानोंने निष्कर्ष निकाला था कि खारबेल ई, पू. दूसरी शताब्दीमें हुआ था। किन्तु अब कुछ विद्वानोंने, जिनमें डॉ. ऐच-सी. राय चौधरी, डॉ. डी. सी. सरकार और डॉ. वी. ऐम. बरुआ प्रमुख हैं, खारबेलको ई. पू. पहली शतोके शेषार्धमें स्वीकार किया है।
हाथीगुम्फा लेखमें उन राजाओंका भी नामोल्लेख मिलता है, जिन्हें खारबेलने हराया था। उनमें सातवाहन, बृहस्पति मित्र और यवनराज़ दिमित ( डेमेट्रियस ) ये नाम मुख्य हैं। इतिहासकारोंने इन समकालीन राजाओंकी काल-गणना करते हुए खारबेलका काल ई. पू. प्रथम शताब्दीका उत्तरार्ध ही निर्धारित किया है और उसके जन्म आदिका काल-
निर्धारण इस प्रकार किया है
जन्म- ई. पू. ४९ । युवराजपद- ई.पू. ३३। ।
राज्याभिषेक-ई. पू. २५। . खारबेलकी वंश-परम्परा
खारबेलके पूर्वज और उत्तराधिकारी कौन थे, उनका क्या नाम था, इन सब बातोंपर इतिहाससे विशेष जानकारी नहीं मिलती और न हाथीगुम्फा लेखमें इस सम्बन्धमें कुछ विवरण मिलता है। किन्तु उक्त अभिलेखमें इस सम्बन्धमें कुछ सूत्र ढूँढ़े जा सकते हैं। उक्त अभिलेखकी द्वितीय और तृतीय पंक्तियोंमें एक वाक्य इस प्रकार आया है -'ततिये कलिंगराजवसे पुरिसयुगे।'
___डॉ. बी. एम. बरुआने इसका यह आशय निकाला है-कलिंगके राजवंशकी तीसरी पीढ़ीमें जिसकी हर पीढ़ीमें दो राजाओंका संयुक्त शासन होता था।
३. Old
१. पं. भगवानलाल इन्द्रजी, डॉ. ऐस. कोनो। २. के. पी. जायसवाल, आर. डी. बनर्जी। Brahmi Inscriptions, by Dr. B. M. Barua, p. 41.