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________________ १९० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं कलिंग चक्रवर्ती ऐल खारबेल चेदि राजवंश हाथी गुम्फा लेखमें प्रारम्भिक मंगलाचरणके बाद खारबेल के लिए निम्नलिखित विशेषणोंका प्रयोग किया गया है- 'ऐरेण महाराजेन महामेघवाहनेन चेत राजवंशवधनेन.. .. कलिंगाधिपतिना सिरिखारवेलेन' अर्थात् ऐर महाराज महामेघवाहन चेत ( चेदि ) राजवंश वर्धन कलिंग के अधिपति श्री खारबेल । इसमें बताया है कि खारबेल नरेश चेदिवंश के थे । . यह राजवंश चेदि अथवा चेति क्षत्रियों का था । चेदिवंश ऐर अथवा ऐल था । विद्वानोंका मत है कि यह राजवंश चन्द्रवंशियों का था । महाभारत भीष्म पर्व १७, २७, ५४, ४, ६४ में कलिंग नरेश पुरुरवाका वर्णन मिलता है जो ऐल वंश का था । जैन शास्त्रोंमें ऐल वंशको स्थापनाका रोचक विवरण मिलता है। उसके अनुसार मुनि सुव्रतनाथके पुत्र सुव्रत के दीक्षा लेने पर उनका पुत्र दक्ष हरिवंशका स्वामी हुआ। राजा दक्षकी रानी इलासे ऐलेय पुत्र हुआ और एक अत्यन्त सुन्दर पुत्री हुई जिसका नाम मनोहरी रखा गया। जब वह यौवनवती हुई तो उसके अनिन्द्य सौन्दर्यको देखकर उसका पिता दक्ष ही उसपर आसक्त हो गया । उसने अपनी पुत्रीसे ही विवाह कर लिया । इस कुकृत्यसे रानी इला अत्यन्त रुष्ट होकर अपने पुत्र ऐलेयको लेकर चली गयी। उसने अंग देशमें जंगलोंको साफ कराकर इलावर्धन नामक नगर बसाया और ऐलेयको उसका राजा बनाया । ऐलेय बड़ा प्रतापी था । उसने ताम्रलिप्ति नगर बसाया । दिग्विजय करते हुए उसने नर्मदा तटपर माहिष्मती नगरी बसायी । इसके बाद उसके वंशमें अनेक राजा हुए। इसी वंशमें अभिचन्द्र हुआ। उसने विन्ध्याचल के ऊपर चेदि राष्ट्रकी स्थापना की। अभिचन्द्र उग्रवंश में उत्पन्न रानी वसुमतीसे वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । वसु अत्यन्त सत्यभाषी पुरुष था। केवल एक बार नारद-पर्वतके विवादमें मध्यस्थ बनकर झूठ बोला । फलतः वह नरकमें गया । पूर्व पुरुष के कारण ही यह वंश ऐल वंश कहलाने लगा । चेदि राष्ट्रकी स्थापनाका श्रेय अभिचन्द्र को है । खारबेलने इसीलिए अपने आपको चेतिराजवंशवर्धन और ऐल कहा है । हाथी गुम्फा शिलालेखकी सत्रहवीं पंक्ति में तो उसने स्पष्ट शब्दों में अपने आपको 'राजसि वसुकुलविनिःसृतो' अर्थात् राजर्षि वसुके कुलमें उत्पन्न लिखा है । बौद्ध ग्रन्थोंमें 'चेति जनपदकी गणना सोलह महाजनपदोंमें की गयी है । महाभारतकार चेदि राज वंशावलीमें नृप दमघोष, शिशुपाल, सुनीथ और उसके दो पुत्रों- धृष्टकेतु और सरभ ( जो महाभारत युद्ध के समयतक शासन कर रहे का वर्णन करते हैं । चेदि या चेति लोग दो भागों में बँट गये । एक भागके लोग तो नैपालके पहाड़ोंमें बस गये और दूसरे भाग के लोग बुन्देलखण्डमें रहने लगे। जैन, बौद्ध साहित्य और महाभारत में चेदि राष्ट्रकी राजधानीका नाम शुक्तिमती लिखा है । जैन हरिवंश पुराणके अनुसार चेदि राष्ट्रके संस्थापक अभिचन्द्र नरेशने ही शुक्तिमती नदी के तटपर शुक्तिमती नगरी बसायी और उसे ही अपनी राजधानी बनायी थी । पार्जीटरने शुक्तिमती नदीकी पहचान केन नदीसे की है और शुक्तिमतोकी राजधानी वाँदा सम मानी है। इसी चेदि वंशका कोई राजकुमार कलिंग चला गया था । और वह वहीं बस गया था । १. हरिवंश पुराण, १७वीं सर्ग, श्लोक १ से ३९ ॥
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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