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________________ १८४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ भगवान् पाश्वनाथके पश्चात् कलिंगमें जैन धर्मके व्यापक प्रचारके सिलसिलेमें महाराज करकण्डुका नाम आता है । करकण्डु कलिंगके सम्राट् थे। दन्तिपुर उनकी राजधानी थी। उनका राज्य समस्त अंग, वंग, कलिंग, चेर, चोल, पाण्ड्य, आन्ध्र आदि प्रदेशोंमें फैला हुआ था। वे जैन धर्मके कट्टर अनुयायी थे। चेर, चोल और पाण्ड्य राजाओंको उन्होंने अपने चरणों में झुकाया था। किन्तु जब महाराज करकण्डुको ज्ञात हुआ कि उन राजाओंके मुकुटोंमें जिनेन्द्र भगवान्का चित्र लगा है तो सम्राट्ने उन्हें अपने गलेसे लगा लिया और इस अविनयकी क्षमा भी मांगी। मार्गमें उन्होंने तेरपुरमें दो लयण ( गुफा-मन्दिर ) भी बनवाये। ___ 'उत्तराध्ययन सूत्र' ( अध्याय १८, गाथा ४५-४६ ) के अनुसार जब द्विमुख पंचालके, नेमि विदेहके और नग्नजित् गान्धारके शासक थे, उस समय कलिंग देशपर करकण्डुका शासन था। ये चारों ही नरेश जैन थे और वृद्धावस्था आनेपर इन चारोंने ही अपने पुत्रोंको राज्य देकर जैन मुनि-दीक्षा ले ली थी। बौद्धजातकोंमें करकण्डुको प्रत्येकबुद्ध माना है। सम्राट् करकण्डु भगवान् पार्श्वनाथ और महावीरके मध्यवर्ती कालमें हुए थे। किन्तु कुछ विद्वान् उन्हें पार्श्वनाथका शिष्य' मानते हैं। करकण्डुके पश्चात् कलिंगके कोने-कोनेको जैन धर्मकी ज्योतिसे प्रकाशमान करनेवाले भगवान महावीर थे। भगवान् महावीर कलिंगमें पधारे थे, कुमारी पर्वतपर उनका समवसरण लगा था तथा वहाँ भगवान्का उपदेश हुआ था। 'आवश्यक सूत्र' में वर्णन है कि भगवान् महावीरने तोषलमें अपने धर्मका प्रचार किया था और वे तोषलसे मोषल गये थे___"ततो भगवं तोषलिं गओ।....तत्थ सुमागहो नाम रट्टओ पिययत्ततो भगवओ सो मोएइ ततो सामी मौसली गओ।" आवश्यक सूत्रकी हरिभद्रीय वृत्तिमें सूचित किया गया है कि महावीरके पिता सिद्धार्थ तोषलके तत्कालीन राजाके बन्धु थे और कलिंगके राजाने अपने राज्यमें धर्म-प्रचारके लिए भगवान् महावीरसे प्रार्थना की थी। ___हरिवंश पुराण' में राजा जितशत्रुका वर्णन मिलता है। जितशत्रुको महाराज सिद्धार्थकी छोटी बहन यशोदया विवाही गयी थी। जितशत्रुके पूर्वपुरुषोंमें हरिवंशका प्रतापी राजा जरत्कुमार था। कलिंग राजाकी पुत्रीका विवाह जरत्कुमारके साथ हुआ और कलिंगका राज्य जरत्कुमारको प्राप्त हो गया। जरत्कुमारका पुत्र वसुध्वज, उसका पुत्र सुवसु, उसका पुत्र भीमवर्मा हुआ। उसके वंशमें अनेक राजा हुए । उसी वंशमें कपिष्ट नामका राजा हुआ। उसके अजातशत्रु, उसके शत्रुसैन, उसके जितारि और जितारिके जितशत्रु नामक पुत्र हुआ। जब भगवान् महावीरका जन्मोत्सव मनाया जा रहा था, तब यह कुण्डपुर आया था । महाराज सिद्धार्थने इन्द्रके तुल्य पराक्रमको धारण करनेवाले इस परम मित्रका अच्छा सत्कार किया था। जब भगवान्को अवस्था विवाहके योग्य हुई, तब यह अपनी पुत्री यशोदाको लेकर पुनः आया। वह अपनी पुत्रीका विवाह सम्बन्ध महावीरके साथ करना चाहता था। किन्तु ऐसा न हो सका, महावीर घर-द्वार छोडकर तप करने चले गये। तब जितशत्रु भी दीक्षा लेकर तप करने लगा। अन्तमें मुनि जितशत्रुको केवलज्ञान प्राप्त हुआ। १. Indian Culture, Vol. iv, 319 pp.
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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