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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ १८३ भगवान् ऋषभदेव, पार्श्वनाथ और भगवान् महावीरका विहार जिन देशोंमें हुआ था, उनमें कलिंग भी था। भगवान् पार्श्वनाथका विहार तो अंग, वंग, कलिंग, मगध और मध्यदेशोंमें विशेष रूपसे हुआ था। अतः इन देशोंमें उनका प्रभाव बहुत अधिक था और उनके अनुयायियोंकी संख्या लाखोंमें थी। हरिषेण कथाकोष में मुनि गजकुमारके जीवनको अन्तिम घटनाका कलिंग देशसे सम्बन्धित होनेका उल्लेख है। कथा इस प्रकार है राजा श्रेणिककी रानी धनश्रीके पुत्रका नाम गजकुमार था। एक बार मुनि सुमतिका उपदेश सुनकर कुमारने मुनि-दीक्षा ले ली। कुछ समय पश्चात्, गुरुको आज्ञा लेकर मुनि गजकुमार विहार करते हुए कलिंग देशके दन्तिपुर नामक नगरके पश्चिममें स्थित गज पर्वतपर पहुंचे और वहाँ तप करने लगे। एक दिन आतापन योगमें लीन मुनिको देखकर उस नगरके राजकुमार गुणपालने बुद्धदास मन्त्रीसे पूछा कि यह "योगी ऐसी तेज धूपमें क्यों खड़े हैं ?" मन्त्री बोला"महाराज ! इनको चण्डवायुने जकड़ लिया है। यदि आग जलाकर शिला गरम की जाये और योगी उसपर बैठें तो यह रोग शान्त हो सकता है।" राजकुमारने मन्त्रीको वैसा ही करनेकी आज्ञा दे दी। जब मुनि नगरमें चर्या के लिए गये हुए थे, तब मन्त्रीकी आज्ञासे अग्नि द्वारा वह शिला गरम कर दी गयी, जिसके ऊपर मुनिराज ध्यान लगाया करते थे। आहारके पश्चात् मुनि आकर उस तप्त शिलापर ध्यान लगाकर बैठ गये। उनका शरीर जलने लगा। किन्तु मुनिराज तनिक भी विचलित नहीं हुए। वे आत्मविहार करते रहे। इधर उनका शरीर जलकर प्राणान्त हुआ, ओर उधर उनके कर्मोंका अन्त हो गया। वे अन्तकृत् केवली हुए और निर्वाण प्राप्त किया। कलिंग देशमें स्थित कोटिशिलासे यशोधर राजाके पाँच सौ पुत्रों और एक करोड़ मुनियोंके निर्वाण होनेका उल्लेख भी हुआ है। कलिंगमें जैन धर्मका प्रभाव . अंग, बंग, मगधके समान कलिंगमें भी प्रागैतिहासिक कालसे जैन धर्मका बहुत प्रभाव रहा है । वहाँका लोक-जीवन जैन धर्मके आचार और विचारोंसे अनुप्राणित रहा है। इस बातकी पुष्टि वैदिक साहित्यसे भी होती है। मनुस्मृतिमें उपर्युक्त सभी देशोंको आत्म संस्कृतिका केन्द्र माना है और वैदिक यज्ञ यागादिमें विश्वास रखनेवालोंको इन देशोंमें जाने तकका निषेध किया है। इतना ही नहीं यदि कोई चला जाये तो उसके लिए नाना प्रकारके प्रायश्चित्त विधान बताये हैं। व्रात्यसंस्कृति श्रमण-संस्कृतिका पूर्वरूप और पूर्व नाम है। यह माननेके लिए प्रबल ऐतिहासिक आधार हैं कि अति प्राचीन कालसे कलिंगका जैन धर्मके साथ सम्बन्ध रहा है। प्रसिद्ध विद्वान् श्री नगेन्द्रनाथ वसुने लिखा है-“भगवान् पाश्वनाथने अंग-बंग और कलिंगमें जैन धर्मका प्रचार किया था। धर्म-प्रचारके लिए वे ताम्रलिप्त बन्दरगाहसे कलिंगमें गये। मार्गमें वे कोपकटकमें धन्य नामक एक गृहस्थके घर ठहरे थे। इस घटनाको स्मरणीय रखनेके लिए कोपकटकको धन्यकटक कहा जाने लगा। उस समय मयूरभंजमें कुसुम्ब नामक क्षत्रियका राज्य था और वह राजवंश भगवान् पार्श्वनाथ द्वारा प्रचारित धर्मसे प्रभावित था।" १. हरिषेण कथाकोष, कथा १३९ । २. निर्वाणकाण्ड, गाथा १८। ३. जैन क्षेत्र समास, चौबीस तीर्थंकरोंकी जीवनी आदिकी डॉ. नगेन्द्रनाथ वसु द्वारा की गयी समालोचनाका अंश ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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