________________
१८२
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पौराणिक युगमें कलिंग
ओड्र-कलिंग और दक्षिण कोशलका मध्यवर्ती पार्वत्य-प्रदेश ओड्र कहलाता था। केओझर और मयूरभंजको दक्षिणी सीमासे लेकर महानदीके बायें तटका समूचा प्रदेश इसमें सम्मिलित था। मत्स्य पुराणमें ओड्र और उत्कलवासियोंको विन्ध्य पर्वत शृंखलाका निवासी बताया है।
उत्कल-यह वह प्रदेश था जहाँ उत्कल और मेकल जातियाँ रहती थीं। सम्भवतः यह वह क्षेत्र था, जहाँ कपिशा (वर्तमान कसाई) नदी मिदनापुर जिलेमें बहती है। इस क्षेत्रमें बालासोरसे लोहार डागा (राँचीके निकट) तकका भाग और मध्य प्रदेशका सरगुजा था। वैतरणी उसकी दक्षिणी सीमा थी।
महाभारत और रामायणमें उत्कल और मेकलका साथ-साथ वर्णन मिलता है। मेकल प्रदेश सम्भवतः कोशल देशमें था। कलिंग
'महाभारत' में वैतरणो नदीको कलिंगकी उत्तर-पूर्वी सीमा बताया है। कलिंगकी प्राचीन राजधानी
जैन 'उपांग सूत्र' पन्नवणामें कंचनपुरको और महाभारतमें राजपुरको कलिंगका महानगर बताया है। 'कथासरित्सागर' में शुभवतीको कलिंगनगर कहा है। खारबेलके हाथी गुम्फा अभिलेखमें कलिंगनगरका उल्लेख कलिंगकी राजधानीके रूपमें किया गया है। गंगवंशके अधिकांश नरेशोंने-जैसे हस्तिवर्मा, इन्द्रवर्मा, देवेन्द्रवर्मा-अपने आपको 'सकल कलिंगाधिराज' बताया है और विजयी राजाओंकी ओरसे कलिंगनगरमें अनुदान स्वीकृत किये गये। इस नगरकी पहचान वर्तमान मुखलिंगम्से की जाती है जो गंजाम जिलेमें परलाकीमेढीसे २० मील है। कुछ विद्वान् इसे ही गंगवंशी राजाओंकी राजधानी मानते हैं। किन्तु गंगवंशके जयवर्म देव, इन्द्रवर्मन आदि कई राजाओंके ऐसे भी ताम्रपत्र मिले हैं जिनमें स्वाटकको उनका विजयी निवास (राजधानी) बताया है। इस नगरकी पहचान गंजाम जिलेके चिकाटी ग्रामसे की जाती है। गंगवंशके कुछ दानपत्रोंसे ज्ञात होता है कि कुछ गंगवंशी नरेशोंने-जो अपने आपको कलिंगाधिपति घोषित करते थे; श्रीपुर, देवपुर, पिष्टपुर, सिंहपुर आदि नगरोंमें अपने राजमहलोंसे अनुदानोंकी स्वीकृति दी। इन नगरोंके अतिरिक्त तोशल, कोंगोडा, वरदाखण्ड, अर्तनी, खिडिंगहार, कटकभुक्ति आदि कई विषयों (प्रदेशों) के नाम भी प्राचीन शिलालेखोंमें पाये जाते हैं। ये विषय कलिंग देशमें थे।
जैन साहित्यमें कलिंग
जैन साहित्यमें कलिंगका उल्लेख भगवान ऋषभदेवके कालसे ही प्राप्त होता है। भगवान ऋषभदेवने देशको जिन ५२ जनपदोंमें विभक्त किया था, उनमें एक जनपद कलिंग नामक भी था। उसे दक्षिण दिशामें बताया गया है। ऋषभदेवने अपने एक पुत्रको यहाँका राज्य दिया था।
२. History of Orissa,
१. Orissa in the making, by B. C. Majumdar, p. 16. Banerji. ३. हरिवंश पुराण, १२१७० ।