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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ १. ऋषभदेव तीर्थंकर-पद्मासन, सलेटी वर्ण, अवगाहना दो फुट पाँच इंच । कालआठवीं शताब्दी । पोडासिंगडी ( केओझर ) से प्राप्त ।
२. पार्श्वनाथ तीर्थंकर-पद्मासन, अवगाहना पाँच फुट, भूरा वणं, पीठके पीछे सर्पकी कुण्डली और सिरपर सप्त फणावली है। मुख खण्डित है। काल-दसवीं शताब्दी। उदयगिरिसे प्राप्त।
३. ऋषभदेव तीर्थंकर-यह मूर्ति एक पाषाणफलकमें बनी हुई है। इसकी अवगाहना दो फुट चार इंच है। यह श्याम वर्ण है। इसका काल आठवीं शताब्दी अनुमानित किया जाता है। यह पोड़ासिंगड़ीसे मिली थी।
४. शान्तिनाथ तीर्थंकर-पद्मासन, अवगाहना चार फुट, श्याम वर्ण । पादपीठपर हरिण लांलन बना हुआ है। उसके दोनों ओर गरुड़ यक्ष और महामानसी यक्षिणी हाथ जोड़े हुए खड़े हैं। भगवान्के दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हुए हैं। सिरके ऊपर दोनों ओर आकाशविहारी देवियाँ पुष्पमाल लिये हुए हैं । इसका काल नौवीं-दसवीं शताब्दी अनुमानित किया गया है। यह चरम्पा ( भद्रक ) से प्राप्त हुई थी।
५. ऋषभदेव तीर्थंकर-एक शिलाफलकमें चार फट दस इंच अवगाहनावाली ध्यान मुद्रामें कायोत्सर्ग आसनमें अवस्थित है। चरणोंके दोनों ओर सौधर्म और ऐशान इन्द्र चमर लिये हुए खड़े हैं । उनके ऊपर दोनों ओर चार-चार तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । यह मूर्ति नौवीं-दसवीं शताब्दीकी है और चरम्पासे उपलब्ध हुई थी।
६. अजितनाथ तीर्थंकर-पद्मासन, अवगाहना तीन फुट पाँच इंच । मुख बिलकुल घिस गया है। दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। और ऊपर कोनोंमें पुष्पमालधारिणी देवियाँ प्रदर्शित हैं । समय नौवीं-दसवीं शताब्दी।
७. महावीर तीर्थंकर-चार फुट दस इंच ऊँची यह खड्गासन मूर्ति है। इसका मुख और दोनों चमरेन्द्र बिलकुल अस्पष्ट हैं । काल आठवीं शताब्दी है। इसका प्राप्ति-स्थान चरम्पा है।
८. महावीर तीर्थंकर-पद्मासनमें अवस्थित भूरे वर्णकी यह प्रतिमा तीन फुट पाँच इंच ऊँची है। इसका काल दसवीं शताब्दी है।।
९. तीर्थंकर प्रतिमा-अवगाहना दो फूट । १०. तीर्थंकर प्रतिमा-अवगाहना पौने दो फुट । ११. गोमुख यक्ष-आठ इंच ऊँचा। काल-सातवीं शताब्दी । भुवनेश्वरसे प्राप्त हुई थी।
१२. नवग्रह-भुवनेश्वरसे यह फलक प्राप्त हुआ है। इसका निर्माण-काल बारहवीं शताब्दी माना जाता है।
१३. महावीर तीर्थंकर-पद्मासनमें अवस्थित। सिररहित है।
खण्डगिरि-उदयगिरि कलिंग देश
खण्डगिरि-उदयगिरिकी संसार प्रसिद्ध गुफाएँ कलिंग (वर्तमान उत्कल प्रदेश) में अवस्थित हैं । कलिंग देश बहुत प्राचीन है। भगवान् ऋषभदेवने कर्मभूमिके प्रारम्भमें इस देशको ५२ जनपदोंमें विभाजित किया था। उनमें कलिंग भी एक जनपद था। सम्भवतः उन्होंने कुछ जनपदोंके नाम अपने पुत्रोंके नामोंपर रखे थे। उनके पुत्रोंमें सिन्धु, सौवीर, अंग, वंग आदिके समान कलिंग नामका भी एक पुत्र था।