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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१७९ मन्दिर छोटा-सा ही है। उसके ऊपर शिखर भी है। कुल पाँच मूर्तियाँ हैं। ये काठके सिंहासनपर रखी हुई हैं। मूर्तियाँ रजत वर्णकी हैं । ये दानेदार धातुकी हैं । भूगर्भ में दबी रहनेके , कारण ही शायद ये दानेदार हो गयी हैं। ऐसी कई मूर्तियाँ भुवनेश्वर संग्रहालयमें भी सुरक्षित हैं । सम्भव है, ये अष्ट धातुकी हों।
मध्यकी मूर्ति चौबीसी है। मध्यमें गोलाकार में १२, ऊपर ८ और चारों कोनोंपर ४ इस प्रकार २४ मूर्तियाँ हैं। इनके अतिरिक्त नीचेके भागमें पार्श्वनाथकी और शीर्ष भागपर महावीरकी मूर्ति बनी हुई है। यह मूर्ति दस इंचकी है। इसके नीचेके भागपर लेख है। संवत् १०९० पढ़ा जा सका है अर्थात् यह मूर्ति ईसवी सन्की ग्यारहवीं शताब्दीके पूर्वार्द्धकी है। यह मूर्ति पद्मासन है।
इस मूर्तिके दोनों ओर दो-दो खड्गासन मूर्तियाँ हैं। इनमें एकदम बायीं ओरकी मूर्ति भगवान पार्श्वनाथकी है तथा शेष तीनों ऋषभदेव भगवान्की हैं। इनकी ऊँचाई क्रमशः छह इंच, नौ इंच, ग्यारह इंच और छह इंच है । मूर्तियोंकी पहचान उनके पादपीठपर बने हुए सर्प और वृषभसे होती है जो क्रमशः पार्श्वनाथ और ऋषभदेव तीर्थंकरोंके चिह्न हैं। ग्यारह इंचवाली ऋषभदेवकी मूर्तिके पादपीठपर चारों ओर नवग्रह बने हुए हैं। पादपीठ तीन कटनीदार बना हुआ है और गोलाकार है।
भानपुरसे दो मील आगे सड़कसे लगभग एक फलाँग कच्चे मार्ग द्वारा प्रतापपुर गाँव है। वहाँ भी नदीसे जैन मूर्तियाँ निकली थीं। गाँववालोंने उन्हें नदीके किनारे एक पीपलके वृक्षके नीचे रख दिया। किन्तु उनमें से एक मूर्ति चोरी चली गयी। उसका पता नहीं लग सका। तब उन मूर्तियोंको एक निकटवर्ती मठमें रख दिया जो अब भी वहींपर रखी हुई हैं।
कटक शहरके बाह्य भागमें गंगा मन्दिरमें भी एक जैन मूर्ति रखी हुई है।
इधर अन्य भी कई स्थानोंपर जैन मूर्तियां भूगर्भसे उपलब्ध हुई हैं अथवा वैष्णव मन्दिरोंमें रखी हुई हैं।
भुवनेश्वर भुवनेश्वर उत्कल प्रदेशकी वर्तमान राजधानी है। वैसे यह नगर मन्दिरोंके लिए प्रसिद्ध रहा है। कहते हैं, भारतके अन्य किसी नगरमें इतनी संख्यामें मन्दिर नहीं हैं। इन मन्दिरोंमें मुक्तेश्वर, राजारानी और लिंगराज मन्दिर सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। मुक्तेश्वर मन्दिर अपने स्थापत्य में अलंकरण और साज सज्जाके लिए विख्यात है-विशेषतः इसके तोरणोंपर बनी हुई स्त्री मूर्तियोंकी मादक मुद्राएँ, पशु-पक्षियोंके सूक्ष्म अंकन दर्शनीय हैं। राजारानी मन्दिर अपने सौन्दर्यके लिए विख्यात है और इसमें उत्कलकी सुन्दरतम कलाके दर्शन होते हैं। तीसरा लिंगराज मन्दिर यहाँका सबसे बड़ा और प्रसिद्ध मन्दिर है। इसका शिखर ४४ मीटर ऊँचा है। एक किंवदन्ती इसके सम्बन्धमें प्रचलित है कि इस मन्दिरका निर्माण वाराणसीके महत्त्वकी प्रतिस्पर्धामें ग्यारहवीं शताब्दीमें किया गया। इस मन्दिरमें जगमोहन, नटमन्दिर और भोगमण्डप हैं। शिवपरिवारके सभी सदस्योंकी मूर्तियाँ यहाँपर हैं।
इस नगरमें राज्य सरकारका सुन्दर संग्रहालय है। इसमें कुछ पाषाण और धातुकी जैन प्रतिमाएं भी हैं। पाषाणकी ये सभी मूर्तियाँ आठवींसे दसवीं शताब्दी तककी हैं। इन मूर्तियोंका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है