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बिहार - बंगाल- उड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थ
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लगता है, उत्तरपुराणकार भद्रपुरके सम्बन्ध में निर्भ्रान्त नहीं थे । किन्तु यह आश्चर्यकी बात है कि किसी आचार्यने भद्रिकनगर के सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञातव्य नहीं दिया। सम्भवतः इसका कारण यह रहा हो कि जैन पुराणों और कथाग्रन्थोंके निर्माण-काल तक भद्रिकनगरके सम्बन्ध में लोगोंको जानकारी नहीं रही थी ।
इस शताब्दी में सर विलियम हण्टर, डॉ. स्टेन आदि इतिहासकारोंने कुलुहा पर्वत तथा उसके आसपास निरीक्षण और शोध करके यह सिद्ध किया कि कुलुहा पर्वत जैन तीर्थं है तथा उसका निकटवर्ती भोंदलगाँव ( भद्दिल ग्राम ) ही शीतलनाथ तीर्थंकर की जन्मभूमि है ।
इस सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त करनेपर ज्ञात हुआ कि भद्दियपुरसे मिलते-जुलते नाम के कई ग्राम उधर हैं । डोभीसे लगभग आठ कि. मी. दूर भदियागाँव है | चौपारनके पास भद्दिय और भदेजा नामक गाँव हैं । हटवरिया के पास भोंदलगांव है । भोंदलगाँवके अतिरिक्त हमें अन्य किसी ग्राम में प्राचीनताके चिह्न नहीं मिले । भोंदलगाँव और उसके आसपास में प्रचुर परिणाममें जैन सामग्री बिखरी हुई पड़ी है। अनेक मूर्तियों को तो लोग उठा ले गये । यहाँके और निकटवर्ती प्रदेशका सूक्ष्म निरीक्षण करनेके पश्चात् यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि भोंदलगाँव ही शीतलनाथकी जन्मभूमि है और कुलुहा पहाड़ ही उनका दीक्षा वन है ।
कुलुहा पहाड़
यह पहाड़ बिहार प्रान्तके हजारीबाग जिलेमें चतरा तहसील में है । यहाँ पहुँचने के लिए ग्राण्ड ट्रंक रोडपर डोभीसे या चतरासे सड़क है । चतराके लिए हजारीबागसे ग्राण्ड ट्रंक रोडपर स्थित चौपारनसे सड़कें हैं । इनके अतिरिक्त गयासे शेरघाटी, हण्टरगंज और हटवरिया होकर भी मार्ग हैं । किन्तु गयासे हण्टरगंज, घँघरी होकर मार्ग सीधा है । गयासे डोभी बत्तीस कि. मी., डोभीसे हण्टरगंज १५ कि. मी., हण्टरगंजसे घँघरी ८ किमी. है। यहाँ तक सड़क पक्की है । घँघरीसे दन्तार गाँव कच्ची सड़क से ८ कि. मी. है । दन्तार गाँवमें जैन धर्मशाला बनी हुई जिसमें बारह कमरे हैं, चैत्यालय है, पक्का कुआँ है । घँघरीसे यहाँ तक के लिए रिक्शे मिलते हैं । पक्की सड़क पर बसें मिलती हैं ।
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यह सघन वृक्षों और हरियालीसे आच्छादित, समुद्री सतह से १५९५ फुट ऊँचा पहाड़ है । पहाड़पर जाने के दो मार्ग हैं- पश्चिमकी ओरसे हटवरिया होकर अथवा पूर्वकी ओरसे दन्तार गाँवसे घाटीमें होकर । इसी पर्वतपर भगवान् शीतलनाथके दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक मनाये थे। इसके निकट ही ( लगभग पाँच-छह मील) भोंदलगाँव है । इसकी पहचान भद्रिलपुरसे गयी है। इस गाँव (नगर) में शीतलनाथ भगवान् के गर्भ और जन्म कल्याणक हुए थे । सन् १८९९ में प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता श्री नन्दलाल डेने यहाँका निरीक्षण करके इस पर्वतपर स्थित मन्दिरों और मूर्तियों को बौद्ध लिखा था । किन्तु दो वर्ष बाद मार्च १९०१ में डॉ. एम. ए. स्टनने 'Indian Antiquary' में एक लेख देकर यह सिद्ध किया था कि यहाँ के सारे मन्दिर और मूर्तियाँ वास्तव में जैन हैं और यह पर्वत जैन तीर्थंकर शीतलनाथकी पवित्र जन्मभूमि है । तभीसे यह स्थान कुछ विशेष प्रसिद्धिमें आया है । बाद में विशेष अनुसन्धान करनेपर ज्ञात हुआ कि न केवल उस पर्वतपर ही जैन मूर्तियाँ और मन्दिर हैं, अपितु आसपास जैसे सतगवाँ, कुन्दकिला, बलरामपुर, बोरम, दारिका, छर्रा, डलमा, कतरासगढ़, पवनपुर, पाकवीर, तेलकुपीमें भी अनेक प्राचीन जैन मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं । अब श्री नन्दलाल डे के इस विचारको भी कोई स्थान नहीं रह गया है कि कुलहा पहाड़ ही मंकुल पर्वत है, जहाँ बुद्धने अपना छठा चातुर्मास किया था । वास्तव में