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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ परिवर्तनशील है। संसार विनश्वर है। अबतक इस संसारमें मेरा सारा आयोजन और प्रयोजन इस विनश्वरके लिए ही था। किन्तु मैंने अपने अविनश्वर आत्म-तत्त्वके लिए कभी कुछ नहीं किया। अब मैं संसारका प्रयोजन छोड़कर आत्माका प्रयोजन सिद्ध करूँगा।"
इस प्रकारके चिन्तनसे उनके मनमें संसार, शरीर और भोगोंसे विराग हो गया। वे अपने पुत्रका राजतिलक करके शुक्रप्रभा नामक पालकीमें बैठकर चल दिये । देवों, इन्द्रों और मनुष्योंका अपार-समूह साथमें था। वे सब भगवान्का दीक्षा कल्याणक महोत्सव मनाने आये थे। तिलोयपण्णत्तिमें लिखा है
माघस्स किण्हवारसि अवरण्हे मूलभम्मि पव्वज्जा।
गहिया य सहेवणे सीयलदेवेण तदियउववासे ।। ४।६५३ -शीतलनाथ स्वामीने माघ कृष्णा द्वादशीके दिन अपराह्न समयमें मूल नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ प्रव्रज्या ( दोक्षा ) ग्रहण की।
भगवान् यथासमय पारणाके लिए अरिष्टनगर गये। वहाँके राजा पुनर्वसुने नवधा भक्तिपूर्वक भगवान्का प्रतिग्रह किया और खीरसे पारणा कराया। भगवान् छद्मस्थ दशामें तीन वर्ष रहे। इस अवधिमें वे विभिन्न स्थानोंमें विहार करते रहे। विहार करते हुए वे पुनः सहेतुक वनमें पधारे और दो दिनका उपवास करके वे बेलके वृक्षके नीचे ध्यान लगाकर बैठ गये। वहाँ उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इस सम्बन्धमें 'तिलोयपण्णत्ति' का उद्धरण देना उपयोगी रहेगा
पुस्सस्स किण्ह चोद्दसि पुव्वासाढे दिणस्स पच्छिमए ।
सीयलजिणस्स जादं अणंतणाणं सहेदुगम्मि वणे ।। ४।६८७ अर्थात् शीतलनाथ तीर्थंकरको पौष कृष्णा चतुर्दशीको दिनके पश्चिम भागमें पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रके रहते सहेतुक वन में अनन्त ज्ञान उत्पन्न हुआ।
____ सहेतुक वन भद्दलपुर या भद्रिकापुरीके ही बाह्य भागमें स्थित उद्यान अथवा वन था। इसलिए भगवान्के चारों कल्याणक-गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान भद्दलपुरमें ही मनाये गये। ऐसी धारणा प्रचलित है कि भद्दलपुर बिहार प्रान्तके हजारीबाग जिलेमें है और इसका नाम आजकल भोंदलगाँव है। इसका सहेतुक वन वर्तमान कुलुहा पहाड़ है। भद्दलपुरको खोज
भद्दलपुर कहाँ था, इसके सम्बन्धमें इतिहासकारों में काफी मतभेद है। कुछ लोग विदिशा ( मध्य प्रदेश ) के निकट उदयगिरिको शीतलनाथ भगवान्को जन्म-भूमि मानते हैं। इस मान्यताके क्या स्रोत अथवा आधार हैं, यह स्पष्ट नहीं हो पाया। दूसरा मत भोंदलगाँव ( बिहार) के पक्षमें है।
जैन पुराणों और कथाग्रन्थोंमें भद्रिकनगरका वर्णन कई स्थानोंपर आया है। वसुदेव और देवकीके तीन युगलोंमें उत्पन्न हुए देवदत्त, देवपालित, मुनिदत्त, मुनिपालित, शत्रुघ्न और जितशत्रु नामक छह पुत्रोंका पालन भद्रिकनगरके श्रेष्ठी सुप्रतिष्ठ और उसकी पत्नी अयलाने किया था और ये छहों पुत्र गिरनारसे मुक्त हुए।
किन्तु भद्रिकनगर कहाँ अवस्थित था, इस सम्बन्धमें किसी पुराण या कथाग्रन्थमें कोई संकेत नहीं दिया गया। उत्तरपुराणकारने अवश्य लिखा है कि भद्रपुर मलयदेशमें स्थित था। मलयदेश दक्षिणापथमें था। लेकिन दक्षिणापथमें किसी भी तीर्थंकरका जन्म नहीं हुआ है। अतः
१. दक्षिणापथदेशस्थे मलये विषयान्तिके ॥ हरिषेण कथाकोष-कथा ५६, श्लोक ११ ।